अब हरियाली तीज आ रही, मम्मी मैं झूलूँगी झूला। देख फुहारों को बारिश की, मेरा मन खुशियों से फूला।। कई पुरानी भद्दी साड़ी, बहुत आपके पास पड़ी हैं। इतने दिन से इन पर ही तो, मम्मी मेरी नजर गड़ी हैं।। |
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रविवार, 31 जुलाई 2022
बालकविता "मम्मी मैं झूलूँगी झूला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गीत " आया है त्यौहार तीज का" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- चाँद दिखाई दिया दूज का, फिर से रात हुई उजियाली। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- धर सोलह सिंगार धरा ने, फिर से अपना रूप निखारा। सजनी ने साजन की खातिर, सावन में तन-बदन सँवारा। आँगन-कानन में बरसी है, बारिश बनकर आज मवाली। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- आँगन के कट गये पेड़ सब, पड़े हुए झूले घर-घर में। झूल रहीं खुश हो बालाएँ, गूँज रहे मल्हार नगर में। मस्त फुहारें लेकर आयी, नभ पर छाई बदरी काली।। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- उपवन में कोमल कलियों की, भीग रही है चूनर धानी। खेतों में लहराते बिरुए, आसमान का पीते पानी। पुरवय्या के झोंखे आते, बल खाती पेड़ों की डाली।। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- घेवर-फेनी और जलेबी, अच्छी लगती चौमासे में। लेकिन अब त्यौहार हमारे, हैं मँहगाई के फाँसे में। खास आदमी मजे उड़ाते, जेब आम की बिल्कुल खाली।। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- शर्माया-सकुचाया सा, उग आया चाँद गगन में। आया है त्यौहार तीज का, हर्ष समाया मन में। महिलाएँ आँगन उपवन में , झूल रहीं होकर मतवाली। हरी घास का बिछा गलीचा, तीज आ गई है हरियाली।। -- |
शनिवार, 30 जुलाई 2022
दोहे "अन्तरराष्ट्रीय मित्रता-दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- आज मित्रता-दिवस पर, रखना इतना याद। नहीं मित्र के साथ में, करना कभी विवाद।। -- सौ-सौ बार विचारिए, क्या होता है मित्र। खूब जाँचिए-परखिए, उसका चित्त-चरित्र।। -- हम तो प्रतिदिन माँगते, दुनियाभर की खैर। अमन-चैन से सब रहें, अपने हों या गैर।। -- जहाँ एक दिन मित्रता, बाकी दिन हो बैर। उस पथ में तो भूलकर, कभी न रखना पैर। -- मतलब की अब मित्रता, मतलब का सब प्यार। मतलब से ही कर रहे, लोग प्यार-मनुहार।। -- हँसी-खेल मत समझिए, दुनिया बड़ी विचित्र। जीवन में है मित्रता, पावन और पवित्र।। -- जिसको अपना कह दिया, वो जीवनभर मीत। सच्ची होनी चाहिए, दिल में उपजी प्रीत।। -- उनसे कैसी मित्रता, जो करते हैं घात। ऐसे लोगों से बचो, जो करते उत्पात।। -- करते मुख के सामने, मीठी-मीठी बात। होता नहीं कुतर्क से, कोई भी विख्यात।। -- मनवाना जो चाहता, जबरन अपनी बात। वो दुर्जन करता सदा, सज्जन पर आघात।। -- दुष्ट नहीं माने कभी, धर्म-कर्म उपदेश। उलटे लगते हैं उसे, उपयोगी सन्देश।। -- बिना विचारे जो करे, वाणी का संधान। वो मानव के रूप में, होता है हैवान।। -- |
