गये साल को है प्रणाम! है नये साल का अभिनन्दन।। लाया हूँ स्वागत करने को थाली में कुछ अक्षत-चन्दन।। है नये साल का अभिनन्दन।। गंगा की धारा निर्मल हो, मन-सुमन हमेशा खिले रहें, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के, हृदय हमेशा मिले रहें, पूजा-अजान के साथ-साथ, होवे भारत माँ का वन्दन। है नये साल का अभिनन्दन।। नभ से बरसें सुख के बादल, धरती की चूनर धानी हो, गुरुओं का हो सम्मान सदा, जन मानस ज्ञानी-ध्यानी हो, भारत की पावन भूमि से, मिट जाए रुदन और क्रन्दन। है नये साल का अभिनन्दन।। नारी का अटल सुहाग रहे, निश्छल-सच्चा अनुराग रहे, जीवित जंगल और बाग रहें, सुर सज्जित राग-विराग रहें, सच्चे अर्थों में तब ही तो, होगा नूतन का अभिनन्दन। है नये साल का अभिनन्दन।। |
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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021
गीत "नूतन का करता अभिनन्दन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 30 दिसंबर 2021
गीत "जनसेवक खाते हैं काजू, महँगाई खाते बेचारे!!" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे! नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे! जनसेवक खाते हैं काजू, महँगाई खाते बेचारे!! -- काँपे माता-काँपे बिटिया, भरपेट न जिनको भोजन है, क्या सरोकार उनको इससे, क्या नूतन और पुरातन है, सर्दी में फटे वसन फटे सारे! नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!! -- जो इठलाते हैं दौलत पर, वो खूब मनाते नया-साल, जो करते श्रम का शीलभंग, वो खूब कमाते द्रव्य-माल, भाषण में हैं कोरे नारे! नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!! -- नव-वर्ष हमेशा आता है, सुख के निर्झर अब तक न बहे, सम्पदा न लेती अंगड़ाई, कितने दारुण दुख-दर्द सहे, मक्कारों के वारे-न्यारे! नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!! -- रोटी-रोजी के संकट में, कुछ दूर देश में जाते हैं, कहने को अपने सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं, सब स्वप्न हो गये अंगारे! नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!! -- टूटा तन-मन भी टूटा है, अभिलाषाएँ बस जिन्दा हैं, आयेगीं जीवन में बहार, यह सोच-सोच शरमिन्दा हैं, कब चमकेंगें नभ में तारे! नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!! -- |
बुधवार, 29 दिसंबर 2021
दोहे "सीमा पर घुसपैठ को, झेल रहा है देश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- उच्चारण सुधरा नहीं, बना नहीं परिवेश। अँगरेजी के जाल में, जकड़ा सारा देश।१। -- अपना भारतवर्ष है, गाँधी जी का देश। सत्य-अहिंसा के यहाँ, मिलते हैं सन्देश।२। -- लड़की लड़का सी दिखें, लड़के रखते केश। पौरुष पुरुषों में नहीं, दूषित है परिवेश।३। -- भौतिकता की बाढ़ में, घिरा हुआ है देश। फैशन की आँधी चली, बिगड़ गया है वेश।४। -- हरकत से नापाक की, बिगड़ रहा परिवेश। सीमा पर घुसपैठ को, झेल रहा है देश।५। -- नहीं बड़ा है देश से, भाषा-धर्म-प्रदेश। भेद-भाव की भावना, पैदा करती क्लेश।६। -- प्यार और सदभाव के, थोथे हैं सन्देश। दाँव-पेंच के खेल में, चौपट हैं परिवेश।७। -- खुद जलकर जो कर रहा, आलोकित परिवेश। नन्हा दीपक दे रहा, जीवन का सन्देश।८। सूफी-सन्तों ने दिया, दुनिया को उपदेश। अपने प्यारे देश का, निर्मल हो परिवेश।९। -- रखना होगा अमन का, भारत में परिवेश। मत-मजहब से है बड़ा, अपना प्यारा देश।१०। -- |
मंगलवार, 28 दिसंबर 2021
गीत "खोज रहे हैं शीतल छाया, कंकरीट की ठाँव में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सोमवार, 27 दिसंबर 2021
