-- दीवाली पर शारदे, करना यह उपकार। जीवनभर सुनता रहूँ, वीणा की झंकार।। -- जलें सभी के नीड़ में, माटी के जब दीप। दीवाली पर देवता, रहते तभी समीप।। -- दीप जलाने के लिए, हो बाती में तेल। तब ही तम की नाक में, डालें दीप नकेल।। -- ब्रह्मा जी ने रच दिये, अलग-अलग आकार। किन्तु एक ही रूप के, रचता पात्र कुम्हार।। -- स्वस्थ रहे सब जगत में, दाता दो वरदान। बरखा-गरमी-शीत में, दुखी न हो इंसान।। -- ज्ञान बाँटने से मनुज, होता नहीं विपन्न। विद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न।। -- मात शारदे को कभी, मत बिसराना मित्र। मेधावी मेधा करे, उन्नत करे चरित्र।। -- |
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गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024
दोहे "दीवाली पर देवता, रहते सभी समीप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 30 अक्टूबर 2024
दोहे "धनतेरस-नरक चतुर्दशी की शुभकामनाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- देती नरकचतुर्दशी, सबको यह सन्देश। साफ-सफाई को करो, सुधरेगा परिवेश।। -- दीपक यम के नाम का, जला दीजिए आज। पूरी दुनिया से अलग, हो अपने अंदाज।। -- जन्मे थे धनवन्तरी, करने को कल्याण। रहें निरोगी सब मनुज, जब तक तन में प्राण।। -- भेषज लाये धरा से, खोज-खोज भगवान। धन्वन्तरि संसार को, देते जीवनदान।। -- रोग किसी के भी नहीं, आये कभी समीप। सबके जीवन में जलें, हँसी-खुशी के दीप।। -- त्यौहारों की शृंखला, पावन है संयोग। इसीलिए दीपावली, मना रहे सब लोग।। -- कुटिया-महलों में जलें, जगमग-जगमग दीप। सरिताओं के रेत में, मोती उगले सीप।। -- आप सभी को धनतेरस, नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ! ♥डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'♥ -- धनतेरस के पर्व पर, सजे हुए बाज़ार। घर में लाओ आज कुछ, नये-नये उपहार।। झालर-दीपों से सजें, आज सभी के गेह। मन के नभ से आज तो, बरसे मधुरिम नेह।। रहे हमेशा देश में, उत्सव का माहौल। मिष्ठानों का स्वाद ले, बोलो मीठे बोल।। सरस्वती के साथ हों, लक्ष्मी और गणेश। तब आएगी सम्पदा, सुधरेगा परिवेश।। उल्लू बन जाना नहीं, पाकर द्रव्य अपार। धन-दौलत के साथ हो, मेधा का उपहार।। |
मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024
गीत "दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की शुभकामनाएँ"(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सोमवार, 28 अक्टूबर 2024
गीत "मधुर वाणी बनाएँ हम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- हुआ मौसम गुलाबी अब, चलो दीपक जलाएँ हम। घरों में धान आये हैं, दिवाली को मनाएँ हम। -- बढ़ी है हाट में रौनक, सजी फिर से दुकानें हैं, मधुर मिष्ठान को खाकर, मधुर वाणी बनाएँ हम। -- मनो-मालिन्य को अपने, मिटाने का समय है अब, घरों के साथ आँगन को, करीने से सजाएँ हम। -- छँटें बादल गगन से हैं, हुए निर्मल सरोवर हैं, चलो तालाब में अपने, कमल मोहक खिलाएँ हम। -- सुमन आवाज देते हैं, चलो सींचे बगीचों को, चमन मैं आज फिर से, कुछ नये पौधे उगाएँ हम। -- |
रविवार, 27 अक्टूबर 2024
