-- आया मास
सितम्बर, धीरे-धीरे दिन भी बीते। रूस, चीन, जापान सबल
हैं, अपनी ही भाषा से। -- |
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शनिवार, 21 सितंबर 2024
कविता "राज-काज में हिन्दी नही समाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 20 सितंबर 2024
बालकविता "पुरखों तक भोजन पहुँचाता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 19 सितंबर 2024
कवित्त "मेरे पूज्य पिता श्री घासीराम आर्य का दसवाँ वार्षिक श्राद्ध" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
19 सितम्बर, 2024 पितृ पक्ष की द्वितीया को मेरे पूज्य पिता श्री घासीराम आर्य के दसवें वार्षिक श्राद्ध के अवसर पर मेरे मन के उदगार श्रद्धा भाव से करूँगा आज श्राद्ध को, मेरे पूज्य पिता श्री आपको नमन है। जीवन भर आपने जो प्यार और दुलार दिया, मन की गहराइयों से आपको नमन है। कभी भी अभाव का आभास नहीं होने दिया, कर्म के पुजारी ऐसे तात को नमन है। रहे नहीं भाग्य के भरोसे आप जन्मभर, ऐसे खिलने वाले पारिजात को नमन है। -- आपके ही पथ का पथिक है सुत आपका, दिव्य-आत्मा प्रकाश पुंज को प्रणाम है। देव के समान सुख बाँटते रहे जो सदा, ऐसे पालनहार को तो कोटिशः प्रणाम है। जीने के जगत में सिखाये ढंग आपने, ईश के समान मेरे देव को प्रणाम है। मार्ग सुख सम्पदा के मुझको बताये सभी, ऐसी मातृभूमि और पिताजी को प्रणाम है। -- |
बुधवार, 18 सितंबर 2024
दोहे "पितरों का तर्पण करो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सबके अपने ढंग हैं, सबके अलग रिवाज। श्राद्ध पक्ष में कीजिए, विधि-विधान से काज।। -- श्रद्धा से ही कीजिए, निज पुरुखों को याद। श्रद्धा ही तो श्राद्ध की, होती है बुनियाद।। -- मात-पिता को मत कभी, देना तुम सन्ताप। पितृपक्ष में कीजिए, वन्दन-पूजा-जाप।। -- जिनके पुण्य-प्रताप से, रिद्धि-सिद्धि का वास। उनका कभी न कीजिए, जीवन में उपहास।। -- वंशबेल चलती रहे, ऐसा वर दो नाथ। पितरों का तर्पण करो, भक्ति-भाव के साथ।। -- अभ्यागत को देखकर, होना नहीं उदास। पूरे श्रद्धाभाव से, रक्खो व्रत-उपवास।। -- जग में आवागमन का, चलता रहता चक्र। अन्तरिक्ष में ग्रहों की, गति होती है वक्र।। -- अच्छे कामों को करो, सुधरेगा परलोक। नेकी के ही कर्म से, फैलेगा आलोक।। -- |
मंगलवार, 17 सितंबर 2024
दोहे "जन्मदिन-प्रधानमन्त्री नरेन्द्र भाई मोदी का जन्म दिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- गाँधी और पटेल ने, जहाँ लिया अवतार। मोदी का गुजरात ने, दिया हमें उपहार।। -- देवताओं से कम नहीं, होता है देवेन्द्र। सौ सालों के बाद में, पैदा हुआ नरेन्द्र।। -- साधारण परिवार का, किया चमन गुलजार। मोह छोड़ संसार का, त्याग दिया घर-बार।। -- युगों-युगों के बाद में, लेते जन्म सपूत। दयानन्द की धरा के, मोदी स्वयं सुबूत।। -- समझौता जिसको नहीं, बैरी से स्वीकार। उस मोदी के हाथ में, भारत की पतवार।। -- दामोदर नर इन्द्र से, ऊँचा माँ का भाल। अभिनन्दन जग कर रहा, ले पूजा का थाल।। -- जन्म-दिवस पर आपको, नमन हजारों बार। दीर्घ आयु की कामना, करता दोहाकार।। -- |
रविवार, 15 सितंबर 2024
दोहे "उत्तराखण्ड के मा. मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी जी का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- प्रान्त उत्तराखण्ड का, किया जिन्होंने नाम। पुष्कर सिंह धामी तुम्हें, करता देश सलाम।। -- कैसे भी हालात हों, कभी न मानी हार। चुनौतियों को सहज ही, किया सदा स्वीकार।। -- अपने बुद्धि-विवेक से, किये अनोखे काम। देवभूमि हित के लिए, निर्णय किए तमाम।। -- सामाजिक सद्भाव का, रखा सन्तुलन भाव। पर्वत से मैदान तक, रोक दिया बिखराव।। -- जन-जन की यह आस है, रच दोगे इतिहास। इसीलिए तो आप हो, मोदी जी के खास।। -- मंगलमय जीवन रहे, सदा रहो वागीश। जन्मदिवस पर आपके, देता हूँ आशीष।। -- |
