कौंध गई बे-मौसम, चपला नीलगगन में। अनहोनी की आशंका, गहराई मन में।। तेजविहीन हुए तारे, चन्दा शरमाया, गन्धहीन हो गया सुमन, उपवन अकुलाया, नीरसता-नीरवता सी छाई जीवन में। अनहोनी की आशंका, गहराई मन में।। रंग हुए बदरंग, अल्पना डरी हुई है, भाव हुए हैं भंग, कल्पना मरी हुई है, चंचलता सहमी सी, घबराई आँगन में। अनहोनी की आशंका, गहराई मन में।। खलिहानों में पड़े हुए, गेहूँ सकुचाए, दीन-किसानों के, चमके चेहरे मुरझाए, सोनचिरैया-कोयल अकुलाई कानन में। अनहोनी की आशंका, गहराई मन में।। वही समझ सकता है, जिसकी है यह माया, कहीं गुनगुनी धूप, कहीं है शीतल छाया, राधा की अँखियाँ, पथराई वृन्दावन में। अनहोनी की आशंका, गहराई मन में।। |
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शनिवार, 30 अप्रैल 2022
गीत "बे-मौसम चपला नीलगगन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022
"जिन्दगी में प्यार-Life in a Love" (अनुवादक: डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' )
Life in a Love A Poem by Robert Browning अनुवादक: डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' |
भुला दो मुझे! छोड़ दो मुझे! .. .. .. .. .. मैं तुम्हें कभी नही भुला पाउँगा! जब तक मैं! मैं हूँ और तुम तुम हो! अमर रहेगा मेरा प्यार! तब तक जब तक रक्खेगा हमें यह संसार! मैं प्यार हूँ और तुम विमुख जिसकी यादों में समाए हैं सुख और दुख यादें तो मजबूरी हैं जिन्दगी में कितनी दूरी हैं प्यार एक गलती है जो सभी के जीवन में चलती है ये भाग्य के समान है कभी समान, कभी असमान है मैं सबसे अच्छा करने पर सफलता से डरता हूँ और असफल होने पर उफ भी नहीं करता हूँ लेकिन तब होता है तन्त्रिकाओं मे तनाव शुष्क हँसी और निराशा के भाव मन कहता है उठो जिन्दगी को फिर से पकड़ लो प्यार को पाश में जकड़ लो दूरियों की परवाह मत करो धूल और अन्धेरों से कभी मत डरो जल्दी मत करो मैंने जो बून्द बोई है आशा की वह एक न एक दिन नया आकार अवश्य लेगी और खुद को चिह्नित करेगी हमेशा…….!! |
Robert Browning (1812 - 1889) |
गुरुवार, 28 अप्रैल 2022
“जहरीला पेड़:A Poison Tree” (अनुवादक:डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
A Poison Tree a poem by William Blake अनुवाद:डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' |
-ःचम्पू काव्यः- मित्र से नाराज होकर पूछता मैं “क्रोध” से जिसका नही कुछ ओर है ना कोई जिसका छोर है घुस गया अन्तस में मेरे आज कोई चोर है शत्रु से नाराज होकर पूछता हूँ मैं यही क्यों उगाया क्रोध का उसने विषैला वृक्ष है भय जगाया व्यर्थ का भयभीत मेरा वक्ष है रात में वो अश्रु बनकर नयन में आता सदा सुबह होने पर वही मुस्कान बनता सर्वदा अश्रु और मुस्कान धोखा दे रहे इन्सान को रात-दिन बन छल रहे स्वप्निल-सरल अरमान को यह चमक उस सेव की मानिन्द है रात के तम में चुराया था जिसे इक शत्रु ने उल्लसित मेरा हृदय यह हो गया है देखकर आज चिर निद्रा में खोया है हमारा मित्रवर छाँव में विषवृक्ष की सोया हमारा मित्रवर |
William Blake (1757 - 1827) |
बुधवार, 27 अप्रैल 2022
