-- ज़िन्दग़ी में बड़े झमेले हैं घर हमारे बने तबेले हैं -- तन्त्र से लोक का नहीं नाता साथ होकर भी सब अकेले हैं -- पिस रहे हैं गरीब चक्की में आँख में आँसुओं के मेले हैं -- बीन कचरा बड़ा हुआ बचपन नौनिहाल खींच रहे ठेले हैं -- है निठल्लों को रोज़गार यहाँ शिक्षितों के लिए अधेले हैं -- अब विरासत में सियासत पाकर ख़ानदानों ने दाँव खेले हैं -- रूप की हर जगह नुमाइश है जलजले पर्बतों ने झेले हैं -- |
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बुधवार, 31 जनवरी 2024
ग़ज़ल "साथ होकर भी सब अकेले हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मंगलवार, 30 जनवरी 2024
गीत "खेतों में हरियाली छाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- छाया चारों ओर उजाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- छटा निराली है गुलशन की, कली चहकती-फूल महकता, सेमल हुआ लाल अंगारा, यौवन उसका खूब दहकता, गंगा जी के संगम तट पर, योगी फेर रहे हैं माला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- कोंपल फूट रहीं पेड़ों में. खेतों में हरियाली छाई, अब बसन्त ने दस्तक ही है, सर्दी भागी-गर्मी आई, कीट-पतंगों को खाने को, मकड़ी बुनती जाती जाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- ऊँचे छज्जों पर मधुमक्खी, छत्ते को हर साल बनाती, दिनभर फूलों पर मँडराकर, शहद इकट्ठा करती जाती, नहीं जानती उसके धन पर, कब है डाका पड़ने वाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- हिमगिरि की ऊँची चोटी से, जल बन करके हिम पिघला है, प्यासी नदियों को भरने को, पर्वत से धारा निकला है, कलकल-छलछल बहती गंगा, जैसे चलती अल्हड़ बाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- तीन पात के पेड़ों पर भी, लाल-लाल टेसू निखरे हैं, ओस चमकती ऐसे जैसे, पत्तों पर मोती बिखरे हैं, अब आया मधुमास सुहाना, निर्बल को बल देने वाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- |
सोमवार, 29 जनवरी 2024
गीत "दिखलानी होगी अपनी खुद्दारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- मक्कारों से मक्कारी हो, गद्दारों से गद्दारी। तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।। -- दया उन्हीं पर दिखलाओ, जो दिल से माफी माँगें, कुटिल, कामियों को फाँसी पर जल्दी से हम टाँगें, ऐसा बने विधान देश का, जिसमें हो खुद्दारी। तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।। -- ऊँचा पर्वत-गहरा सागर, हमको ये बतलाता है, अटल रहो-गम्भीर बनो, ये शिक्षा देता जाता है, डर कर शीश झुकाना ही तो, खो देता है खुद्दारी। तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।। -- तुम प्रताप के वंशज हो, उनके जैसा बन जाओ तो, कायरता को छोड़, पराक्रम जीवन में अपनाओ तो, याद करो निज आन-बान को, आ जायेगी खुद्दारी। तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।। -- कंकड़ का उत्तर हमको, पत्थर से देना होगा, नीति यही कहती, दुश्मन से लोहा लेना होगा, निर्भय होकर दिखलानी ही होगी अपनी खुद्दारी। तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।। -- |
रविवार, 28 जनवरी 2024
गीत "डाली को कैसे बौराऊँ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- पेड़ पुराना हुआ नीम का, कैसे इसमें यौवन लाऊँ? सूखी शाखाओं में कैसे कैसे नवअंकुर उपजाऊँ? -- पात हो गये अब तो पीले, अंग हो गये सारे ठीले, तेज हवाओं से झोंखो से, कैसे निज अस्तित्व बचाऊँ -- पोर-पोर में पीर समायी, हिलना-डुलना अब दुखदायी, वासन्ती इस मौसम में अब, कैसे सुखद समीर बहाऊँ? -- लोग तने को काट रहे हैं अंग-अंग को छाँट रहे हैं, आदम-हव्वा के ज़ुल्मों से, कैसे अब छुटकारा पाऊँ? -- पहले था ये बदन सलोना “रूप” हो गया
अब तो बौना, डाली को कैसे बौराऊँ? किस-किस को अब व्यथा सुनाऊँ? -- |
शनिवार, 27 जनवरी 2024
"गीत "बिना धूप का सूरज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- निश्छल प्यार-दुलार बिना, परिवार अधूरा होता है।। -- जिसके कारण चहक रही, घर में बच्चों की किलकारी, नेह-नीर से सींच रही जो, नित्य-नियम से फुलवारी, नारी के बिन तो सारा, घर-बार अधूरा होता है।। निश्छल प्यार-दुलार बिना, परिवार अधूरा होता है।। -- पत्नी-बहन और माता के, तुमने ही तो रूप धरे, जगदम्बा बन कर तुमने, सबके खाली भण्डार भरे, बिना धूप के सूरज का, आधार अधूरा होता है। निश्छल प्यार-दुलार बिना, परिवार अधूरा होता है।। -- जीवन में सुख देने वाला, तुम ही एक खिलौना हो, खुली आँख से देखा जाने वाला, स्वप्न-सलोना हो. बिना तुम्हारे कुदरत का, उपहार अधूरा होता है। निश्छल प्यार-दुलार बिना, परिवार अधूरा होता है।। -- |
शुक्रवार, 26 जनवरी 2024
गीत "उन्नत अपना देश बनायें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- बलिदानों के बदले में, पाई हमने आजादी है, मँहगाई के हेर-फेर में, लुप्त हो गई खादी है, मोह छोड़कर परदेशों का, उन्नत अपना देश बनायें। देशभक्ति के गीत प्रेम से, आओ मिल-जुलकर गायें।। -- जीवन में छब्बीस जनवरी, खुशियाँ लेकर आता है, बासन्ती परिधान पहन कर, टेसू फूल खिलाता है, सरसों के बिरुए खेतों में, झूम-झूमकर लहरायें। देशभक्ति के गीत प्रेम से, आओ मिल-जुलकर गायें।। -- नयी-नयी कोपल पायेंगी, अपने आँगन के अम्बुआ की, मुस्कानों से सुमन सलोने, धरा-गगन को महकायें। देशभक्ति के गीत प्रेम से, आओ मिल-जुलकर गायें।। -- भारत में अब रामराज का, समय सुहाना आया है, अवधपुरी में रामलला का, मन्दिर सबको भाया है, समरसता के पावन पथ को, सारी दुनिया को दिखलायें। देशभक्ति के गीत प्रेम से, आओ मिल-जुलकर गायें।। -- |
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