दोहे "हिन्दी से अनुराग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- हिन्दी पर दुगनी पड़ी, महँगाई की मार। जीवन के हर मोड़ पर, हिन्दी की है हार।। -- महानगर की रेल में, लिखा हुआ सन्देश। महँगा है अब देश में, हिन्दी का परिवेश।। -- करते नौकरशाह हैं, हिंग्लिश से ही प्यार। हिन्दी से सब कर रहे, सौतेला व्यवहार।। -- आये कोई भी यहाँ, दल-दल की सरकार। हिन्दी का बेड़ा नहीं, कर पायेगी पार।। -- मन में अंग्रेजी भरी, मुख पर हिन्दी नाम। हिन्दी में सरकार का, नहीं चल रहा काम।। -- मुखर हुआ है इण्डिया, भारत है अब मौन। बात करेगा जगत में, हिन्दी की अब कौन।। -- कहनेभर को ही बचा, हिन्दी-हिन्दुस्तान। अंग्रेजी परिवेश की, चलती खूब दुकान।। -- मास सितम्बर में करें, हिन्दी का गुणगान। बाकी ग्यारह मास सब, सोते चादर तान।। -- गाँधी ने रक्खा सदा, हिन्दी से अनुराग। मोदी हिन्दी का करो, रौशन यहाँ चिराग।। -- |
शनिवार, 14 सितंबर 2024
चौदह दोहे "अपनी हिन्दी नागरी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- एक साल में एक दिन, हिन्दी का उद्घोष। हिन्दी वालो सोचिये, किसका है यह दोष।१। -- हिन्दी भाषा के लिए, कैसी है ये सोच। बोल-चाल में भी हमें, हिंग्लिश रही दबोच।२। -- कहनेभर से तो नहीं, होगा देश महान। सब बेमन से कर रहे, हिन्दी का गुणगान।३। -- अँग्रेजी के रंग में, रँगे हुए गुणवन्त। भाषण में भी बोलते, इंग्लिश सन्त-महन्त।४। -- हिन्दी का ये देश अब, लगता इंग्लिस्थान। देवनागरी का यहाँ, कैसे हो उत्थान।६। -- हिन्दी का दिन बन गया, हिन्दी-डे ही आज। गोरों के पदचिह्न पर, अब चल पड़ा समाज।६। -- भाषा का शव ढो रहे, सन्त-महन्त-फकीर। देवनागरी के पड़ी, पाँवों में जंजीर।७। -- नहीं राष्ट्रभाषा बनी, शोचनीय है बात। नौकरशाही कर रही, पग-पग पर उत्पात।८। -- हिन्दी-हिन्दुस्तान था, जिस दल का आधार। अब कठिनाई कौन सी, उनकी है सरकार।९। -- तोड़ दीजिए सब मिथक, हिन्दी करे पुकार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।१०। -- ओ काशी के सांसद, संसद के शिरमौर। हिन्दी के अपमान का, बन्द करो अब दौर।११। -- दशकों से जो सह रही, अपनों के ही दंश। अब हिन्दी का देश में, पोषित कर दो वंश।१२। -- जिस भाषा में माँगते, सबसे मत का दान। अब होना ही चाहिए, हिन्दी का सम्मान।१३। -- देवनागरी में लिखे, गीता-वेद पुराण। अपनी हिन्दी नागरी, भारत माँ का प्राण।१४। -- |
शुक्रवार, 13 सितंबर 2024
जन्मदिन "मेरे ज्येष्ठ पुत्र का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों! आज मेरे ज्येष्ठ पुत्र नितिन का जन्मदिन है। अपनी शुभकामनाओं के साथ मैं नितिन के कुछ दुर्लभ चित्र प्रस्तुत कर रहा हूँ। -- जीवन के क्रीड़ांगन में, तुम रहो विजेता। जन्मदिवस की बेला पर, आशीष तुम्हें मैं देता। -- आदर्शों की नींव हमेशा, अपने बच्चों में डालो। जैसे मैंने पाला तुमको, वैसे ही तुम भी पालो।। -- जीवनसाथी के संग में तुम, वाद-विवाद न पनपाना। आदर्शो की बेल हमेशा, घर-आँगन में उपजाना।। -- दादा-दादी, मात-पिता की सेवा करना मन से। कभी अनुज को अलग न करना, बेटा अपने जीवन से।। -- सच्चाई के साथ हमेशा निष्ठा से तुम काम करो। लम्बा जीवन जियो, और दुनिया में अपना नाम करो।। -- |
गुरुवार, 12 सितंबर 2024
गीत "दोनों पलकें बोझिल हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भरत-भूमि में हिन्दी की, आशाएँ लगती धूमिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। राहों में काँटे बिखरे हैं, कैसे अपनी मंजिल पायें। वेदनाओं का ज्वार प्रबल है, कैसे अपने गीत सुनायें। स्वस्थ हास-परिहास नहीं है, मक्कारों की महफिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। सूख गये हैं सुधा सिन्धु अब, हार गये हैं भाषा साधक। लुप्त हो गयी आज व्याकरण, भंग हो गये सारे मानक। हिन्दी का पथ नहीं सरल है। शब्द मौन हैं, भाव सुप्त हैं, दोनों पलकें बोझिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। छूट गयी पतवार हाथ से, कैसे होगा पार सरोवर? बिना कर्म के कैसे चमके, अपना फूटा आज मुकद्दर। हिन्दी वाले ही हिन्दी के लगते अब तो कातिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। युग बदला जीवन भी बदला, बदल गया परिवेश हमारा। किन्तु नहीं अब तक भी बदला, दकियानूसी देश हमारा। आज हमारी हिन्दी में क्यों नुक्ता-चीनी दाखिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। |
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