गीत "भँवरे गुन-गुन गायेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बाग-बगीचे में जब पौधे, लहर-लहर लहरायेंगे। वीराने उपवन में फिर से, षटपद गीत सुनायेंगे।। -- नेह-नीर पीकर यौवन, जब आयेगा फुलवारी में, महक उठेंगे नन्हें बिरुए, तब बगिया की क्यारी में, पंख हिलाती तितली, भँवरे गुन-गुन गायेंगे। वीराने उपवन में फिर से, षटपद गीत सुनायेंगे।। -- नेह भरी स्नेहिल बाती जब, लौ उजास की उगलेगी, देवताओं का वन्दन होगा, धूप सुगन्धित सुलगेगी, धरती पर पसरा अँधियारा, नन्हे दिये मिटायेंगे। वीराने उपवन में फिर से, षटपद गीत सुनायेंगे।। -- महफिल में जब शमा जलेगी, सुर की धारा निकलेगी, तब वियोग संयोग बनेगा, पीर हृदय की पिघलेगी, धीरे-धीरे जख़्म पुराने, दिल के भरते जाएँगे। वीराने उपवन में फिर से, षटपद गीत सुनायेंगे।। -- गंगाजल फिर निर्मल होगा, कल-कल धारा सरसेगी, धन्य धरा हो जायेगी तब, सुख की बदली बरसेगी, जननी-जन्मभूमि का हम आराधन करते जायेंगे। वीराने उपवन में फिर से, षटपद गीत सुनायेंगे।। -- मेरे भारत की धरती, भारतमाता कहलाती, इसकी रक्षा में वीरों की, चौबिस घंटे तैनाती, जननी-जन्मभूमि का, हम आराधन करते जायेंगे। वीराने उपवन में फिर से, षटपद गीत सुनायेंगे।। -- |
मंगलवार, 26 अप्रैल 2022
बालकविता "लू से कैसे बदन बचाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कल तक रुत थी बहुत सुहानी। अब गर्मी पर चढ़ी जवानी।। चलतीं कितनी गर्म हवाएँ। लू से कैसे बदन बचाएँ? नीबू-पानी को अपनाओ। लौकी, परबल-खीरा खाओ।। खरबूजा-तरबूज मँगाओ। फ्रिज में ठण्डा करके खाओ।। -- गाढ़ा करके दूध जमाओ। घर में आइसक्रीम बनाओ।। कड़ी धूप को कभी न झेलो। भरी दुपहरी में मत खेलो।। -- गर्मी को अब दूर भगाओ। शीतल जल से रोज नहाओ।। |
सोमवार, 25 अप्रैल 2022
दोहे "लोग कर रहे बात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बातें देतीं हैं बता, इंसानी औकात।। -- माप नहीं सकते कभी, बातों का अनुपात। रोके से रुकती नहीं, जब चलती हैं बात।। -- जनसेवक हैं बाँटते, बातों में खैरात। अच्छी लगती सभी को, चिकनी-चुपड़ी बात।। -- नुक्कड़-नुक्कड़ पर जुड़ी, छोटी-बड़ी जमात। ठलवे करते हैं जहाँ, बेमतलब की बात।। -- बद से बदतर हो रहे, दुनिया के हालात। लेकिन मुद्दों पर नहीं, होती कोई बात।। -- बादल नभ पर छा गये, दिन लगता है रात। गरमी में बरसात की, लोग कर रहे बात।। -- कूड़े-करकट से भरे, नगर और देहात। मगर दिखावे के लिए, होती सुथरी बात।। -- भूल गये हैं लोग अब, कॉपी-कलम-दवात। करते हैं सब आजकल, कम्प्यूटर की बात।। -- जीवन के पर्याय हैं, झगड़े-झंझावात। बैठ आमने-सामने, सुलझाओ सब बात।। -- बातों से मिलती नहीं, हमको कभी निजात। कहिए मन की बात अब, बातों में है बात।। -- |
रविवार, 24 अप्रैल 2022
गीत "नवअंकुर उपजाओगे कब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जग को राह दिखाओगे कब -- अभिनव कोई गीत बनाओ, घूम-घूमकर उसे सुनाओ स्नेह-सुधा की धार बहाओ वसुधा को सरसाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब -- सुस्ती-आलस दूर भगा दो देशप्रेम की अलख जगा दो श्रम करने की ललक लगा दो नवअंकुर उपजाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब -- देवताओं के परिवारों से ऊबड़-खाबड़ गलियारों से पर्वत के शीतल धारों से नूतन गंगा लाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब -- सही दिशा दुनिया को देना कलम कभी मत रुकने देना भाल न अपना झुकने देना सच्चे कवि कहलाओगे तब जग को राह दिखाओगे तब -- |
