सम्बन्धों पर हो रहे, जग में शोध प्रबन्ध। बन जाते हैं किसलिए, जीवन में सम्बन्ध।। अधिक समय टिकता नहीं, सम्बन्धों का योग। अनचाहे सम्बन्ध में, होते सदा वियोग।। कभी जुदाई है यहाँ, और कभी संयोग। खोज रहे इतिहास हैं, सम्बन्धों का लोग।। मन तो मिलता है नहीं, तन का है अनुबन्ध। कैसे अन्तिम समय तक, टिकें यहाँ सम्बन्ध।। मन के उपवन में उगे, झाड़ और झंखाड़। सम्बन्धों के नाम पर, होता है खिलवाड़।। जब से आया जगत में, नंगेपन का काल। सम्बन्धों में आ गया, तब से ही भूचाल।। पावन और पवित्र है, सम्बन्धों की रीत। सोच-समझकर कीजिए, अनजानों से प्रीत।। |
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शनिवार, 17 मई 2025
दोहे "सम्बन्धों की रीत" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 16 मई 2025
बालकविता "कौओं का जोड़ा कितना प्यारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- काले रंग का चतुर-चपल, पंछी है सबसे न्यारा। डाली पर बैठा कौओं का, जोड़ा कितना प्यारा। -- नजर घुमाकर देख रहे ये, कहाँ मिलेगा खाना। जिसको खाकर कर्कश स्वर में, छेड़ें राग पुराना।। -- काँव-काँव का इनका गाना, सबको नहीं सुहाता। लेकिन बच्चों को कौओं का, सुर है बहुत लुभाता।। -- कोयलिया की कुहू-कुहू, बच्चों को रास न आती। कागा की प्यारी सी बोली, इनका मन बहलाती।। -- देख इसे आँगन में, शिशु ने बोला औआ-औआ। खुश होकर के काँव-काँवकर, चिल्लाया है कौआ।। -- |
गुरुवार, 15 मई 2025
दोहे "जागीर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- होते गीत-अगीत हैं, कविता का आधार। असली लेखन है वही, जिसमें हों उदगार।। -- मंजिल पर हर कदम का, रखना सम अनुपात। स्वारथ से बनती नहीं, जग में कोई बात।। -- जो भूखा हो ज्ञान का, दो उसको उपदेश। जितने से जीवन चले, उतना करो निवेश।। -- तालाबों की पंक में, खिले कमल का फूल। वो ही तो परिवेश है, जो होता अनुकूल।। -- चन्दा से है चाँदनी, सूरज से हैं धूप। सबका अपना ढंग है, सबका अपना रूप।। -- थोड़े से पीपल बचे, थोड़े बरगद-नीम। इसीलिए तो आ रहे, घर में रोज हकीम।। -- परछाई में देखते, लोग यहाँ तसबीर। थोड़े दिन की ही बची, पुरखों की जागीर। -- |
बुधवार, 14 मई 2025
गीत "सजी माँग सिन्दूरी होगी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- महक रहा है मन का आँगन, दबी हुई कस्तूरी होगी। दिल की बात नहीं कह पाये, कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- सूरज-चन्दा जगमग करते, नीचे धरती, ऊपर अम्बर। आशाओं पर टिकी ज़िन्दग़ी, अरमानों का भरा समन्दर। कैसे जाये श्रमिक वहाँ पर, जहाँ न कुछ मजदूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- प्रसारण भी ठप्प हो गया, चिट्ठी की गति मन्द हो गयी। लेकिन चर्चा अब भी जारी, भले वार्ता बन्द हो गयी। ऊहापोह भरे जीवन में, शायद कुछ मजबूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- हर मुश्किल का समाधान है, सुख-दुख का चल रहा चक्र है। लक्ष्य दिलाने वाला पथ तो, कभी सरल है, कभी वक्र है। चरैवेति को भूल न जाना, चलने से कम दूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- अरमानों के आसमान का, ओर नहीं है, छोर नहीं है। दिल से दिल को राहत होती, प्रेम-प्रीत पर जोर नहीं है। जितना चाहो उड़ो गगन में, चाहत कभी न पूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- “रूप”-रंग पर गर्व न करना, नश्वर काया, नश्वर माया। बूढ़ा बरगद क्लान्त पथिक को, देता हरदम शीतल छाया। साजन के द्वारा सजनी की, सजी माँग सिन्दूरी होगी। कुछ तो बात जरूरी होगी।। -- |
मंगलवार, 13 मई 2025
गीत "चाय हमारे मन को भायी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- वही हमारे मन को भाई।। -- कैसे जुड़ा चाय से नाता, मैं इसका इतिहास बताता, शुरू-शुरू में इसकी प्याली, गोरों ने थी मुफ्त पिलाई। वही हमारे मन को भाई।। -- यह जीवन का अंग बनी अब, बहुत चाव से पीते हैं सब, बिना चाय के मेहमानों को, खातिर नहीं समझ में आई। वही हमारे मन को भाई।। -- बच्चों को नहीं दूध सुहाता, चाय देख मन खुश हो जाता, गर्म चाय की चुस्की लेकर, बीच-बीच में मठरी खाई। वही हमारे मन को भाई।।-- |
सोमवार, 12 मई 2025
दोहे " बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- जो ले जाये जो लक्ष्य तक, वो पथ होता शुद्ध। भारत तुम्हें पुकारता, आओ गौतम बुद्ध।। -- बोधि वृक्ष की छाँव में, मिला बुद्ध को ज्ञान। अन्तर्मन से छँट गया, तम का सब अज्ञान।। -- सुत-दारा को छोड़कर, वन में किया निवास। राज-पाट सिद्धार्थ को, कभी न आया रास।। -- जिसका अन्तःकरण हो, सभी तरह से शुद्ध। जीता जो जग के लिए, वो कहलाता बुद्ध।। -- बुद्धम् शरणम् आइए, पकड़ बुद्धि की डोर। चलो धर्म की राह में, होकर भाव-विभोर।। -- दिव्य ज्ञान की खोज में, मानव हो संलग्न। बौद्ध धर्म कहता यही, रहो ध्यान में मग्न।। -- सत्य-अहिंसा दूत थे, प्यारे गौतम बुद्ध। दूर किया जिसने सभी, वातावरण अशुद्ध।। -- |
रविवार, 11 मई 2025
दोहे "मातृ-दिवस" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- मातृ-दिवस पर माँ को प्रणाम करते हुए -0- -- पैंसठ वर्षों तक मिला, माँ का प्यार-दुलार। माँ तुझ बिन सूना लगे, अब मुझको संसार।। -- होता है धन-माल से, कोई नहीं सनाथ।। सिर पर होना चाहिए, माता जी का हाथ।। -- जिनके सिर पर है नहीं, माँ का प्यारा हाथ। उन लोगों से पूछिए, कहते किसे अनाथ।। -- लालन-पालन में दिया, ममता और दुलार। बोली-भाषा को सिखा, करती माँ उपकार।। -- जगदम्बा के रूप में, रहती है हर ठाँव। माँ के आँचल में सदा, होती सुख की छाँव।। -- सुख-दुख दोनों में रहे, कोमल और उदार। कैसी भी सन्तान हो, माँ देती है प्यार।। -- होता माता के बिना, यह संसार-असार। एक साल में एक दिन, माता का क्यों वार।। -- करते माता-दिवस का, क्यों छोटा आकार। प्रतिदिन करना चाहिए, माँ से प्यार अपार।। -- |
बुधवार, 7 मई 2025
दोहे "घर में घुसकर ध्वस्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
साहस पर होते रहे, कितने वाद-विवाद। सेना ने बदला लिया, दो हफ्तों के बाद।1। पापी पाकिस्तान से, नहीं देश को नेह। मोदी जी की बात पर, मत करना सन्देह।2। दहशत के अड्डे किये, घर में घुसकर ध्वस्त। आतंकी आकाओं के, हुए हौसले पस्त।3। भारत देना जानता, खुद माकूल जवाब। निर्दोषों के खून का, करता साफ हिसाब।4। जब हठधर्मी पर अड़ें, मुल्ला और इमाम। भारत करना जानता, उनका काम तमाम।5। रखना है सदभाव का, भारत में परिवेश। जाति-धर्म के नाम पर, नहीं बँटेगा देश।6। सम्बन्धों के तार अब, सभी गये हैं टूट। बैरी पाकिस्तान को, नहीं मिलेगी छूट।7। -- |
गुरुवार, 1 मई 2025
दोहे "श्रमिक-दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- श्रमिकों से जिनका नहीं, कोई भी सम्बन्ध। श्रमिक-दिवस पर लिख रहे, वो भी शोध-प्रबन्ध।। -- सुबह दस बजे जागते, सोते आधी रात। खाते माल हराम का, करते श्रम की बात।। -- काँटे और गुलाब का, कैसा है संयोग। अन्तर आलू-आम का, नहीं जानते लोग।। -- नहीं गये जो बाग में, देखा नहीं बसन्त। वही बने हैं आज भी, मजदूरों के सन्त।। -- जिसने झेली ही नहीं, शीत-ग्रीष्म-बरसात। वो जननायक कर रहा, मजदूरों की बात।। -- सस्ता बिका किसान का, गेहूँ-चावल-दाल। जाते ही बाजार में, आ जाता भूचाल।। -- महँगी बहुत शराब क्यों, कोई नहीं जवाब। क्यों होती श्रमवीर की, हालत यहाँ खराब।। -- सत्ता में आये भले, कोई भी सरकार। कोई श्रमिक-किसान का, नहीं करे उपकार।। -- |
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