प्रणय निवेदन करते भँवरे, चमन लगे मुस्काने। वासन्ती कुसुमों की आभा, मन को लगी रिझाने।। मधुर शहद की गन्ध उड़ रही, शहद लेने मधुमक्खी आई, सुन्दर पंखोंवाली तितली, खुशबू पाकर उड़ती आई, चंचल चंचरीक उपवन में, लगे तराने गाने। वासन्ती कुसुमों की आभा, मन को लगी रिझाने।। चहक रहे वन-बाग-बगीचे, तन सबका गदराया, महक रहे हैं खेत बसन्ती, बूटा-बूटा बौराया, काफल चीड़-सेब के पौधे, लगे आज मुस्काने। वासन्ती कुसुमों की आभा, मन को लगी रिझाने।। सरसों और कनेर-गेंदा ने, पीताम्बर पहने हैं, मस्त पवन बह रहा सुहाना, कुदरत के क्या कहने हैं, सुर्ख-सुमन अंगार लगे, सेमल-पलाश दहकाने। वासन्ती कुसुमों की आभा, मन को लगी रिझाने।। |
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मंगलवार, 31 जनवरी 2023
गीत "कुदरत के क्या कहने हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह बहुत ही खूबसूरत गीत
जवाब देंहटाएंवासंती मौसम का मनोहारी वर्णन
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