-- सियासती
परिवेश में, सम्भावना अनन्त। चोला आज
बदल रहे, राजनीति के सन्त।। -- निर्मल
जल का देश में, बचा न कोई ताल। जाते
उसी दुकान में, जहाँ मुफ्त का माल।। -- देशभक्ति
के नाम पर, पालन करते पेट। आपाधापी
में हुए, दल-बल मटियामेट।। -- शस्यश्यामला
भूमि में, जहर छिड़कते लोग। ढोंगी
साधु कर रहे, जंगल में हठयोग।। -- पानी वाले दूध में, आता बहुत उबाल। कंकड़-पत्थर
से भरी, अब तो काली दाल।। -- बढ़ते
भ्रष्टाचार पर, कैसे लगे लगाम। जन सेवक
को चाहिए, नित काजू-बादाम।। -- भीतर से
सब काग हैं, बाहर से सब हंस। जमुना
में डुबकी लगा, कृष्ण बन गये कंस।। -- |
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गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024
दोहे "कृष्ण बन गये कंस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 28 फ़रवरी 2024
दोहे "काँटों की चौपाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- सुमन ढालता स्वयं को, काँटों के अनुरूप। नागफनी का भी हमें, सुन्दर लगता रूप। -- सियासती दरवेश अब, नहीं
रहे अनुकूल। मजबूरी में भा रहे, नागफनी
के फूल।। -- फूलों के बदले मिलें, उपवन
में अब शूल। ऐसा लगता गन्ध को, भ्रमर
गये हैं भूल।। -- देश-काल-परिवेश के, बदल
गये हैं अर्थ। उनको सारी छूट हैं, जो
हैं आज समर्थ।। -- कैसे रक्खें सन्तुलन, थमता
नहीं उबाल। पापी मन इंसान का, करता
बहुत बबाल।। -- अब मौसम के साथ में, बदल
गया परिवेश। काँटे भी देने लगे, गुलशन
में उपदेश।। -- नागफनी के चमन में, काँटों
की चौपाल। वासन्ती परिवेश में, जीवन
है बदहाल।। -- निखरा-निखरा व्योम है, खिली हुई
है धूप। निखर गया मधुमास में, नागफनी का
रूप।। -- |
मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024
बाल गीत "सीख काम की हम सिखलाते" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- मौसम कितना हुआ सुहाना। रंग-बिरंगे सुमन सुहाते। सरसों ने पहना पीताम्बर, गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- दिवस बढ़े हैं शीत घटा है, नभ से कुहरा-धुंध छटा है, पक्षी कलरव राग सुनाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- काँधों पर काँवड़ें सजी हैं, बम भोले की धूम मची है, शिवशंकर को सभी रिझाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- तन-मन में मस्ती छाई है, अपनी बेरी गदराई है, सभी झूमकर हँसते गाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- निर्मल है नदियों का पानी, पेड़ों पर छा गई जवानी, खुश हो करके ये इठलाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- बच्चों अब मत समय गँवाओ, पढ़ने में भी ध्यान लगाओ, सीख काम की हम सिखलाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- प्रतिदिन पुस्तक को दुहराओ, पास परीक्षा में हो जाओ, श्रम से सभी सफलता पाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- |
सोमवार, 26 फ़रवरी 2024
दोहे "जाने कितने भेद" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- देना
नहीं निमन्त्रण, जब नीयत में खोट। कुटिल
भाव का आचरण, मन पर करते चोट।। -- जिसे
खिलाना हो नहीं, उसे बुलाना पाप। बिना
चले पथ पर कभी, मंजिल को मत नाप।। -- ओछी
गगरी ही करे, कल-कल शब्द निनाद। कर्मों
से ही व्यक्ति को, रक्खा जाता याद।। -- छाया को
देता नहीं, कण्टक वृक्ष खजूर। जो हैं
कुटिल स्वभाव के, रहना उनसे दूर।। -- करते
सदा परोक्ष में, इज्जत पर जो वार। जब होते
वो सामने, तब करते मनुहार।। -- ज्यादा
मीठे बोल में, होती झूठी प्रीत। ऐसे
लोगों से सदा, करो किनारा मीत।। -- जो चमचे स्टील के, वो हैं धवल सफेद। उनकी
बातों में भरे, जाने कितने भेद।। -- |
रविवार, 25 फ़रवरी 2024
दोहे "शासन में इंसाफ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- दुनियाभर
में छा गया, अपना भगवा रंग। जीवन
शैली के यहाँ, बदलेंगे अब ढंग।। -- आता
जब अच्छा समय, होता सब अनुकूल। खिलते
जाते हैं पंक में, कमल-कुमुद के फूल।। -- अच्छे
कामों में सदा, आते हैं अवरोध। चूहें-छिपकलियाँ
करें, रवि का बहुत
विरोध।। -- सूरज
रखता है नहीं, कभी किसी से बैर। वसुन्धरा
पर सभी की, सदा मनाता खैर।। -- करता
देश समाज से, जो भी सच्चा प्यार। नौका
को पतवार से, कर देता वो पार।। -- रामचन्द्र
के नाम पर, जिसने किया विवाद। जन-मानस
ने देश के, किया उसे बरबाद।। -- दीन
दुखी को चाहिए, शासन में इंसाफ। कूड़ा-करकट-गन्दगी, करो देश से साफ।। -- |
शनिवार, 24 फ़रवरी 2024
ग़ज़ल "ख़्वाब में वो हमें याद आते रहे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- दर्द की छाँव में
मुस्कराते रहे फूल बनकर सदा
खिलखिलाते रहे -- हमको राहे-वफा में
ज़फाएँ मिली ज़िन्दग़ी भर उन्हें
आज़माते रहे -- दिल्लगी थी हक़ीक़त
में दिल की लगी बर्क़ पर नाम उनका
सजाते रहे -- जब भी बोझिल हुई
चश्म थी नींद से ख़्वाब में वो हमें याद आते रहे -- पास आते नहीं, दूर जाते नहीं अपनी औकात हमको
बताते रहे -- हम तो ज़ालिम
मुहब्बत के दस्तूर को नेक-नीयत से पल-पल
निभाते रहे -- जब भी देखा सितारों
को आकाश में वो हसीं “रूप” अपना दिखाते रहे -- |
शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024
दोहे "पर्वत पर हिमपात" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- बादल छाये गगन में, रिम-झिम पड़ें फुहार। मौसम के बदलाव से, चिन्तित है संसार।1। -- धूप-छाँव मैदान में, पर्वत पर हिमपात। दिन में ताप बढ़ा हुआ, लेकिन शीतल रात।2। -- पुरवा-पछुआ चल रही, सर्दी गयी सिधार। कुछ दिन में आ जायगा, होली का त्यौहार।3। -- सारा उपवन महकता, चहक रहा मधुमास। होली का होने लगा, जन-जन को आभास।4। -- अंगारा बनकर खिला, वन में वृक्ष पलाश। रंग, गुलाल-अबीर
की, आने लगी सुवास।5। -- अम्मा मठरी बेलती, सजनी तलती जाय। सजना इनको प्यार से, चटकारे ले खाय।6। -- गेहूँ पर हैं बालियाँ, कुन्दन सा है रूप। सरसों और मसूर को, सुखा रही है धूप।7। -- |
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"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
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