-- गये साल को है प्रणाम! है नये साल का अभिनन्दन।। लाया हूँ स्वागत करने को, थाली में कुछ अक्षत-चन्दन।। है नये साल का अभिनन्दन।। गंगा की धारा निर्मल हो, मन-सुमन हमेशा खिले रहें, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के, हृदय हमेशा मिले रहें, पूजा-अजान के साथ-साथ, होवे भारत माँ का वन्दन। है नये साल का अभिनन्दन।। नभ से बरसें सुख के बादल, धरती की चूनर धानी हो, गुरुओं का हो सम्मान सदा, जन मानस ज्ञानी-ध्यानी हो, भारत की पावन भूमि से, मिट जाए रुदन और क्रन्दन। है नये साल का अभिनन्दन।। नारी का अटल सुहाग रहे, निश्छल-सच्चा अनुराग रहे, जीवित जंगल और बाग रहें, सुर सज्जित राग-विराग रहें, सच्चे अर्थों में तब ही तो, होगा नूतन का अभिनन्दन। है नये साल का अभिनन्दन।। -- |
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शनिवार, 31 दिसंबर 2022
गीत "नूतन का अभिनन्दन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022
गीत "कब दिवस सुहाने आयेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अब रचो सुखनवर गीत नया।। -- फिरकों में है इन्सान बँटा, कुछ अकस्मात् अटपटा घटा। अब गली-गाँव का भिक्षुक भी, अपनी हमदर्दी लिए डटा। प्रजा-तन्त्र का दानव फिर, मानवता का घर रीत गया। अब रचो सुखनवर गीत नया।। -- जिसकी कुटिया मंगलकारी, वीरान हुई उसकी क्यारी। फाइल में राशन बाँट रहे, उन्मुक्त हो गये अधिकारी। वो कैसे धीर धरेंगे अब, जिनका दुनिया से मीत गया। अब रचो सुखनवर गीत नया।। -- कब दिवस सुहाने आयेंगे, कब हम नूतन सुख पायेंगे। कब उपवन अपना महकेगा, कब भँवरे गुन-गुन गायेंगे। आशायें दिलाशा देती हैं, अपना प्यारा संगीत गया। अब रचो सुखनवर गीत नया।। -- नया सूर्य कब चमकेगा, कब वो अँधियारा हर लेगा। कब सुख के बादल बरसेंगे, कब “रूप” देश का दमकेगा। क्यों पप्पू बाजी जीत गया। अब रचो सुखनवर गीत नया।। -- |
गुरुवार, 29 दिसंबर 2022
"अभिनय करते लोग" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- रंग-मंच है जिन्दगी, अभिनय करते लोग। नाटक के इस खेल में, है संयोग-वियोग।। -- विद्यालय में पढ़ रहे, सभी तरह के छात्र। विद्या के होते नहीं, अधिकारी सब पात्र।। -- आपाधापी हर जगह, बैठे हैं सरपञ्च।। रंग-मंच के क्षेत्र में, चलता खूब प्रपञ्च।। -- रंग-मंच भी बन गया, जीवन का जंजाल। भोली चिड़ियों के लिए, जहाँ बिछे हैं जाल।। -- रंग-मंच का आजकल, मिटने लगा रिवाज। मोबाइल से जाल पर, उलझा हुआ समाज।। -- कहीं नहीं अब तो रहे, सुथरे-सज्जित मञ्च। सभी जगह बैठे हुए, गिद्ध बने सरपञ्च।। -- नहीं रहे अब गीत वो, नहीं रहा संगीत। रंग-मंच के दिवस की, मना रहे हम रीत।। -- |
बुधवार, 28 दिसंबर 2022
