-- मौसम कितना हुआ सुहाना। रंग-बिरंगे सुमन सुहाते। सरसों ने पहना पीताम्बर, गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- दिवस बढ़े हैं शीत घटा है, नभ से कुहरा-धुंध छटा है, पक्षी कलरव राग सुनाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- काँधों पर काँवड़ें सजी हैं, बम भोले की धूम मची है, शिवशंकर को सभी रिझाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- तन-मन में मस्ती छाई है, अपनी बेरी गदराई है, सभी झूमकर हँसते गाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- निर्मल है नदियों का पानी, पेड़ों पर छा गई जवानी, खुश हो करके ये इठलाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- बच्चों अब मत समय गँवाओ, पढ़ने में भी ध्यान लगाओ, सीख काम की हम सिखलाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- प्रतिदिन पुस्तक को दुहराओ, पास परीक्षा में हो जाओ, श्रम से सभी सफलता पाते। गेहूँ के बिरुए लहराते।। -- |
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मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024
बाल गीत "सीख काम की हम सिखलाते" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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