तुमसे ये उपवन आबाद। अमर भारती जिन्दाबाद।। तुम हमको प्राणों से प्यारी, गुलशन की तुम हो फुलवारी, तुम हो जीवन का उन्माद। अमर भारती जिन्दाबाद।। तुमसे खुशियाँ घर-आँगन में, तुमसे है मधुमास चमन में, तुम हो भाषा, तुम सम्वाद। अमर भारती जिन्दाबाद।। गंगा-यमुना-सरस्वती तुम, शक्ति स्वरूपा पार्वती तुम, तुम हो धारा का अनुनाद। अमर भारती जिन्दाबाद।। |
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गुरुवार, 30 सितंबर 2021
"मेरी श्रीमती अमर भारती का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 29 सितंबर 2021
गीत "बन्दी है सोनचिरैया भोली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
किसने नदियों की धारा में विष की बूटी घोली।। कहाँ गयीं मधुरस में भीगी निश्छल वो मुस्कानें, कहाँ गये वो देशप्रेम से सिंचित मधुर तराने, किसकी कारा में बन्दी है सोनचिरैया भोली। किसने नदियों की धारा में विष की बूटी घोली।। लुप्त कहाँ हो गया वेद की श्रुतियों का उद्-गाता, कहाँ खो गया गुरू-शिष्य का प्यारा-पावन नाता, ढोंगी-भगत लिए फिरते क्यों चिमटा-डण्डा-झोली। किसने नदियों की धारा में विष की बूटी घोली।। मक्कारों को दूध-मलाई मिलता घेवर-फेना, भूखे मरते हैं सन्यासी, मिलता नहीं चबेना, सत्याग्रह पर बरसाई जाती क्यों लाठी-गोली। किसने नदियों की धारा में विष की बूटी घोली।। लोकतन्त्र में राजतन्त्र की क्यों फैली है छाया, पाँच साल में जननायक ने कैसे द्रव्य कमाया, धरती की बेटी की क्यों है फटी घाघरा-चोली। किसने नदियों की धारा में विष की बूटी घोली।। |
मंगलवार, 28 सितंबर 2021
गीत "कॉफी की चुस्की ले लेना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
क्षणिक शक्ति को देने वाली। कॉफी की तासीर निराली।। जब तन में आलस जगता हो, नहीं काम में मन लगता हो, थर्मस से उडेलकर कप में, पीना इसकी एक प्याली। कॉफी की तासीर निराली।। पिकनिक में हों या दफ्तर में, बिस्तर में हों या हों घर में, कॉफी की चुस्की ले लेना, जब भी खुद को पाओ खाली। कॉफी की तासीर निराली।। सुख-वैभव के अलग ढंग हैं, काजू और बादाम संग हैं, इस कॉफी के एक दौर से, सौदे होते हैं बलशाली। कॉफी की तासीर निराली।। मन्त्री जी हों या व्यापारी, बड़े-बड़े अफसर सरकारी, सबको कॉफी लगती प्यारी, कुछ पीते हैं बिना दूध की, जो होती है काली-काली। कॉफी की तासीर निराली।। |
सोमवार, 27 सितंबर 2021
दोहे "आसमान के दीप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बहती अविरल भाव से, निर्मल जल की धार। सुन्दर सुमनों ने लिया, पानी में आकार।। -- मोती जैसी सुमन से, टपक रही है ओस। मन को महकाती महक, कर देती मदहोस।। -- हीरे जैसी चमक है, निखरा-निखरा गात। कितना सुन्दर लग रहा, झरता हुआ प्रपात।। -- नाविक बैठा सोचता, चप्पू लेकर साथ। अनुपम रचना कर रहा, सारे जग का नाथ।। -- खारे जल का पान कर, मोती देती सीप। आलोकित जग को करें, आसमान के दीप।। -- माया मालिक की नहीं, कोई पाया जान। विज्ञानी सब जगत के, हो जाते हैरान।। -- दाता सबका एक है, लेकिन नाम अनेक। चमत्कार को देखकर, है असमर्थ विवेक।। |
रविवार, 26 सितंबर 2021
दोहागीत "बिटिया दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बेटी
से आबाद हैं, सबके घर-परिवार। बेटों
जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।। -- चाहे
कोई वार हो, कोई हो तारीख। दिवस
सभी देते हमें, कदम-कदम पर सीख।। जगदम्बा
के रूप में, लेती जो अवतार। उस
बेटी से कीजिए, बेटों जैसा प्यार।। बेटी
रत्न अमोल है, कुदरत का उपहार। बेटों
जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।१। -- दुनिया
में दम तोड़ता, मानवता का वेद। बेटा-बेटी
में बहुत, जननी करती भेद।। बेटा-बेटी
के लिए, हों समता के भाव। मिल-जुलकर
मझधार से, पार लगाओ नाव।। बेटी
रत्न अमोल है, कुदरत का उपहार। बेटों
जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।२। -- पुरुषप्रधान
समाज में, नारी का अपकर्ष। अबला
नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।। कृष्णपक्ष
की अष्टमी, और कार्तिक मास। जिसमें
पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।। ऐसे
