आओ माता! सुवासित करो मेरा मन। शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।। घोर तम है भरा आज परिवेश में, सभ्यता सो गई आज तो देश में, हो रहा है सुरा से यहाँ आचमन। शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।। दो सुमेधा मुझे मैं तो अनजान हूँ, माँगता काव्य-छन्दों का वरदान हूँ, चाहता हूँ वतन में सदा हो अमन। शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।। वन्दना आपकी नित्य मैं कर रहा, शीश चरणों में, मैं आपके धर रहा, आपके दर्शनों के हैं प्यासे नयन। शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।। तान वीणा की माता सुना दीजिए, मेरे मन को सुमन अब बना दीजिए, हो हमेशा चहकता-महकता चमन। शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।। |
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रविवार, 21 नवंबर 2021
सरस्वती वन्दना "माँगता काव्य-छन्दों का वरदान हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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माँ शारदे को नमन,भाव भक्ति की अनुपम रचना आपकी लेखनी को नमन
जवाब देंहटाएंमां शारदे नमन , सुन्दर स्तुति लेखन आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंघोर तम है भरा आज परिवेश में,
जवाब देंहटाएंसभ्यता सो गई आज तो देश में,
हो रहा है सुरा से यहाँ आचमन।
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।...वाह!बहुत बढ़िया कहा सर।
सादर प्रणाम