नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' -- मीत बेशक बनाओ बहुत से मगर, मित्रता में शराफत की आदत रहे। स्वार्थ आये नहीं रास्ते में कहीं, नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।। -- भारती का चमन आप सिंचित करो, भाव मौलिक भरो, शब्द
चुनकर धरो, काल को जीत लो अपने ऐमाल से, गीत में सुर की धारा सलामत रहे। नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।। -- आपकी बात से, ज्ञान
गंगा बहे, मन में उल्लास हो, गात चंगा
रहे, बन्दगी में दिखावा कभी मत करो, आशिकी में भी शुचिता सलामत रहे। नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।। -- मत घमण्डी बनो, बैर को
छोड़ दो, जिन्दगी सादगी की, तरफ मोड़
दो, ढाई आखर का है बस यही फलसफा, आदमीयत का ज़ज़्बा सलामत रहे।। नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।। -- दिलरुबा नेह का धर्म तो जान लो, आप अच्छा-बुरा कर्म तो जान लो, ‘रूप’ दरिया
नहीं एक तालाब है, साथ सूरत के सीरत सलामत रहे। नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।। -- |
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सोमवार, 16 दिसंबर 2024
प्रकाशन "साहित्यसुधा पाक्षिक पत्रिका में मेरा गीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 8 दिसंबर 2024
दोहे "काल का वार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कुदरत के कानून पर, नहीं
किसी का जोर। मिलता सबको न्याय है, साधू
हों या चोर।1। घूस वहाँ चलती नहीं, चलता नहीं जुगाड़। कर्मों के अनुसार ही, खुलते
वहाँ किवाड़।2। -- धर्मशास्त्र को खोलकर, करते
लोग प्रयास। स्वर्ग-नर्क की कुंजियाँ, चित्रगुप्त
के पास।3। -- कल तक भी अज्ञान थे, अब भी
हैं अज्ञान। समझ न पाये आजतक, जीवन का विज्ञान।4। -- कोई आवागमन की, बदल न पाया रीत। ज्ञानी-सन्त सुना रहे, अपने
मन के गीत।5। -- अपने झूठे ज्ञान पर, मत करता अभिमान। ईश्वर से बढ़कर नहीं, कोई
भी विद्वान।6। -- दाता के है हाथ में, सकल जगत की डोर। हरदम उसकी रजा में, रहना भाव-विभोर।7। -- कंचन काया को कभी, माया से मत तोल। दौलत के अभिमान में, बुरे वचन मत बोल।8। -- झेल नहीं पाया मनुज, कभी काल का वार। ज्ञानी राजा-रंक भी, गये काल से हार।9। -- |
गुरुवार, 5 दिसंबर 2024
दोहे "धीरे-धीरे कट गये, ये इक्यावन साल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जीवन के संग्राम में, किया बहुत संघर्ष। वैवाहिक जीवन हुआ, अब इक्यावन वर्ष।1। सजनी घर के काम में, बँटा रही है हाथ। चैन-अमन से कट रहा, जीवन उसके साथ।2। धीरे-धीरे कट गये, ये इक्यावन साल। ताल-मेल के साथ में, जीवन है खुशहाल।3। उबड़-खाबड़ राह से, कभी न मानी हार। मजबूती से नाव की, थामी है पतवार।4। होते रहते हैं कभी, आपस में मतभेद। हम दोनों नहीं, रखते हैं मनभेद।5। धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल। जीवन के हल हो गये, सारे कठिन सवाल।6। जीवन कटता जा रहा, ताल-मेल के साथ। सुख-दुख दोनों में रहे, मिले हमारे हाथ।7। विनती करता हूँ यही, कृपा करो हे राम। आगे भी चलता रहे, ऐसे ही सब काम।8। |
गुरुवार, 28 नवंबर 2024
