-- लो
वर्ष पुराना बीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- फिरकों
में क्यों इन्सान बँटा, क्यों
अकस्मात् अटपटा घटा। क्यों
आज विधर्मी मतवाला, झूठे
दावों के साथ डटा। क्यों
अपने घर की चौखट पर, मानवता
का घर रीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- जो
कुटिया थी मंगलकारी, वीरानी क्यों उपवन-क्यारी। भाषण
में उग्रवाद पसरा, नस-नस
में उभरी मक्कारी। उन्मादी
कट्टरपन्थी क्यों, इस वसुन्धरा से मीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- भगवान
कल्कि अब आयेंगे, फिर
से मानव सुख पायेंगे। उपवन
सुमनों से महकेगा, भँवरे
गुन-गुन गायेंगे। आशायें
दिलाशा देती हैं, अब
रुदनभरा संगीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- नया
सूर्य अब चमकेगा, सारा
अँधियारा हर लेगा। जब
सुख के बादल बरसेंगे, तब
“रूप” देश का
दमकेगा। धावकमन
बाजी जीत गया। अब रचो सुखनवर गीत नया।। -- |
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सोमवार, 6 जनवरी 2025
गीत "भगवान कल्कि अब आयेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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