"मेरे दोहे-दोहा दंगल में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अमर शहीदों का कभी, मत करना अपमान। किया इन्दोंने देशहित, अपना तन बलिदान।। जीवन तो त्यौहार है, जानों इनका सार। प्यार और मनुहार से, बाँटो कुछ उपहार।। जब तक सूरज-चन्द्रमा, तब तक जीवित प्यार। दौलत से मत तौलना, पावन प्यार-दुलार।। गौमाता से ही मिले, दूध-दही-नवनीत। सबको होनी चाहिए, गौमाता से प्रीत।। कैमीकल का उर्वरक, कर देगा बरबाद। खेतों में डालो सदा, गोबर की ही खाद।। कुटिया-महलों में जलें, जगमग-जगमग दीप। सरिताओं के रेत में, मोती उगले सीप।। पथ में मिलते रोज ही, भाँति-भाँति के लोग। तब ही होती मित्रता, जब बनता संयोग।। रक्खो कदम जमीन पर, मत उड़ना बिन पंख। जो पारंगत सारथी, वही बजाता शंख।। सरिता और तड़ाग के, सब ही जाते तीर। मगर आचमन के लिए, गंगा का है नीर।। शिशुओं की किलकारियाँ, गूँजें सबके द्वार। बेटा-बेटी में करो, समता का व्यवहार।। चाहे कोई वार हो, कोई हो तारीख। संस्कार देते हमें, कदम-कदम पर सीख।। तोड़ रही दम सभ्यता, आहत हैं परिवेश। पुस्तक तक सीमित हुए, सन्तों के सन्देश।। झेल नहीं पाया मनुज, कभी समय का वार। ज्ञानी-राजा-रंक भी, गये समय से हार।। कभी रूप की धूप पर, मत करना अभिमान। डरकर रहना समय से, समय बड़ा बलवान।। सच्ची होती मापनी, झूठे सब अनुमान। ताकत पर अपनी नहीं, करना कुछ अभिमान।। |
शुक्रवार, 29 जुलाई 2022
आलेख "छन्द परिचय" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
यदि गद्य का नियम व्याकरण है तो निश्चितरूप से काव्य का आधारभूत नियम छन्द ही है। शब्दों को गेयता के अनुसार सही स्थान पर रखने से कविता बनती है। अर्थात् जिसे स्वर भरकर गाया जा सके वो काव्य कहलाता है। इसीलिए काव्य गद्य की अपेक्षा जल्दी कण्ठस्थ हो जाता है। गद्य में जिस बात को बड़ा सा आलेख लिखकर कहा जाता है, पद्य में उसी बात को कुछ पंक्तियों में सरलता के साथ कह दिया जाता है। यही तो पद्य की विशेषता होती है। काव्य में गीत, ग़ज़ल, आदि ऐसी विधाएँ हैं। जिनमें गति-यति, तुक और लय का ध्यान रखना जरूरी होता है। लेकिन दोहा-चौपाई, रोला आदि मात्रिक छन्द हैं। जिनमें मात्राओं के साथ-साथ गणों का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है। तभी इन छन्दों में गेयता आती है। अन्तर्जाल पर मैंने यह अनुभव किया है कि नौसिखिए लोग दोहा छन्द में मात्राएँ तो पूरी कर देते हैं मगर छन्दशास्त्र के अनुसार गणों का ध्यान नहीं रखते हैं। इसीलिए उनके दोहों में प्रवाह नहीं आ पाता है और लय भंग हो जाती है। · मात्रिक छन्द ː जिन छन्दों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है उन्हें मात्रिक छन्द कहा जाता है। जैसे - दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई । उदाहरण के लिए मेरा एक दोहा देखिए- फसल धान की खेत में, लहर-लहर लहराय। अपने मन के छन्द को, रचते हैं कविराय।। · वार्णिक छन्द ː वर्णों की गणना पर आधारित छन्द वार्णिक छन्द कहलाते हैं। जैसे - घनाक्षरी, दण्डक। घनाक्षरी चन्द का एक उदाहरम देखिए- विद्या वो भली है जो हो क्षमता के अनुसार, मान व सम्मान भला लगे सद-रीत का| रिश्ते हों या नाते सभी, सीमा तक लगें भले, गायन रसीला भला, भव-हित गीत का| शूरता लगे है भली समय की 'कविदास', उम्र की जवानी भली, संग सच्चे मीत का| श्रद्धा वाली भक्ति भली, सम्भव विरक्ति भली, रोना भला मौके का व गौना भला शीत का|| · वर्णवृत ː सम छन्द को वृत कहते हैं। इसमें चारों चरण समान होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु गुरु मात्राओं का क्रम निश्चित रहता है। जैसे - द्रुतविलंबित, मालिनी। उदाहरण देखिए- इसका अर्थ है कि मालिनी छन्द में प्रत्येक चरण में नगण, नगण, मगण और दो यगणों के क्रम से 15 वर्ण होते हैं और इसमें यति आठवें और सातवें वर्णों के बाद होती है; जैसे : । ॥ । ॥ ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ वयमिह परितुष्टाः वल्कलैस्त्वं दुकूलैः सम इह परितोषो निर्विशेषो विशेषः । स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला मनसि तु परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः॥ वैराग्यशतक /45 · मुक्त छन्दː भक्तिकाल तक मुक्त छन्द का अस्तित्व नहीं था, यह आधुनिक युग की देन है। इसके प्रणेता सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' माने जाते हैं। मुक्त छन्द नियमबद्ध नहीं होते, केवल स्वछन्द गति और भावपूर्ण यति ही मुक्त छन्द की विशेषता हैं। |
गुरुवार, 28 जुलाई 2022
दोहे "भारतरत्न मिसाइल-मैन को शत-शत नमन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
भारत माँ की कोख से, जन्मा पूत कलाम। करते श्रद्धा-भाव से, उसको आज सलाम।। -- दुनिया में जाना गया, वह मिसाइल-मैन। उसके जाने से सभी, कितने हैं बेचैन।। -- जिसने जीवन भर किया, मानवता का काम। भारत का सर्वोच्च-पद, हुआ उसी के नाम।। -- बचपन जिया अभाव में, कभी न मानी हार। दुनिया में विज्ञान को, दिया सबल आधार।। -- कुदरत को मञ्जूर जो, वो ही तो है होय। क्रूर काल के चक्र से, बचा नहीं है कोय।। -- जीव आत्मा अमर है, मरता तुच्छ शरीर। अपने उत्तम कर्म से, अमर रहेंगे वीर।। -- युगों-युगों तक रहेगा, दुनियाभर में नाम। गूँजेगा संसार में, प्रेरक नाम कलाम।। -- भावप्रवण श्रद्धा-सुमन, करूँ समर्पित आज। नमन कर रहा आपको, भारतदेश-समाज।। |
गीत "फैशन हुआ पुराना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गद्य अगर कविता होगी तो, कविता का क्या नाम धरोगे? सूर-कबीर और तुलसी को, किस श्रेणी में आप धरोगे? तुकबन्दी औ’ गेय पदों का, कुछ कहते हैं गया जमाना। गीत-छन्द लिखने का फैशन, कुछ कहते हैं हुआ पुराना। जिसमें लय-गति-यति होती है, परिभाषा ये बतलाती है। याद शीघ्र जो हो जाती है, वो ही कविता कहलाती है। अपनी कमजोरी की खातिर, कब तक तर्क-कुतर्क करोगे? सूर-कबीर और तुलसी को किस श्रेणी में आप धरोगे? लिख करके आलेख-लेख को, अनुच्छेद में बाँट रहे क्यों? लगा टाट के पैबन्दों को, काव्य गलीचा गाँठ रहे क्यों? नहीं जानते पद्य अगर तो, गद्य लिखो, स्वीकार हमें है। गद्यकार का रूप तुम्हारा, दिल से अंगीकार हमें है। गीतों-ग़ज़लों की नौका में, कब तक तुम सन्ताप भरोगे? सूर-कबीर और तुलसी को, किस श्रेणी में आप धरोगे? लाओ नूतन शब्द गद्य में, पावन जल से भरो सरोवर। शुक्ल-हजारीलाल सरीखे, बन जाओ तुम गद्य धरोहर। गद्यकार कहलाने में भी, घट जाता सम्मान नहीं है। क्या उपदेशों-सन्देशों में? मिलता कोई ज्ञान नहीं है। कड़वी औषध रोग मिटाती, पीने में कब तलक डरोगे? सूर-कबीर और तुलसी को, किस श्रेणी में आप धरोगे? |
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