गीत, "मेहमान कुछ दिन का अब साल है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- पड़ने वाले नये साल के हैं कदम! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! -- कोई खुशहाल है. कोई बेहाल है, अब तो मेहमान कुछ दिन का ये साल है, ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! -- रौशनी देगा तब अंशुमाली धवल, ज़र्द चेहरों पे छायेगी लाली नवल, मुस्कुरायेंगे गुलशन में सारे सुमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! -- धन से मुट्ठी रहेंगी न खाली कभी, अब न फीकी रहेंगी दिवाली कभी. मस्तियाँ साथ लायेगा चंचल पवन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! -- |
रविवार, 26 दिसंबर 2021
दोहे "चमचों की महिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
चार टके की नौकरी, लाख टके की
घूस। लोलुप नौकरशाह ही, रहे देश को
लूट।। मक्कारों की नाक में, डाले कौन
नकेल। न्यायालय में मेज के, नीचे चलता
खेल।। रहते तो हैं साथ में, बोल-चाल है
बन्द। लेकिन भाई की उन्हें, सूरत नहीं
पसन्द।। कहीं किसी भी हाट में, बिकती
नहीं तमीज। वैसा ही पौधा उगा, जैसा बोया
बीज।। हठ करने का समय तो, निकल गया अब
दूर। वृद्धावस्था में कभी, मत होना
मगरूर।। जो मन में रखता नहीं, किसी तरह
का मैल। खटता है वो रात दिन, ज्यों
कोल्हू का बैल।। बड़े शौक से पालते, जिनको सन्त-महन्त। |
शनिवार, 25 दिसंबर 2021
दोहे "क्रिसमस-डे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जो मानवता के लिए, चढ़ता गया सलीब। वो ही होता कौम का, सबसे बड़ा हबीब।। जिसमें होती वीरता, वही भेदता व्यूह। चलता उसके साथ ही, जग में विज्ञ समूह।। मंजिल है जिस पन्थ में, उस पर चलते लोग। पालन करता नियम जो, वो ही रहे निरोग।। जो जन सेवा के लिए, करता है पुरुषार्थ। उसके सारे काम ही, कहलाते परमार्थ।। थोथी बातों से नहीं, कोई बने मसीह। लालच में जपता सदा, ढोंगी ही तस्बीह।। जिसके दिल में हों भरे, ममता-समता-प्यार। वो जनता के हृदय पर, कर लेता अघिकार।। दीन-दुखी-असहाय को, बाँटो कुछ उपहार। शिक्षा देता है यही, क्रिसमस का त्यौहार।। |
शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021
दोहे "अटल बिहारी के बिना, सूना संसद नीड़" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अटल बिहारी आपका, करते सब गुणगान। माता के इस लाल पर, भारत को अभिमान।। -- आज दिखावे के लिए, लगी सदन में भीड़। अटल बिहारी के बिना, सूना संसद नीड़।। -- कथनी-करनी में अटल, सदा रहे अनुरक्त। शब्दों से वाचाल थे, मन से रहे सशक्त।। -- अटल बिहारी हों भले, अन्तरिक्ष में लीन। पुनर्जन्म लेंगे यहाँ, सबको यही यकीन।। -- देशभक्ति-दलभक्ति के, संगम थे अभिराम। अमर रहेगा जगत में, अटल आपका नाम।। -- आने-जाने के नहीं, नियत दिवस-तारीख। देता काल-कराल है, दुनिया भर को सीख।। -- लुप्त हो गया सदन में, स्वस्थ हास-परिहास। संसद में अब काव्य का, मेला हुआ उदास।। -- देशवासियों के लिए, क्रिसमस का उपहार। अटल बिहारी के बिना, सूना लगता द्वार।। -- |
गुरुवार, 23 दिसंबर 2021
दोहे "अहंकार की हार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
फूलदान में हैं
सजे, सुन्दर-सुन्दर फूल। सुमनों सा जीवन
जियें, बैर-भाव को भूल।। शस्य-श्यामला है
धरा, जीवन का आधार। पेड़ों-पौधों
से करें, धरती का शृंगार।। जो जन-जन पर कर
रहे, कोटि-कोटि अहसान। भरते सबके पेट को, ये श्रमवीर किसान।। -- मातृभूमि के लिए
जो, देते हैं बलिदान। रक्षा में
संलग्न हैं, अपने वीर जवान।। -- अभिनन्दन-वन्दन
