-- सात दशकों से अधिक से, दीप बनकर जल रहा हूँ। शिथिल होकर भी समय के साथ, अब तक चल रहा हूँ।। -- पग बढ़ाया राह में तो, बहुत सी बाधायें आयीं, किन्तु अपने ढंग से, पगडण्डियाँ मैंने बनायीं, उम्र के अनुसार जग के, साथ में मैं ढल रहा हूँ। शिथिल होकर भी समय के साथ, अब तक चल रहा हूँ।। -- मैं पुराना पेड़ हूँ, शाखाओं पर हैं पात पीले, जिन्दगी की मार से, सब हो गये हैं अंग ढीले, पर्वतों से सीख ले, उत्तुंग पर अविचल रहा हूँ। शिथिल होकर भी समय के साथ, अब तक चल रहा हूँ।। -- कर्म की पावन धरा पर, यजन करता जा रहा हूँ, मैं नियम से नित्य नूतन, सृजन करता जा रहा हूँ, देह पर पावन धरा के, रजत कण को मल रहा हूँ, शिथिल होकर भी समय के साथ, अब तक चल रहा हूँ।। लेखनी से ईश का, गुणगान करता जा रहा हूँ, भारती का शब्द से, भण्डार भरता जा रहा हूँ, साधना में काव्य की, भरपूर मैं पागल रहा हूँ। शिथिल होकर भी समय के साथ, अब तक चल रहा हूँ।। -- फूल जैसा ही समझ, कर्तव्य का सब भार ढोया, एकता के सूत्र में, परिवार को मैंने पिरोया, आज भी परिवार का, अपने सबल सम्बल रहा हूँ। शिथिल होकर भी समय के साथ, अब तक चल रहा हूँ।। |
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शनिवार, 4 फ़रवरी 2023
मेरा जन्मदिन "दीप बनकर जल रहा हूँ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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