तो पत्थर भी बन जाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, रूप बदलता जाता है।। -- कभी किसी की नहीं मानता, प्रतिबन्धों को नहीं जानता। भरता है बिन पंख उड़ानें, जगह-जगह की ख़ाक छानता। वही काम करता है यह, जो इसके मन को भाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, रूप बदलता जाता है।। -- अच्छे लगते अभिनव नाते, करता प्रेम-प्रीत की बातें। झोली होती कभी न खाली सबके लिए भरी सौगातें। तन को रखता सदा सुवासित, चंचल सुमन कहाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, रूप बदलता जाता है।। -- पौध सींचता सम्बन्धों की, रीत निभाता अनुबन्धों की। मीठे पानी के सागर को, नहीं जरूरत तटबन्धों की। बाँध तोड़ देता है सारे, जब रसधार बहाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।। |
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मंगलवार, 23 मार्च 2021
गीत "मतवाला गिरगिट रूप बदलता जाता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इस कविता का पारायण करके अभिभूत हो गया हूँ आदरणीय शास्त्री जी । सचमुच दिल तो ऐसा ही होता है ।
जवाब देंहटाएंपौध सींचता सम्बन्धों की,
जवाब देंहटाएंरीत निभाता अनुबन्धों की।
मीठे पानी के सागर को,
नहीं जरूरत तटबन्धों की।
बाँध तोड़ देता है सारे,
जब रसधार बहाता है।
बार बार पढ़ने को मन करे, ऐसी अनुपम रचना। सादर प्रणाम।
दिल की इस दिलदार व्याख्या के लिए दिल से साधुवाद आदरणीय 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और दिलचस्प गीत सृजित किया है आपने ।
जवाब देंहटाएंसादर,
डॉ. वर्षा सिंह
अत्यंत सुन्दर गीत ।
जवाब देंहटाएंदिल को खूब पहचाना आपने ... बढ़िया गीत
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ रूप चन्द्र शास्त्री जी, नमस्ते👏!
जवाब देंहटाएंआपने दिल की तुलना मतवाले गिरगिट से कर अभिनव प्रयोग किया है। आपसे हमेशा की तरह इस कविता से भी छंद विधान के नए आयामों को सीखने का मौका मिला है। हॄदय तल से साधुवाद!
अच्छे लगते अभिनव नाते,
करता प्रेम-प्रीत की बातें।
झोली होती कभी न खाली
सबके लिए भरी सौगातें।
तन को रखता सदा सुवासित,
चंचल सुमन कहाता है।
दिल तो है मतवाला गिरगिट,
रूप बदलता जाता है।।
सुंदर पंक्तियाँ!--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत ही सुंदर सृजन,रंगभरी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएँ सर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित रचना हमेशा की तरह, हर छंद बहुत बढ़िया । आपको सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत नव व्यंजनाएं समेटे।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना |
जवाब देंहटाएंदिल तो है मतवाला गिरगिट,
जवाब देंहटाएंरूप बदलता जाता है।।
वाह सुंदर कविता...बधाई