-- अब जला लो मशालें, गली-गाँव में, रौशनी पास खुद, चलके आती नहीं। राह कितनी भले ही सरल हो मगर, मंजिलें पास खुद, चलके आती नहीं।। -- लक्ष्य छोटा हो, या हो बड़ा ही जटिल, चाहे राही हो सीधा, या हो कुछ कुटिल, चलना होगा स्वयं ही बढ़ा कर कदम- साधना पास खुद, चलके आती नहीं। राह कितनी भले ही सरल हो मगर, मंजिलें पास खुद, चलके आती नहीं।। -- दो कदम तुम चलो, दो कदम वो चले, दूर हो जायेंगे, एक दिन फासले, स्वप्न बुनने से चलता नही काम है- जिन्दगी पास खुद, चलके आती नहीं। राह कितनी भले ही सरल हो मगर, मंजिलें पास खुद, चलके आती नहीं।। -- ख्वाब जन्नत के, नाहक सजाता है क्यों, ढोल मनमाने , नाहक बजाता है क्यों , चाह मिलती हैं, मर जाने के बाद ही- बन्दगी पास खुद, चलके आती नहीं। राह कितनी भले ही सरल हो मगर, मंजिलें पास खुद, चलके आती नहीं।। -- |
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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023
गीत "अब जला लो मशालें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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