-- मेघों ने अब कर दिया, पावस
का आगाज। पवन बसन्ती चल रहा, झूम
रहा वनराज।1। -- बादल छाये गगन में, हुई दिवस में रात। सुख बरसाने के लिए, बरस
रही बरसात।2। -- उमड़-घुमड़ कर आ रहे, नभ
में घन-घनश्याम। खेतों में अब मिल गया, मजदूरों
को काम।3। -- हवा सुहानी बह रही, मनवा
हुआ विभोर। चपला चमकी गगन में, बादल करते शोर।4। -- पौध धान की हो गयी, अब
बिल्कुल तैयार। रोपाई करने चले, खेतों
में नर-नार।5। -- मौसम है बरसात का, बारिश
का है जोर। धरती के भगवान अब, चले खेत की ओर।6। -- बारिश से गदगद हुए, काफल-सेब-अनार। भर जायेंगी भूमि की, अब
तो सभी दरार।7। -- |
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गुरुवार, 4 जुलाई 2024
दोहे "बरस रही बरसात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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