शनिवार, 23 अप्रैल 2022
दोहे "23 अप्रैल-पुस्तक दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अब कोई करता नहीं, पुस्तक से सम्वाद। इसीलिए पुस्तक-दिवस, नहीं किसी को याद।। -- पुस्तक-पोथी गौण हैं, बस्ते का है भार। बच्चों को कैसे भला, होगा इनसे प्यार।। -- अभिरुचियाँ समझे बिना, पौध रहे हम रोप। नन्हे मन पर शान से, देते कुण्ठा थोप।। -- बालक की रुचियाँ समझ, देते नहीं सुझाव। बेमतलब की पुस्तकें, भर देंगी उलझाव।। -- जनसेवक का हो गया, ज्ञान आज तो न्यून। कैसे हों लागू भला, हितकारी कानून।। -- |
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022
22 दोहे, 22 अप्रैल "धरती है बदहाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
धरा-दिवस पर कीजिए, यही
प्रतिज्ञा आज। भू पर पेड़ लगाइए, जीवित
रहे समाज।1। -- हरितक्रान्ति से ही मिटे, धरती
का सन्ताप। पर्यावरण बचाइए,
बचे रहेंगे आप।2। -- पेड़ लगाकर कीजिए, अपने
पर उपकार। करो हमेशा यत्न से, धरती
का सिंगार।3। -- रिक्त न रहनी चाहिए, अब
खेतों की मेढ़। सड़क किनारे मित्रवर, लगा
दीजिए पेड़।4। -- प्राणवायु देते सदा, पीपल
जामुन नीम। दुनियाभर में हैं यहीं, सबसे
बड़े हकीम।5। -- बातों से होता नहीं, धरा-दिवस
साकार। यत्न करोगे तब कहीं, बेड़ा
होगा पार।6। -- माता सी पावन धरा, देती
प्यार-अपार। संचित है सबके लिए, धरती
में भण्डार।7। -- एक साल में एक दिन, धरती
का त्यौहार। कैसे होगा दिवस का, फिर सपना साकार।8। -- कंकरीट जबसे बना, जीवन का आधार। धरती की तब से हुई, बड़ी
करारी हार।9। -- पेड़ कट गये भूमि के, बंजर
हुई जमीन। प्राणवायु घटने लगी, छाया
हुई विलीन।10। -- नैसर्गिक अनुभाव का, होने
लगा अभाव। दुनिया में होने लगे, मौसस
में बदलाव।11। -- शस्य-श्यामला भूमि में, बढ़ा प्रदूषण आज। कुदरत से खिलवाड़ अब, करने
लगा समाज।12। -- नकली सुमनों में नहीं, होता
है मकरन्द। कृत्रिमता में मनुज क्यों, खोज रहा आनन्द।13। -- जहर बेचकर लोग अब, लगे
बढ़ाने कोष। औरों के सिर मढ़ रहे, अपने
सारे दोष।14। -- ओछे कर्मों से हुए, हम
कितने मजबूर। आज मजे से दूर हैं, कृषक
और मजदूर।15। -- जबसे खेतों में बिछा, कंकरीट
का जाल। धरती पर आने लगे, चक्रवात-भूचाल।16। -- अब तो मुझे बचाइए, कहती धरा पुकार। पेड़ लगाकर कीजिए, मेरा
कुछ शृंगार।17। पेड़ लगाना धरा पर, मानव
का है कर्म। पर्यावरण सुधारना, हम
सबका है धर्म।18। पेड़ भगाते रोग को, बनकर
वैद्य-हकीम। प्राणवायु देते हमें, बरगद, पीपल-नीम।19। जागरूक होगा नहीं, जब
तक हर इंसान। हरा-भरा तब तक कहाँ, भू
का हो परिधान।20। वृक्ष बचाते भूमि को, देते
सुखद समीर। लहराते जब पेड़ हैं, घन
बरसाते नीर।21। हरियाली कम हो रही, धरती है बदहाल। मौसम आवारा हुए, हालत है विकराल।22। -- |
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