नवसम्वत्सर आ गया, गया पुराना साल। नूतन आशाएँ जगीं, सुधरेंगे अब हाल।। -- ओ भारत के वासियों, मन को करो उदार। केवल हिन्दु वर्ष क्यों, इसको रहे पुकार।। -- पंथ भिन्न तो क्या हुआ, सबका है ये देश। नवसम्वत से चमन का, सुधरेगा परिवेश।। -- नौ दिन के ही लिए क्यों, करते पूजा-जाप। प्रतिदिन पूजा-पाठ से, कटते संकट-ताप।। -- माँ जगदम्बा का करो, सच्चे मन से ध्यान। माँ ईश्वर का रूप है, माँ है बहुत महान।। -- माता के अस्तित्व से, जीवित देश-समाज। माँ की पूजा से बनें, सबके बिगड़े काज।। -- धरा और-आकाश में, देवताओं का वास। कभी न करना चाहिए, देवों का उपहास।। -- कुदरत की अठखेलियाँ, करतीं बहुत उदास। आशा है नववर्ष फिर, लायेगा उल्लास।। -- |
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रविवार, 3 अप्रैल 2022
दोहे "नवसम्वत से चमन का, सुधरेगा परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, आदरनीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 04 अप्रैल 2022 ) को 'यही कमीं रही मुझ में' (चर्चा अंक 4390 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
वाह!बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंनवसम्वत्सर की बहुत बहुत बधाई आपको।
सादर
आशा का संचार करते सुंदर दोहे।
जवाब देंहटाएं