दोहे "दीपक एक कतार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- दीपक जलता है तभी, जब हो बाती-तेल। खुशिया देने के लिए, चलता रहता खेल।१। -- तम को हरने के लिए, खुद को रहा जलाय। दीपक काली रात को, आलोकित कर जाय।२। -- झिलमिल-झिलमिल जब जलें, दीपक एक कतार। तब बिजली की झालरें, लगती हैं बेकार।३। -- मेधावी मेधा करें, उन्नत करें चरित्र। मातु शारदे को नहीं, बिसरा देना मित्र।४। -- लछमी और गणेश के, साथ शारदे होय। उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।५। -- दीवाली का पर्व है, सबको दो उपहार। आतिशबाजी का नहीं, दीपों का त्यौहार।६। -- दौलत के मद में नहीं, बनना कभी उलूक। शिक्षा लेकर दीप से, करना सही सुलूक।७। -- |
शनिवार, 26 अक्टूबर 2024
गीत "नन्हें दीप जलायें हम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दीवाली पर आओ मिलकर, नन्हें दीप जलायें हम घर-आँगन को रंगोली से, मिलकर खूब सजायें हम -- आओ स्वच्छता के नारे को दुनिया में साकार करें चीन देश की चीजों को हम कभी नहीं स्वीकार करें छोड़ साज-संगीत विदेशी देशी साज बजायें हम घर-आँगन को रंगोली से, मिलकर खूब सजायें हम -- कंकरीट की खेती से धरती को हमें बचाना है खेतों में श्रम करके हमको गेहूँ-धान उगाना है अपने खेतों की मेढ़ों पर आओ वृक्ष लगायें हम घर-आँगन को रंगोली से, मिलकर खूब सजायें हम -- मजहब के ठेकेदारों की बन्द दुकानें करनी हैं भाईचारे की भारत में नयी नींव अब धरनी हैं लालन-पालन करने वाली माँ की महिमा गायें हम घर-आँगन को रंगोली से, मिलकर खूब सजायें हम -- असली घर में नकली पौधों का, अब कोई काम न हो कुटिया में महलों में अपने कहीं छलकते जाम न हो बन्द करो मयखाने सारे शासन को चेतायें हम घर-आँगन को रंगोली से, मिलकर खूब सजायें हम -- देव संस्कति को अपनाओ रक्ष सभ्यता को छोड़ो राम और रहमान एक हैं उनसे ही नाता जोड़ो भेद-भाव, अलगाववाद का वातावरण मिटायें हम घर-आँगन को रंगोली से, मिलकर खूब सजायें हम -- |
गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024
दोहे "अहोई अष्टमी-पर्व अहोई खास" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- पर्व अहोई-अष्टमी, व्रत-पूजन का पर्व। माताओं को पुत्र पर, दुनियाभर में गर्व।। -- कुलदीपक के है लिए, पर्व अहोई खास। होती अपने पुत्र से, माताओं
को आस।। उनके सुत का हो नहीं, मुखड़ा
कभी उदास।। रहता बारह मास ही, पर्वों
का परिवेश।। बदलो पुरुष प्रधान का, जग
में रस्म-रिवाज।। बेटों जैसा दीजिए, उनको
प्यार-दुलार।। -- देते हैं त्यौहार ये, दुनियाभर
को सीख।। त्यौहारों की रीत पर, हमको होता गर्व।। -- |
बुधवार, 23 अक्टूबर 2024
ग़ज़ल "अब बगीचे में ग़ुलों पर आब है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- ज़िन्दगी इक खूबसूरत ख़्वाब है रात में उगता हुआ माहताब है -- था कभी ओझल हुआ जो रास्ता अब नज़र आने लगा मेहराब है -- आसमां से छँट गयीं अब बदलियाँ अब खुशी का आ गया सैलाब है -- पत्थरों में प्यार का ज़ज़्बा बढ़ा अब बगीचे में ग़ुलों पर आब है -- फूल पर मँडरा रहा भँवरा रसिक एक बोसे के लिए बेताब है -- शाम ढलने पर कुमुद हँसने लगे भा रहा कीचड़ भरा तालाब है -- रोज़ आती रौशनी की रश्मियाँ ख़्वाब का ये “रूप” भी नायाब है -- |
सोमवार, 21 अक्टूबर 2024
आलेख “दुनिया का सबसे कुशल वास्तुविद” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 20 अक्टूबर 2024
दोहे "करवे का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--करती सभी सुहागिनें, निज पतियों पर गर्व। |
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