तब तक जहाँ में रहना, जब तक है आबोदाना सुख के सभी हैं साथी, दुख का कोई न संगी होते हैं गमजदा जब, हँसता है तब जमाना घर की तलाश में जो, दर-दर भटक रहे हैं खानाबदोश को तो, मिलता नहीं ठिकाना अपना नहीं बनाया, रहने को आशियाना लेकिन लगा रहा है, वो रोज शामियाना मंजिल मिली न अब तक, दर-दर भटक रहा है बेरंग जिन्दगी का, उलझा है ताना-बाना अशआर हैं अधूरे, ग़ज़लें सिसक रहीं हैं दुनिया समझ रही है, लहजा है शायराना हुनर को इस जहाँ में, कोई न पूछता है मालिक के दोजहाँ में, खाली हुआ खजाना लड़ते नहीं कभी भी, बगिया में फूल-काँटे आया न आदमी को, आपस में सुर मिलाना दिल की नजर धुँधली, है “रूप” तिलमिलाता महफिल में मुफलिसी की, अशआर गुनगुनाना -- |
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बुधवार, 25 जून 2025
ग़ज़ल "उलझा है ताना-बाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
शनिवार, 21 जून 2025
जन्मदिन "पूरे किये विनीत ने, आज छियालिस साल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- छोटे पुत्र विनीत का, जन्मदिवस है आज। बादल नभ में खुशी से, बजा रहा है साज।। -- पूरे किये विनीत ने, आज छियालिस साल। जीवन सुखमय हो गया, सुधर गयें हैं हाल।। -- दो हजार पच्चीस में, बरसी हैं सौगात। पसरा है परिवार में, खुशियों का अनुपात।। -- जन्मी पन्द्रह साल में, देवी सी सन्तान। किलकारी से गूँजता, अब यह कुंज-वितान।। -- अनुकम्पा का ईश की, कैसे करूँ बखान। सेवारत सरकार में, मेरी हैं सन्तान।। -- इस पड़ाव में उमर के, नहीं मुझे कुछ चाह। बस मुझको परिवार की, मिलती रहे पनाह।। -- देता शुभ आशीष मैं, तुमको सौ-सौ बार। रहना घर-परिवार में, बनकर सदा उदार।। -- अभ्यागत के लिए तुम, बन्द न करना द्वार। कभी किसी भी मोड़ पर, होना मत लाचार।। -- |
शुक्रवार, 20 जून 2025
इक्कीस दोहे-योग दिवस "होंगे सभी निरोग"
-- योग-ध्यान का दे दिया, अब जग को सन्देश। विश्वगुरू कहलायगा, फिर से भारत देश।१। -- खुश होकर अपना रहे, नर-नारी अब योग। भारत के पीछे चले, दुनियाभर के लोग।२। -- पातंजलि की राह पर, चलने लगा हुजूम। रामदेव के योग की, दुनियाभर में धूम।३। -- ऋषि-मुनियों के योग से, होंगे सभी निरोग। भोगवाद को छोड़कर, अपनायेंगे योग।४। -- भारत ने ही दिया था, अपना योग सुझाव। राष्ट्रसंघ में हो गया, पारित यह प्रस्ताव।५। -- अल्प-अवधि में सभी ने, मान लिया अनुरोध। नहीं किसी भी देश ने, इसका किया विरोध।६। -- पिछले दशकों में नहीं, जागी थी सरकार। वर्तमान सरकार ने, किया सपन साकार।७। -- जैसे-जैसे आ रहा, योग-दिवस नज़दीक। कट्टरपन्थी छोड़ कर, लोग हुए निर्भीक।८। -- योग-दिवस का बन गया, आज सुखद-संयोग। सबको करना चाहिए, नित्य-नियम से योग।९। -- आया मास अषाढ़ का, योग कर रहे सन्त। धरा-गगन मिलते जहाँ, होता वही दिगन्त।१०। -- नद-नाले सूखे पड़े, सूख गये हैं ताल। गरमी के कारण हुए, जन्तु सभी बेहाल।११। -- मौसम अब तक था नहीं, लोगों के अनुरूप। अनल बरसता गगन से, बदन जलाती धूप।१२। -- सूखे बाग-तड़ाग सब, उड़ती भू पर धूल। खेतों में पसरे हुए, चारों ओर बबूल।१३। -- तकते सब आकाश को, बरसे सरस फुहार। इन्द्रदेव की कर रहा, सारा जग मनुहार।१४। -- बादल छाये गगन पर, सूरज हुआ विलीन। बारिश आने का हुआ, सबको आज यकीन।१५। -- लगा रहे मन में सभी, बरखा का अनुमान। पीला नभ ये कह रहा, आयेगा तूफान।१६। -- दुनियाभर में बन गया, योग-दिवस इतिहास। योगासन सब कीजिए, अवसर है यह खास।१७। -- मानुष जन्म मिला हमें, करने को शुभकाम। पापकर्म करके इसे, मत करना बदनाम।१८। -- थोड़े से ही योग से, काया रहे निरोग।। तन-मन को निर्मल करे, योग भगाए रोग।१९। -- जगतनियन्ता ईश ने, हमको दिया विधान। जीवन जीने के लिए, राह चुनों आसान।२०। -- सरदी-गरमी हो भले, चाहे हो बरसात। करना योग प्रचार को, देश-नगर देहात।२१। -000- |
रविवार, 15 जून 2025
"पितृ दिवस पर विशेष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
