-- बैशाखी का आ गया, देखो पावन पर्व। खुशियाँ सबको बाँटते, सुर-नर, मुनि-गन्धर्व।। -- कोई गरवा कर रहा, कोई भँगड़ा नृत्य। खुशियों से भरपूर हैं, उत्सव के सब कृत्य।। -- तितली पंख हिला रही, भँवरा गाता गीत। उपवन में मधुमक्खियाँ, छेड़ रहीं संगीत।। -- कोई गीता बाँचता, कोई पढ़े कुरान। पाकर नये अनाज को, नाच रहा इंसान।। -- सूरज पर यौवन चढ़ा, हुआ शीत का अन्त। पतझड़ का मौसम गया, खुलकर हँसा बसन्त।। -- चहक उठे कलियाँ-सुमन, महक उठे उद्यान। पेड़ों ने धारण किये, नवपल्लव परिधान।। -- वन-उपवन से उठ रही, मादक-मस्त सुगन्ध। अनुबन्धों साथ में, कुदरत का सम्बन्ध।। -- काफल और बुराँश की, देखो छटा अनूप। वासन्ती परिवेश में, लाल हो रहा रूप।। -- बया ताड़ के पेड़ पर, बुनती अपना नीड़। गावों में भी हो गयी, अब नगरों सी भीड़।। -- |
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रविवार, 13 अप्रैल 2025
दोहे "खुशियों से भरपूर हैं, बैशाखी के कृत्य" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सोमवार, 7 अप्रैल 2025
गीत "हर समय सुहाना है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- कुछ उसने जाना है, कुछ मैंने जाना है। जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।। -- कुछ अच्छा करने को, सब लोग यहाँ आते हैं, रीती गागर लेकर, लेकिन जग से जाते हैं, कुछ पुण्य कमा लो भाई, पूजा-वन्दन करके- गंगा तट पर आकर भी, कुछ नहीं नहाते हैं, किस्मत में जो लिक्खा, उतना ही पाना है। जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।। -- मिलता अच्छे कर्मों का, दुनिया में यही सिला, जो खिलकर मुस्काया, उसको ही प्यार मिला, उपवन में आकर भी, ताजगी न जो पाया- बे-वजह रहा करता, कुछ शिकवा और गिला, मत दोष वक्त को दो, हर समय सुहाना है। जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।। -- मैंने क्यों ज्यादा पाया, उसने ज्यादा क्यों खोया वैसा ही सबने पाया, है जैसा सबने बोया, मन साफ जरा करके, तन साफ करो अपना- उतना ही साफ दिखा वो, जिसने वस्त्रों को धोया, मन को भक्ति के जल से, हर रोज नहाना है। जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।। -- गुलशन हरियाली बिन, लगता वीराना है, उजड़ी बगिया में फिर, कुछ पेड़ लगाना है, पुरखों की खातिर तुम, बन जाओ भगीरथ से- इक और नई गंगा, धरती पे बहाना है। मानवता का हमको, अस्तित्व बचाना है। जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।। -- |
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