रीति-रिवाज को, बार-बार धिक्कार। बेटों
जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।३। -- घर
में अगर न गूँजती, बिटिया की किलकार। माता-पुत्री-बहन
का, कैसे मिलता प्यार।। बेटी
का घर-द्वार में, है समान अधिकार। लालन-पालन
में करो, पुत्र समान दुलार। लालन-पालन
में करो, पुत्र समान दुलार। बेटों
जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।४। -- जिस
घर में बेटी रहे, समझो वे हरिधाम। दोनों
कुल का बेटियाँ, करतीं ऊँचा नाम।। कुलदीपक
की खान को, देते क्यों हो दंश। बिना
बेटियों के नहीं, चल पायेगा वंश।। अगर
न होती बेटियाँ, थम जाता संसार। बेटों
जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।५। -- बेटी
को शिक्षित करो, उन्नत करो समाज। लुटे
नहीं अब देश में, माँ-बहनों की लाज।। एक
पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व। व्रत-पूजन
के साथ में, करो सुता पर गर्व।। बेटी
सेवा धर्म से, नहीं मानती हार। बेटों
जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।६। -- शिक्षित
माता हों अगर, शिक्षित हों सन्तान। माता
बनकर बेटियाँ, देतीं जग को ज्ञान।। संविधान
में कीजिए, अब ऐसे बदलाव। माँ-बहनों
के साथ मैं, बुरा न हो बर्ताव।। क्यों
पुत्रों की चाह में, रहे पुत्रियाँ मार। बेटों
जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।७। -- |
शनिवार, 25 सितंबर 2021
गीत "जिन्दगी का सफर निराला है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मुद्दतों में जो तन सँवारा है। आज
रोगों से वही हारा है।। जिसको
चन्दा ने तपन ही बाँटी, और
चन्दन ने जलन ही बाँटी, अब
तो किस्मत का ही सहारा है। मुद्दतों
में जो तन सँवारा है। आज
रोगों से वही हारा है।। जिन्दगी
का सफर निराला है, कंटकों
ने गुलों को पाला है, चन्द
साँसों का खेल सारा है। मुद्दतों
में जो तन सँवारा है। आज
रोगों से वही हारा है।। परिन्दों
के कलरव से चहका चमन है, खुशबू लुटाने को महका
सुमन है, धानी धरती ने रूप धारा
है। मुद्दतों
में जो तन सँवारा है। आज
रोगों से वही हारा है।। |
शुक्रवार, 24 सितंबर 2021
गीत "खतरे में तटबन्ध हो गये हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मतलब पड़ा तो सारे, अनुबन्ध हो गये हैं। नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये हैं।। बादल ने सूर्य को जब, चारों तरफ से घेरा, महलों में दिन-दहाड़े, होने लगा अँधेरा, फिर से घिसे-पिटे तब, गठबन्ध हो गये हैं। नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये हैं।। सब राज-काज देखा, भोगे विलास-वैभव, दम तोड़ने लगा जब, तत्सम के साथ तद्भव, महके हुए सुमन तब, निर्गन्ध हो गये हैं। नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये हैं।। विश्वासपात्र संगी, सँग छोड़ने लगे जब, सब ठाठ-बाट उनके, दम तोड़ने लगे तब, आखेट के अनेकों, प्रतिबन्ध हो गये हैं। नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये है।। अपनों ने की दग़ा जब, गैरों ने की वफा हैं, जिनको खिलाये मोदक, वो हो गये खफा हैं, घर-घर में आज पैदा, दशकन्ध हो गये हैं। नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये हैं।। जब पाटने चले थे, नफरत की गहरी खाई, लेकर कुदाल अपने, करने लगे खुदाई, खतरे में आज सारे, तटबन्ध हो गये हैं। नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये हैं ।। |
बुधवार, 22 सितंबर 2021
दोहे "प्यार नहीं व्यापार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जीवन के पथ में मिले, जाने कितने मोड़। लेकिन में सीधा चला, मोड़ दिये सब छोड़।। पग-पग पर मिलते रहे, मुझको झंझावात। शह पर शह पड़ती रहीं, मगर न खाई मात।। मैं आगे बढ़ता गया, भले लक्ष्य हो दूर। नहीं उमर के सामने, कभी हुआ मजबूर।। साधक कभी न हारता, साधन जाता हार। सच्ची निष्ठा से मिलें, जीवन में उपहार।। प्यार दिलों का मेल है, प्यार नहीं व्यापार। ढोंगी का टिकता नहीं, अधिक दिनों तक प्यार।। सम्बन्धों की नाव पर, है संसार सवार। ममता-माया-मोह हैं, जीवन के आधार।। लगे हमारे देश में, रोटी के उद्योग। आते टुकड़े बीनने, यहाँ विदेशी लोग।। |
