एकल कवितापाठ का, अपना ही आनन्द। रोज़ सृजन को कीजिए, करके कमरा बन्द।१। -- कर खुद ही टिप्पणी, रोज निभाना धर्म। तब आयेगा समझ में, कविताओँ का मर्म।२। -- टिप्पणियों के ढेर से, बन जाता आधार। अपनी रचना बाँचकर, मिलते हैं उपहार।३। -- आम आदमी पिस रहा, मजे लूटता खास। मँहगाई की मार से, मेला हुआ उदास।४। -- प्रियतम भूला आपको, आप कर रहे याद। पत्थर से करना नहीं, कोई भी फरियाद।५। -- कम शब्दों के मेल से, दोहा बनता खास। सरस्वती जी का रहे, सबके उर में वास।६। -- ठगती सबको लालसा, मानव हों या देव। लालच बुरी बलाय है, इससे बचो सदैव।७। -- एक-एक कर सभी की, खोल रहे जो पोल। सही राह बतला रहे, गुणीजनों के बोल।८। -- देश खोखला कर दिया, जीना किया हराम। आम आदमी हो रहे, फोकट में बदनाम।९। -- फिर से पैदा हो गये, बाबर-औरंगजेब। जिनमें उनकी ही तरह, भरे हुए हैं ऐब।१०। -- वाणी में ही निहित हैं, सभी तरह के बोल लेकिन कड़वे बोल से, विष का बनता घोल।११। -- सम्बन्धों की आड़ में, वासनाओं का खेल। करके झूठी प्रशंसा, करते तन का मेल।१२। -- आम आदमी पिस रहा, खास हो रहे मस्त। जाली नोटों ने करी, यहाँ व्यवस्था ध्वस्त।१३। -- सामाजिक परिवेश में, आयी है अब मोच। कुछ लोगों की हो गई, कितनी गन्दी सोच।१४। -- पलकों पर ठहरी हुई. इन्तज़ार की ओस। बिना पिये जो हृदय को, कर देती मदहोश।१५। -- |
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गुरुवार, 21 सितंबर 2023
दोहे "इन्तजार की ओस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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