-- बन जाता हो नित्य ही, लिखने का संयोग। मिट जाता है बदन का, मेरे सारा रोग।। -- रोज सवेरे जागकर, लिखता मन की बात। चलकर आ जाते स्वयं, जुमले और जमात।। -- तुकबन्दी के साथ में, जब बन जाते छन्द। एक अनोखा तब मुझे, मिल जाता आनन्द।। -- पढ़ने-लिखने से खुलें, भावनाओं के द्वार। पढ़ना-लिखना सुमन का, है असली आहार।। -- अगर चाहते आप हो, मन में पनपे हर्ष। जीवन में करते रहो, भावों का उत्कर्ष।। -- अगर चाहते हो मिले, दुनिया में सम्मान। अनासक्ति के भाव से, विद्या का दो दान।। -- मंजिल उसको ही मिले, जो चढ़ता सोपान। बिना त्याग कोई कभी, बनता नहीं महान।। -- |
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सोमवार, 8 जुलाई 2024
दोहे "भावों का उत्कर्ष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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