मौसम ने ली है अँगड़ाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। पर्वत का हिम पिघल रहा है, निर्झर बनकर मचल रहा है, जामुन-आम-नीम गदराये, फिर से बगिया है बौराई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। रजनी में चन्दा दमका है, पूरब में सूरज चमका है, फुदक-फुदककर शाखाओं पर, कोयलिया ने तान सुनाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। वन-उपवन की शान निराली, चारों ओर विछी हरियाली, हँसते-गाते सुमन चमन में, भँवरों ने गुंजार मचाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। सरसों का है रूप सलोना, कितना सुन्दर बिछा बिछौना, मधुमक्खी पराग लेने को, खिलते गुंचों पर मँडराई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। -- |
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रविवार, 28 फ़रवरी 2021
गीत "मौसम ने ली है अँगड़ाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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मौसम ने कुछ जल्दी ही ले ली अंगड़ाई । खूबसूरत गीत ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय डाँ. साहब प्रणाम !
जवाब देंहटाएंसरसों का है रूप सलोना,
कितना सुन्दर बिछा बिछौना,
मनभावन रचना सहित आपको सादर अभिनंदन !
बहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (01 -03 -2021 ) को 'मौसम ने ली है अँगड़ाई' (चर्चा अंक-3992) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
मनभावन दृश्य बदलते मौसम और वसन्त का , सुन्दर सृजन, बधाई
जवाब देंहटाएंमनोहारी दृश्यों का सुंदर वर्णन ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंवासंती बयार बहाती बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंहम कंक्रीट के जंगलों में रहने वाले तो ऋतुओं का आनंद उठाने से प्रायः वंचित ही रह जाते हैं.
वाह!सर ,अनुपम सृजन ।
जवाब देंहटाएंप्रकृति के बदलते स्वरूप पर मनोहर गीत ।
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, बहुत खूब गीत लिखा...पूरा का पूरा मौसम ही छान दिया इसमें तो...वाह
जवाब देंहटाएंगेहूँ की बालियाँ सुखाने,
जवाब देंहटाएंपछुआ पश्चिम से है आई।।
आदरणीय शास्त्री जी,
नमन 🙏
प्रकृति चित्रण में आपका जवाब नहीं... वसंत पर कविता रचते हुए गेहूं की सुध बिरले ही लेते हैं।
साधुवाद
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बेहद खूबसूरत रचना आदरणीय 👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएं