-- छाया चारों ओर उजाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- छटा निराली है गुलशन की, कली चहकती-फूल महकता, सेमल हुआ लाल अंगारा, यौवन उसका खूब दहकता, गंगा जी के संगम तट पर, योगी फेर रहे हैं माला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- कोंपल फूट रहीं पेड़ों में. खेतों में हरियाली छाई, अब बसन्त ने दस्तक ही है, सर्दी भागी-गर्मी आई, कीट-पतंगों को खाने को, मकड़ी बुनती जाती जाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- ऊँचे छज्जों पर मधुमक्खी, छत्ते को हर साल बनाती, दिनभर फूलों पर मँडराकर, शहद इकट्ठा करती जाती, नहीं जानती उसके धन पर, कब है डाका पड़ने वाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- हिमगिरि की ऊँची चोटी से, जल बन करके हिम पिघला है, प्यासी नदियों को भरने को, पर्वत से धारा निकला है, कलकल-छलछल बहती गंगा, जैसे चलती अल्हड़ बाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- तीन पात के पेड़ों पर भी, लाल-लाल टेसू निखरे हैं, ओस चमकती ऐसे जैसे, पत्तों पर मोती बिखरे हैं, अब आया मधुमास सुहाना, निर्बल को बल देने वाला। उपवन में गुंजन करता है, भँवरा हो करके मतवाला।। -- |
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मंगलवार, 30 जनवरी 2024
गीत "खेतों में हरियाली छाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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