-- धूम मची है बाजारों में,रंग, अबीर-गुलाल की। मिल-जुलकर सब होली खेलो, जय बोलो नन्दलाल की।। -- सेमल-टेसू गदराये हैं, आम-नीम बौराया है। तिनके बीन-बीन चिड़िया ने, अपना नीड़ बनाया है। निर्मल नीर हुआ नदियों का, छटा अनोखी ताल की। -- मिल-जुलकर सब होली खेलो, जय बोलो नन्दलाल की।। -- झूमर जैसे लटक रहे, अंगूर झूमते बेलों पर। सिन्दूरी से सुमन सजे हैं, आँगन के सब केलों पर। शाम सुहानी लगती सबको, अब तो नैनीताल की। मिल-जुलकर सब होली खेलो, जय बोलो नन्दलाल की।। -- सरसों फूली है खेतों में, गेंहूँ न ली अँगड़ायी, दूर देश से पंख हिलाती, तितली बगिया में आयी, नहीं जरूरत है भँवरो को, गुंजन में सुर-ताल की। मिल-जुलकर सब होली खेलो, जय बोलो नन्दलाल की।। -- ऊनी वस्त्र उतारे सबने, हीटर-गीजर बन्द हुए, कवियों और गीतकारों के, मुखरित नूतन छन्द हुए, याद दिलाते मधुर तराने, राधा के गोपाल की। मिल-जुलकर सब होली खेलो, जय बोलो नन्दलाल की।। -- झड़े पुराने पात पेड़ के, नयी कोपलें आयी हैं उपवन की कलियाँ मस्ती में, झूम-झूम लहरायी हैं, नये “रूप” में
निखरी रंगत, गाँवों की चौपाल की। मिल-जुलकर सब होली खेलो, जय बोलो नन्दलाल की।। -- |
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बुधवार, 20 मार्च 2024
होली गीत "मिल-जुलकर सब होली खेलो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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