वक्त
गुजरा जिन्दगी का, अब
बुढ़ापा आ गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।। जन्मदिन
के जश्न का, संयोग
कितना अटपटा है, साल
इक मेरी उम्र का, आज
जीवन से घटा है, रूप
की इस धूप पर अब, घन
घटा बन छा गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।1। जिन्दगी
है जेल लेकिन, खूब
मुझको भा रही है, वाटिका
परिवार की, अब
रास मुझको आ रही है, छत्र-छाया
को सलोनी रूप
लेकर छा गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।2। रौशनी
के कण लुटाता हूँ, अभी
खद्योत बनकर, पार
भवसागर करूँगा, मैं
सबल जलपोत बनकर, कर्म
फल को भुगतने का, समय
मेरा आ गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।3। जिन्दगी
की डोर को, जगदीश
मेरी थामना, स्वस्थ
रहते प्राण निकले, बस
यही है कामना, चाहता
जो प्राण मेरा, वह
परमपद पा गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।4। |
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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025
जन्मदिन गीत "जन्मदिन फिर आ गया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 2 फ़रवरी 2025
वासन्ती गीत "अब बसन्त का मौसम आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कुदरत ने शृंगार सजाया। अब बसन्त का मौसम आया।। कोयल पंचम सुर में गाती, गंगा कलकल राग सुनाती, नदियों का पानी निर्मल है, सरसों का पीला आँचल है, लेकर सिन्दूरी सपनों को, मन उपवन मुस्काया। अब बसन्त का मौसम आया।1। खेतों की है छटा निराली, फूल रही गेहूँ की डाली, धरती ने धारा गहना है, पेड़ों ने पल्लव पहना है, जामुन, आम-नीम बौराया। अब बसन्त का मौसम आया।2। झड़े वृक्ष के पात पुराने, यौवन आया गीत सुनाने, हरहर-बमबम गाती टोली, जल्दी आने वाली होली, हमजोली ने मन भरमाया। जामुन, आम-नीम बौराया। अब बसन्त का मौसम आया।3। संगम तट पर कुम्भ लगा है, सत्य-सनातन भाव जगा है, खुश हैं नागा साधू-चेले, मेल बढ़ाते उत्सव-मेले, कर लो कुन्दन अपनी काया। अब बसन्त का मौसम आया।4। |
रविवार, 26 जनवरी 2025
देशभक्ति गीत "संसार में सब से न्यारा वतन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- हमको प्राणों ,से प्यारा, हमारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।। गंगा-जमुना निरन्तर, यहाँ बह रही, वादियों की हवाएँ, कथा कह रही, राम और श्याम का है, दुलारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।1। बुद्ध-गांधी अहिंसा के आधार थे, सत्य नौका की मजबूत पतवार थे, जान वीरों ने देकर, सँवारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।2। शैल-शिखरों पे, संजीवनी की छटा, सर्दी-गर्मी कभी है, कभी घन-घटा, कितनी सुन्दर धरा, कितना प्यारा गगन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।3। पेड़-पौधों का, निखरा हुआ रूप है, घास है मखमली, गुनगुनी धूप है, साधु-सन्तों ने तपकर, निखारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।4। सबको पूजा-इबादत का, अधिकार है, सर्व धर्मों का सम्भाव-सत्कार है, दीन-दुखियों को देता, सहारा वतन। सारे संसार में, सब से न्यारा वतन।5। -- |
मंगलवार, 14 जनवरी 2025
चौदह दोहे "उत्तरायणी पर्व" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- आया है उल्लास का, उत्तरायणी पर्व। झूम रहे आनन्द में, सुर-मानव-गन्धर्व।१। -- जल में डुबकी लगाकर, पावन करो शरीर। नदियों में बहता यहाँ, पावन निर्मल नीर।२। -- जीवन में उल्लास के, बहुत निराले ढंग। बलखाती आकाश में, उड़ती हुई पतंग।३। -- तिल के मोदक खाइए, देंगे शक्ति अपार। मौसम का मिष्ठान ये, हरता कष्ट-विकार।४। -- उत्तरायणी पर्व के, भिन्न-भिन्न हैं नाम। लेकर आता हर्ष ये, उत्सव ललित-ललाम।५। -- सूर्य रश्मियाँ आ गयीं, खिली गुनगुनी धूप। शस्य-श्यामला धरा का, निखरेगा अब रूप।६। -- भुवनभास्कर भी नहीं, लेगा अब अवकाश। कुहरा सारा छँट गया, चमका भानुप्रकाश।