करें, उन सबका हम आज। जिनके
पुण्य-प्रताप से, जीवित सकल समाज।। -- कदम-कदम पर
झेलते, जो भीषण आघात। उनके सपनों पर
हुआ, आज तुषारापात।। -- बोलचाल-आचार
की, जिनको नहीं तमीज। वो सब ही हठयोग
से, लाँघ रहे दहलीज।। -- सत्याग्रह के सामने, झुक जातीं सरकार। हो जाती है हर जगह, अहंकार की हार।। -- |
बुधवार, 22 दिसंबर 2021
गीत "दबा सुरीला कोकिल का सुर, अब कागा की काँव में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मंगलवार, 21 दिसंबर 2021
"मेरा एक संस्मरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
"एक संस्मरण" लगभग 35 साल पुरानी बात है! खटीमा में उन दिनों मेरा निवास ग्राउडफ्लोर पर था। दोनों बच्चे अलग कमरे में सोते थे। हमारे बेडरूम से 10 कदम की दूरी पर बाहर बराम्दे में शौचालय था। रात में मुझे लघुशंका के लिए जाना पड़ा। उसके बाद मैं अपने बिस्तर पर आकर सो गया। लेकिन दिसम्बर का महीना होने के कारण मुझे कुछ ठण्ड का आभास होने लगा। मैंने महसूस किया कि मेरे कपड़े कुछ गीले थे। मन में सोच विचार करता रहा कि मेरे कपड़े कैसे गीले हुए होंगे। तभी याद आया कि मैं कुछ देर पहले लघुशंका के लिए गया था। मन में घटना की पुनरावृत्ति होने लगी तो याद आया कि मैं शौचालय में गिरा पड़ा था और तन्द्रा में होने के कारण पुनः बिस्तर पर आकर लेट गया था। फिर तो पूरी घटना याद आ गयी कि मुझे वहाँ चक्कर आया था और न जाने कितनी देर मैं मूर्छा में रहा। मैंने मूर्छा में जो दिव्य दृश्य देखा उसे आज पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ। “मैं एक अनोखे और आनन्दमय संसार में पहुँच गया था। जहाँ पर मैंने विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन किये। यमराज से मेरा सीधा सम्वाद भी हुआ। जहाँ पर वो अपने गणनाकार से कह रहे थे कि इसे तो अभी बहुत जीना है। इसकी उम्र तो अभी पचास साल और है। तुम इसे यहाँ क्यों ले आये हो।“ इसके बाद मैं होश में आकर अपने बिस्तर पर आकर लेट गया था। मैंने श्रीमती जी को जगाया और पूरी घटना उन्हें बताई तो उनकी नींद तो काफूर हो गयी थी। उन्होंने मेरे कपड़े बदले, बिस्तर बदला और बहुत सी बातें करते रहे। लेकिन इस घटना में खास बात यह रही कि शौचालय में गिरने के बाद भी मेरे किसी अंग में न तो कोई खरौच थी और न ही कोई पीड़ा थी। अब सवेरा हो गया था। हम लोग अपने दैनिक कार्यों में लग गये। उसके बाद आज तक ऐसी किसी घटना की पुनरानृत्ति मेरे साथ नहीं हुई। मैंने तो इसे झेला है और तब से मैं परलोक को मानने लगा हूँ। आप इसे क्या कहेंगे? |
सोमवार, 20 दिसंबर 2021
गीत "जनता का तन्त्र कहाँ है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सुख का सूरज नहीं गगन में। कुहरा पसरा है कानन में।। पाला पड़ता, शीत बरसता, सर्दी में है बदन ठिठुरता, तन ढकने को वस्त्र न पूरे, निर्धनता में जीवन मरता, पौधे मुरझाये गुलशन में। कुहरा पसरा है कानन में।। आपाधापी और वितण्डा, बिना गैस के चूल्हा ठण्डा, गइया-जंगल नजर न आते, पायें कहाँ से लकड़ी कण्डा, लोकतन्त्र की आजादी तो, बन्धक है अब राजभवन में। कुहरा पसरा है कानन में।। जोड़-तोड़ षडयन्त्र यहाँ है? गांधीजी का मन्त्र कहाँ है? जिसके लिए शहादत दी थी. वो जनता का तन्त्र कहाँ है? कब्ज़ा है अब दानवता का, मानवता के इस कानन में। कुहरा पसरा है कानन में।। दुर्नीति ने पाँव जमाया, विदुरनीति का हुआ सफाया, आदर्शों को धता बताकर, देश लूटकर सबने खाया, बरगद-पीपल सूख गये हैं, खर-पतवार उगी उपवन में। कुहरा पसरा है कानन में।। |
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