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मंगलवार, 30 सितंबर 2025
"मेरी श्रीमती अमरभारती का जन्मदिन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 28 सितंबर 2025
बालगीत "मेरी पोती अंशिका का अन्नप्राशन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- चाँदी की चम्मच से खाया, पोती ने पहला आहार।। मना रहे इस दिन को सारे, जैसे हो घर में त्योहार।। -- जिस दिन की कर रहा प्रतीक्षा, बहुत दिनों से कुल परिवार। आज अन्नप्राशन गुड़िया का, प्रथम अन्न का है उपहार। मना रहे इस दिन को सारे, जैसे हो घर में त्योहार।1। -- माता के नवरात्र चल रहे, खुशियों का पसरा अम्बार। खीर और खिचड़ी भी खायी, गुड़िया ने लेकर चटखार। मना रहे इस दिन को सारे, जैसे हो घर में त्योहार।2। -- बाबा-दादी, मम्मी-पापा, ताऊ-ताई करते प्यार। पा करके जीवन्त खिलौना, भइया-दीदी करें दुलार। मना रहे इस दिन को सारे, जैसे हो घर में त्योहार।3। -- षष्ठ मास की हुई अंशिका, बार-बार करती किलकार। चहका-महका एक बार फिर, बाबा का सूना घर-द्वार। मना रहे इस दिन को सारे, जैसे हो घर में त्योहार।4। -- मिले सभी को ठौर-ठिकाना, उतरें सब भवसागर पार। बना रहे आशीष मात का, माता सृष्टि की पतवार। मना रहे इस दिन को सारे, जैसे हो घर में त्योहार।5। -- |
बुधवार, 24 सितंबर 2025
बालकविता "मुझको मेरी मम्मी प्यारी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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-- मुझको मेरी मम्मी प्यारी। मैं हूँ उसकी
राजदुलारी।। -- पापा भी हैं
प्यारे-प्यारे। दुनियाभर में सबसे
न्यारे।। -- जब मैं हँसती हूँ खुल करके। खुश हो जाते वो जी
भरके।। -- दादा-दादी, ताऊ-ताई। मुझे खिलाते दूध-मलाई।। -- भइया-दीदी मुझे खिलाते। दोनों मुझको खूब
हँसाते।। -- दिनभर झूला मुझे झुलाते। सबको मेरे बोल रिझाते।। -- |
रविवार, 21 सितंबर 2025
दोहे "पितृ विसर्जिनी अमावस्या" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
![]() -- पूरे श्रद्धा-भाव से, किये श्राद्ध निष्पन्न। पितृअमावस पर हुए, काम सभी सम्पन्न।। -- अब आयेंगे सामने, माता के नवरूप। निष्ठा से पूजन करो, लेकर दीपक-धूप।। -- सच्चे मन से कीजिए, माता का गुण-गान। माता तो सन्तान का, ऱखती पल-पल ध्यान।। -- अभ्यागत को देखकर, होना नहीं उदास। करो प्रेम से आरती, रक्खो व्रत-उपवास।। -- शुद्ध बनाने के लिए, आते हैं नवरात्र। ज्ञानी बनने के लिए, पढ़ो नियम से शास्त्र।। सारे सपनों को करें, माता जी साकार। कर्मों से ही तो बने, जीवन का आधार।। -- ज्ञानदायिनी शारदे, भर दो खाली ताल। वीणा की झंकार से, कर दो मुझे निहाल।। -- |
रविवार, 14 सितंबर 2025
हिन्दी दिवस "चौदह दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
एक साल में एक दिन, हिन्दी का उद्घोष। हिन्दी वालो सोचिये, किसका है यह दोष।१। -- हिन्दी भाषा के लिए, कैसी है ये सोच। बोल-चाल में भी हमें, हिंग्लिश रही दबोच।२। -- कहनेभर से तो नहीं, होगा देश महान। सब बेमन से कर रहे, हिन्दी का गुणगान।३। -- अँग्रेजी के रंग में, रँगे हुए गुणवन्त। भाषण में भी बोलते, इंग्लिश सन्त-महन्त।४। -- हिन्दी का ये देश अब, लगता इंग्लिस्थान। देवनागरी का यहाँ, कैसे हो उत्थान।६। -- हिन्दी का दिन बन गया, हिन्दी-डे ही आज। गोरों के पदचिह्न पर, अब चल पड़ा समाज।६। -- भाषा का शव ढो रहे, सन्त-महन्त-फकीर। देवनागरी के पड़ी, पाँवों में जंजीर।७। -- नहीं राष्ट्रभाषा बनी, शोचनीय है बात। नौकरशाही कर रही, पग-पग पर उत्पात।८। -- हिन्दी-हिन्दुस्तान था, जिस दल का आधार। अब कठिनाई कौन सी, उनकी है सरकार।९। -- तोड़ दीजिए सब मिथक, हिन्दी करे पुकार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।१०। -- ओ काशी के सांसद, संसद के शिरमौर। हिन्दी के अपमान का, बन्द करो अब दौर।११। -- दशकों से जो सह रही, अपनों के ही दंश। अब हिन्दी का देश में, पोषित कर दो वंश।१२। -- जिस भाषा में माँगते, सबसे मत का दान। अब होना ही चाहिए, हिन्दी का सम्मान।१३। -- देवनागरी में लिखे, गीता-वेद पुराण। अपनी हिन्दी नागरी, भारत माँ का प्राण।१४। |
शनिवार, 13 सितंबर 2025
"ज्येष्ठ पुत्र नितिन का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- जो वर माँगे महादेव से, पूरे वो वरदान हो गये। नितिन तुम्हारे कारण
मेरे, पूरे सब अरमान हो गये।। -- मेरे आँगन के उपवन में, मुरझाये सब सुमन खिल
गये। नीरस जीवन,
सरस हो गया, सब अनुपम उपहार मिल गये। सूने मन के आँगन-उपवन, वासन्ती उद्यान हो गये। नितिन तुम्हारे कारण
मेरे, पूरे सब अरमान हो गये।। -- इक्यावन बसन्त गुजरे हैं, जल्दी-जल्दी जाने कैसे। पंख लगाकर वक्त उड़ रहा, जाने क्यों लगता है ऐसे। पगडण्डी पर चलनेवाले, वाहन सभी विमान हो गये। नितिन तुम्हारे कारण
मेरे, पूरे सब अरमान हो गये।। -- कोरोना का संकट,
जब मेरे जीवन पर आया था, दिवस-रैन मेरी सेवा कर, तुमने धर्म निभाया था, मेरी इस जर्जर काया में, स्थापित फिर प्राण हो
गये। नितिन तुम्हारे कारण
मेरे, पूरे सब अरमान हो गये।। -- सपने जो देखे थे मैंने, आज सभी साकार हो गये। पौत्र-पौत्री और पुत्र
अब, जीवन का आधार हो गये। मेरी इस जीवन बगिया में, सच सारे अनुमान हो गये। नितिन तुम्हारे कारण
मेरे, पूरे सब अरमान हो गये।। -- जब तक मेरा साया तुम पर, तब तक रहे सलामत बचपन। कोई अन्तर नहीं समझना, इक्यावन हों या हों
पचपन। मात-पिता के आशीषों से, निर्धन सब धनवान हो गये। नितिन तुम्हारे कारण
मेरे, पूरे सब अरमान हो गये।। -- |
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