बालकविता "गैस सिलेण्डर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- गैस सिलेण्डर कितना प्यारा। मम्मी की आँखों का तारा।। -- रेगूलेटर अच्छा लाना। सही ढंग से इसे लगाना।। -- गैस सिलेण्डर है वरदान। यह रसोई-घर की है शान।। -- दूघ पकाओ, चाय बनाओ। मनचाहे पकवान बनाओ।। -- बिजली अगर नही है घर में। यह प्रकाश देता पल भर में।। -- बाथरूम में इसे लगाओ। गर्म-गर्म पानी से न्हाओ।। -- बीत गया है वक्त पुराना। अब आया है नया जमाना।। -- जंगल से लकड़ी मत लाना। बड़ा सहज है गैस जलाना।। -- सदा सुरक्षा को अपनाना। इसे कार में नही लगाना।। -- |
रविवार, 24 नवंबर 2024
बालकविता "घर भर की तुम राजदुलारी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से घर भर की तुम राजदुलारी -- प्यारी-प्यारी गुड़िया जैसी, बिटिया तुम हो कितनी प्यारी। मोहक है मुस्कान तुम्हारी, घर भर की तुम राजदुलारी।। -- नये-नये परिधान पहनकर, सबको बहुत लुभाती हो। अपने मन का गाना सुनकर, ठुमके खूब लगाती हो।। -- निष्ठा तुम प्राची जैसी ही, चंचल-नटखट बच्ची हो। मन में मैल नहीं रखती हो, देवी जैसी सच्ची हो।। -- दिनभर के कामों से थककर, जब घर वापिस आता हूँ। तुमसे बातें करके सारे, कष्ट भूल मैं जाता हूँ।। -- मेरे घर-आगँन की तुम तो, नन्हीं कलिका हो सुरभित। हँसते-गाते देख तुम्हें, मन सबका हो जाता हर्षित।। -- |
शनिवार, 23 नवंबर 2024
बालकविता "खरगोश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से "खरगोश" -- रूई जैसा कोमल-कोमल, लगता कितना प्यारा है। बड़े-बड़े कानों वाला, सुन्दर खरगोश हमारा है।। -- बहुत प्यार से मैं इसको, गोदी में बैठाता हूँ। बागीचे की हरी घास, मैं इसको रोज खिलाता हूँ।। -- मस्ती में भरकर यह लम्बी-लम्बी दौड़ लगाता है। उछल-कूद करता-करता, जब थोड़ा सा थक जाता है।। -- तब यह उपवन की झाड़ी में, छिप कर कुछ सुस्ताता है। ताज़ादम हो करके ही, मेरे आँगन में आता है।। -- नित्य-नियम से सुबह-सवेरे, यह घूमने जाता है। जल्दी उठने की यह प्राणी, सीख हमें दे जाता है।। -- |
शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
बालकविता "मैं भी जागा, तुम भी जागो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 21 नवंबर 2024
बालकविता "बिन वेतन का सजग सिपाही" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
यह है अपना चिंकू प्यारा। पूरे घर का राजदुलारा।। मन का अच्छा तन का काला। घर भर का सच्चा रखवाला।। हरदम रहता है चौकन्ना। बड़े प्यार से खाता गन्ना।। खुश हो करके नित्य नहाता। अंडा-मांस नहीं ये खाता।। लगता है भोला-भण्डारी। पर दुश्मन चोरों का भारी।। कभी न करता लापरवाही। बिन वेतन का सजग सिपाही।। |
बुधवार, 20 नवंबर 2024
बालगीत "प्रकाश का पुंज हमारा सूरज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मंगलवार, 19 नवंबर 2024
बालकविता "तीखी-मिर्च कभी मत खाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- तीखी-तीखी और चर्परी। हरी मिर्च थाली में पसरी।। -- तोते इसे प्यार से खाते। मिर्च देखकर खुश हो जाते।। -- सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती। किन्तु पेट में जलन मचाती।। -- जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं। सुबह-सुबह वो पछताते हैं।। -- दूध-दही बल देने वाले। रोग लगाते, मिर्च-मसाले।। -- शाक-दाल को घर में लाना। थोड़ी मिर्ची डाल पकाना।। -- तीखी-मिर्च कभी मत खाओ। सदा सुखी जीवन अपनाओ।। -- |
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