७। -- अब अच्छे दिन आ गये, हुआ शीत का अन्त। धीरे-धीरे चमन में, सजने लगा बसन्त।८। -- रजनी आलोकित हुई, खिला चाँद रमणीक। देखो अब आने लगे, युवा-युगल नज़दीक।९। -- पतझड़ का मौसम गया, जीवित हुआ बसन्त। नवपल्लव पाने लगा, अब तो बूढ़ा सन्त।१०। -- पौधों पर छाने लगा, कलियों का विन्यास। दस्तक देता द्वार पर, खड़ा हुआ मधुमास।११। -- रवि की फसलों के लिए, मौसम ये अनुकूल। सरसों पर आने लगे, पीले-पीले फूल।१२। -- भँवरा गुन-गुन कर रहा, तितली करती नृत्य। खुश होकर करते सभी, अपने-अपने कृत्य।१३। -- आज सार्थक हो गयी, पूजा और नमाज। जीवित अब होने चला, जीवन में ऋतुराज।१४। -- |
सोमवार, 13 जनवरी 2025
दोहे "लोहड़ी पर्व-सुधरेगा परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- नये साल का आगमन, लाया है सौगात। पर्व लोहड़ी में करो, सबसे मीठी बात।। -- कुदरत ने हमको दिया, षड ऋतुओं का दान। खेतों ने पहना हुआ, पीताम्बर परिधान। -- शैल शिखर पर हो रहा, जम करके हिमपात। तिल-गुड़ की की दे दीजिए, अपनों को सौगात।। -- सरदी में अच्छा लगे, खिचड़ी का आहार। मूँगफली खाकर करो, तन के दूर विकार।। -- पर्व लोहड़ी देश को, देती है सन्देश। थोड़े दिन के बाद में, सुधरेगा परिवेश।। -- झड़बेरी पर छा गये, खट्टे-मीठे बेर। धूप सेंकने कोकिला, बैठी है मुंडेर।। -- सरसों फूली खेत में, लहर-लहर लहराय। षटपद-मधु की मक्खियाँ, गुन-गुन गीत सुनाय।। -- मिलजुल कर सब प्रेम से, भँगड़ा करते लोग। लोहड़ी में उत्साह से, लगा रहे हैं भोग।। -- |
रविवार, 12 जनवरी 2025
दोहे "घोषित हिन्दू देश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- कहने भर से तो नहीं, होगा हिन्दू देश। आदिकाल से
देश में, है हिन्दू परिवेश।1। -- हुआ धर्म
के नाम पर, घोषित पाकिस्तान। वंचित
हिन्दू देश से, क्यों है हिन्दुस्तान।2। -- बँटवारे
में जब लिया, मजहब का आधार। फिर कैसे
शासक हुए, इतने क्यों लाचार।3। -- भावनाओं पर
कर लिया, कुर्सी ने अधिकार। मत-मजहब के
फेर में, हुई करारी हार।4। -- सच्चाई दम
तोड़ती, झूठ हो रहा पुष्ट। परम्परा को
नष्ट कर, खुश होते हैं दुष्ट।5। -- भगवा की
सरकार से, जनमानस को आस। बुझा दीजिए
नीति से, अब हिन्दू की प्यास।6। -- गौ-गंगा
मइया करे, कब से करुण पुकार। मिटा दीजिए
देश से, अब तो अत्याचार।7। -- |
मंगलवार, 7 जनवरी 2025
"अंकुर हिन्दी पाठमाला में बिना मेरी अनुमति के मेरी बाल कविता"
आज “चैतन्य का कोना” ब्लॉग पर अचानक ही डॉ. मोनिका शर्मा की इस पोस्ट पर भी नजर पड़ी। ब्लॉगिंग से जुड़े सभी लोग रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी की बाल कवितायेँ पढ़ ही चुके हैं । मुझे भी उनकी बाल कवितायेँ बहुत पसंद हैं । आज चैतन्य की हिन्दी की टेक्सटबुक (अंकुर हिन्दी पाठमाला) खोली तो इन दिनों स्कूल में पढ़ाई जा रही बाल कविता “कंप्यूटर” रूपचंद्र शास्त्री जी की ही थी । बहुत अच्छा लगा.... सुखद आश्चर्य हुआ कि मैं उन्हें पहले से जानती हूँ जब से ब्लॉगिंग की दुनिया से जुड़ी हूँ, उनकी बालसुलभ रचनाएँ पढ़ती आ रही हूँ "कम्प्यूटर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) मन को करता है मतवाला। कम्प्यूटर है बहुत निराला।। यह इसका अनिवार्य भाग है। कम्प्यूटर का यह दिमाग है।। चलते इससे हैं प्रोग्राम। सी.पी.यू.है इसका नाम।। गतिविधियाँ सब दिखलाता है। यह मॉनीटर कहलाता है।। सुन्दर रंग हैं न्यारे-न्यारे। आँखों को लगते हैं प्यारे।। इसमें कुंजी बहुत समाई । टाइप इनसे करना भाई।। सोच-सोच कर बटन दबाना। हिन्दी-इंग्लिश लिखते जाना।। यह चूहा है सिर्फ नाम का। माउस होता बहुत काम का।। यह कमाण्ड का ऑडीटर है। इसके वश में कम्प्यूटर है।। कविता लेख लिखो जी भर के। तुरन्त छाप लो इस प्रिण्टर से।। नवयुग का कहलाता ट्यूटर। बहुत काम का है कम्प्यूटर।। |
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