-- मास फरवरी चल रहा, मन है बहुत उदास। आओ सबको प्यार से, बुला रहा मधुमास।। -- गेहूँ-सरसों फूलते, रहे सुगन्ध लुटाय। मधुमक्खी-तितली-भ्रमर, खेतों में मँडराय।। -- झड़बेरी पर छा गये, खट्टे-मीठे बेर। करते हैं अठखेलियाँ, तीतर और बटेर।। -- पतझड़ आया तो हुआ, नंगा-नंगा गात। बसन्त अपने साथ में, लाया नूतन पात।। -- मन को बहुत लुभा रहे, ये उपवन के फूल। कितने प्यार-दुलार से, सुमन पालते शूल।। -- गंगा जी में बह रहा, निर्मल-पावन नीर। काँवड़ लाने चल पड़े, अब बहनों के बीर।। -- बड़े बुजुर्गों की सदा, करना सेवा आप। मात-पिता को कभी भी, देना मत सन्ताप।। -- दुनिया में सबसे बड़े, मात-पिता-आचार्य। सब को जीवन के यही, सिखलाते हैं कार्य।। -- |
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गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022
दोहे "लाया नूतन पात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (११ -०२ -२०२२ ) को
'मन है बहुत उदास'(चर्चा अंक-४३३७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बेहतरीन दोहे आदरणीय।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसारगर्भित. नमस्ते शास्त्रीजी.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे !!
जवाब देंहटाएं