श्री घासीराम आर्य मेरे पूज्य पिता जी! ![]() यह घटना सन् 1979 की है। उस समय मेरा निवास जिला-नैनीताल की नेपाल सीमा पर स्थित बनबसा कस्बे में था। ![]() पिता जी और माता जी उन दिनों नजीबाबाद में रहते थे। लेकिन मुझसे मिलने के लिए बनबसा आये हुए थे। पिता जी की आयु उस समय 55-60 के बीच की रही होगी। शाम को वो अक्सर बाहर चारपाई बिछा कर बैठे रहते थे। उस दिन भी वो बाहर ही चारपाई पर बैठे थे। तभी एक व्यक्ति मुझसे मिलने के लिए आया। वो जैसे ही मेरे पास आया, पिता जी एक दम तपाक से उठे और उसका हाथ इतना कस कर पकड़ा कि उसके हाथ से चाकू छूट कर नीचे गिर पड़ा। तब मुझे पता लगा कि यह व्यक्ति तो मुझे चाकू मारने के लिए आया था। पिता जी ने अब उस गुण्डे को अपनी गिरफ्त में ले लिया था और वो उनसे छूटने के लिए फड़फड़ा रहा था परन्तु पकड़ ऐसी थी कि ढीली होने का नाम ही नही ले रही थी। अब तो यह नजारा देखने के लिए भीड़ जमा हो गई थी। इस गुण्डे टाइप आदमी की भीड़ ने भी अच्छी-खासी पिटाई लगा दी थी। छूटने का कोई चारा न देख इसने यह स्वीकार कर ही लिया कि डाक्टर साहब के पड़ोसी ने मुझे चाकू मारने के लिए 1000रुपये तय किये थे और इस काम के लिए 100 रुपये पेशगी भी दिये थे। आज वह गुण्डा और मेरा उस समय का सुपारी देने वाला पड़ोसी इस दुनिया में नही है। परन्तु मेरे पिता जी सन् 2014 तक भी 90 वर्ष की आयु में बिल्कुल स्वस्थ थे। लेकिन वृद्धावस्था के कारण अशक्त हो गये थे। जीवन के अन्तिम क्षणों तक पिता जी मेरे साथ ही रहे। मैं और मेरा परिवार उनकी पूरी निष्ठा से सेवा में संलग्न रहे। आज मुझे समझ में आता है कि पिता होते हुए पुत्र पर कोई आँच नही आ सकती है। -- मेरे पिता जी का देहान्त 91 वर्ष की आयु में सन् 2014 में खटीमा में हुआ। उस समय मैंने कुछ दोहे रचे थे- -- पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार। बिना आपके है नहीं, जीवन का आधार।। -- बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज। सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।। -- जब तक मेरे शीश पर, रहा आपका हाथ। लेकिन अब आशीष का, छूट गया है साथ।। -- तारतम्य टूटा हुआ, उलझ गये हैं तार। कौन मुझे अब करेगा, पिता सरीखा प्यार।। -- माँ ममता का रूप है, पिता सबल आधार। मात-पिता सन्तान को, करते प्यार अपार।। -- सूना सब संसार है, सूना घर का द्वार। बिना पिता जी आपके, फीके सब त्यौहार।। -- तात मुझे बल दीजिए, उठा सकूँ मैं भार। एक-नेक बनकर रहे, मेरा ये परिवार।। -- मन्दिर, मसजिद-चर्च की, हमें नहीं दरकार। पितृ-दिवस पर पिता को, नमन हजारों बार।। -- पिता विधातारूप है, घर का पालनहार। जीवनरूपी नाव को, तात लगाता पार।। -- माली बनकर सींचता, जो घर का उद्यान। रखता है सन्तान का, पिता हमेशा ध्यान।। -- पिता बिना लगता हमें, सूना पूरा गाँव। पिता सदा परिवार को, देता शीतल छाँव। -- जिसकी उपमा का नहीं, जग में है उपमान। देवतुल्य उस तात का, करना मत अपमान।। -- |
गुरुवार, 5 जून 2025
दोहे "पर्यावरण बचाइए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- पेड़ लगाना भूमि पर, मानव का है कर्म। पर्यावरण सुधारना, हम सबका है धर्म।। -- हरितक्रान्ति से ही मिटे, धरती का सन्ताप। पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप।। -- पेड़ भगाते रोग को, बनकर वैद्य-हकीम। प्राणवायु देते हमें, बरगद, पीपल-नीम।। -- कहने से वातावरण, होगा नहीं पवित्र। धरा बचाने के लिए, वृक्ष लगाओ मित्र।। -- जागरूक होगा नहीं, जब तक हर इंसान। हरा-भरा तब तक नहीं, भू का हो परिधान।। -- कंकरीट जबसे बना, जीवन का आधार। तबसे पर्यावरण की, हुई करारी हार।। -- पेड़ कट गये भूमि के, बंजर हुई जमीन। प्राणवायु घटने लगी, छाया हुई विलीन।। -- नैसर्गिक अनुभाव का, होने लगा अभाव। दुनिया में होने लगे, मौसस में बदलाव।। -- |
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