मंगलवार, 21 सितंबर 2021
कवित्त "मेरे पूज्य पिता श्री घासीराम आर्य का सातवाँ वार्षिक श्राद्ध" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
22 सितम्बर, 2021 पितृ पक्ष की द्वितीया को मेरे पूज्य पिता श्री घासीराम आर्य का सातवाँ वार्षिक श्राद्ध के अवसर पर मेरे मन के उदगार श्रद्धा भाव से करूँगा आज श्राद्ध को, मेरे पूज्य पिता श्री आपको नमन है। जीवन भर आपने जो प्यार और दुलार दिया, मन की गहराइयों से आपको नमन है। कभी भी अभाव का आभास नहीं होने दिया, कर्म के पुजारी ऐसे तात को नमन है। रहे नहीं भाग्य के भरोसे आप जन्मभर, ऐसे खिलने वाले पारिजात को नमन है। -- आपके ही पथ का पथिक है सुत आपका, दिव्य-आत्मा प्रकाश पुंज को प्रणाम है। देव के समान सुख बाँटते रहे जो सदा, ऐसे पालनहार को तो कोटिशः प्रणाम है। जीने के जगत में सिखाये ढंग आपने, ईश के समान मेरे देव को प्रणाम है। मार्ग सुख सम्पदा के मुझको बताये सभी, ऐसी मातृभूमि और पिताजी को प्रणाम है। -- |
रविवार, 19 सितंबर 2021
हिन्दी पखवाड़ा "हिन्दी का गुणगान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।। ओ काशी के सांसद, संसद के शिरमौर। विदा करो अब देश से, अँगरेजी का दौर।। है कठिनाई कौन सी, क्यों हो अब लाचार। पूरे बहुमत की मिली, तुमको है सरकार।। हिन्दी-हिन्दुस्थान हो, जिस दल का आधार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।१। कहनेभर से तो नहीं, होगा देश महान। बेमन से मत कीजिए, हिन्दी का गुणगान।। दशकों से जो सह रही, अपनों के ही दंश। पोषित कर दो देश में, अब हिन्दी का वंश।। अब तो है इस देश में, भगवा की सरकार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।२। हिन्दी भाषा के लिए, बदलो अपनी सोच। बोल-चाल में क्यों हमें, हिंग्लिश रही दबोच।। निष्ठा से जब तक नहीं, होगा कोई काम। कैसे तब तक देश का, होगा जग में नाम।। अपनी भाषा का करो, दुनिया में विस्तार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।३। हिन्दी के सेवक कहाँ, राजनीति के सन्त। अँगरेजी के रंग में, रँगे हुए गुणवन्त।। हिन्दी भाषा का भला, कैसे हो उत्थान। अमरीका-इंग्लैण्ड सा, लगता हिन्दुस्तान।। देवनागरी पर करे, इंगलिश ससत् प्रहार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।४। हिन्दी का जब कर रहे, अपने लोग अनर्थ। निजभाषा तब देश में, कैसे बने समर्थ।। करते नौकरशाह हैं, हिन्दी पर आघात। हिन्दीजन संघर्षरत, नित्य खा रहे मात।। जनसेवक भी कर रहे, शब्दों का व्यापार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।५। हिन्दी का दिन बन गया, बस हिन्दी-डे आज। गोरों के पदचिह्न पर, अब चल पड़ा समाज।। जिस भाषा में माँगते, सबसे मत का दान। उस भाषा का चाहिए, होना अब सम्मान।। किन्तु सितम्बर मास तक, हिन्दी की जयकार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।६। देवनागरी में लिखे, गीता-वेद-पुराण। अपनी हिन्दी नागरी, भारत माँ का प्राण।। जिसके पुण्य-प्रताप से, देश हुआ स्वाधीन। फिर किस कारण से हुई, अपनी हिन्दी क्षीण।। हिन्दी है सबसे सरल, कहता है संसार।। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।७। |
शनिवार, 18 सितंबर 2021
नवगीत "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 17 सितंबर 2021
दोहे "जन्मदिन-नरेन्द्र मोदी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- गाँधी और पटेल ने, जहाँ लिया अवतार। मोदी का गुजरात ने, दिया हमें उपहार।। -- देवताओं से कम नहीं, होता है देवेन्द्र। सौ सालों के बाद में, पैदा हुआ नरेन्द्र।। -- साधारण परिवार का, किया चमन गुलजार। मोह छोड़ संसार का, त्याग दिया घर-बार।। -- युगों-युगों के बाद में, लेते जन्म सपूत। दयानन्द की धरा के, मोदी स्वयं सुबूत।। -- समझौता जिसको नहीं, बैरी से स्वीकार। उस मोदी के हाथ में, भारत की पतवार।। -- दामोदर नर इन्द्र से, ऊँचा माँ का भाल। अभिनन्दन जग कर रहा, ले पूजा का थाल।। -- जन्म-दिवस पर आपको, नमन हजारों बार। दीर्घ आयु की कामना, करता दोहाकार।। -- |
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