गीत "शैल ढके हैं हिम से सारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहे "लाख टके की घूस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-१- चार टके की नौकरी, लाख टके की घूस। लोलुप नौकरशाह ही, रहे देश को चूस।। मक्कारों की नाक में, डाले कौन नकेल। न्यायालय में मेज के, नीचे चलता खेल।। रहकर पास-पड़ोस में, बोल-चाल है बन्द। लेकिन भाई की उन्हें, सूरत नहीं पसन्द।। कहीं किसी भी हाट में, बिकती नहीं तमीज। वैसा ही पौधा उगे, जैसा बोते बीज।। जो मन में रखता नहीं, किसी तरह का मैल। वो खटता है रात-दिन, ज्यों कोल्हू का बैल।। हठ करने का समय अब, निकल गया है दूर। वृद्धावस्था में कभी, मत होना मग़रूर।। जीवन में चाहो अगर, पाना कुछ सम्मान। अपनों पर मत तानना, वाणी का संधान।। लोग बाज आते नहीं, मक्कारी से आज। महज दिखावे के लिए, होते हैं सब काज।। जिसके दिल में हों भरा, ममता-समता-प्यार। वो जनता के हृदय पर, कर लेता अघिकार।। |
मंगलवार, 27 दिसंबर 2022
दोहे "ताकत देती धूप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- मात-पिता को तुम कभी, मत देना सन्ताप। नित्य नियम से कीजिए, इनका वन्दन-जाप।। -- आदिकाल से चल रही, यही जगत में रीत। वर्तमान ही बाद में, होता सदा अतीत।। -- जग में आवागमन का, चलता रहता चक्र। अन्तरिक्ष में ग्रहों की, गति होती है वक्र।। -- जिनके पुण्य-प्रताप से, रिद्धि-सिद्धि का वास। उनका कभी न कीजिए, जीवन में उपहास।। -- शीतकाल में बदन को, ताकत देती धूप। वस्त्र हमेशा पहनिए, मौसम के अनुरूप।। -- यौवन जब ढलने लगे, तभी घेरते रोग। वृद्धावस्था में कभी, मत करना हठयोग।। बुरा कभी मत सोचिए, करना मत दुष्कर्म। सेवा और सहायता, जीवन के हैं मर्म।। -- |
सोमवार, 26 दिसंबर 2022
गीत "पूजन-वन्दन करने वालों" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- माता का सम्मान करो, जय माता की कहने वालों। भूतकाल को याद करो, नवयुग में रहने वालों।। -- झाड़ और झंखाड़ हटाकर, राह बनाना सीखो, ऊबड़-खाबड़ धरती में भी, फसल उगाना सीखो, गंगा में स्नान करो, कीचड़ में रहने वालों। भूतकाल को याद करो, नवयुग में रहने वालों।। -- बेटों के जैसा ही, बेटी से भी प्यार करो ना, नारी से नर पैदा होते, ये भी ध्यान धरो ना, मत जीवन बरबाद करो, दुनिया में रहने वालों। भूतकाल को याद करो, नवयुग में रहने वालों।। -- दया-धर्म और क्षमा-सरलता, ही सच्चे गहने हैं, दुर्गा-सरस्वती-लक्ष्मी ही, अपनी माता-बहनें हैं। घर अपना आबाद करो, पूजन-वन्दन करने वालों। भूतकाल को याद करो, नवयुग में रहने वालों।। -- |
रविवार, 25 दिसंबर 2022
दोहे "शब्दों से वाचाल थे, मन से रहे सशक्त" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
माता के इस लाल पर, भारत को अभिमान।। -- आज दिखावे के लिए, लगी सदन में भीड़। अटल बिहारी के बिना, सूना संसद नीड़।। -- कथनी-करनी में अटल, सदा रहे अनुरक्त। शब्दों से वाचाल थे, मन से रहे सशक्त।। -- अटल बिहारी हों भले, अन्तरिक्ष में लीन। पुनर्जन्म लेंगे यहाँ, सबको यही यकीन।। -- देशभक्ति-दलभक्ति के, संगम थे अभिराम। अमर रहेगा जगत में, अटल आपका नाम।। -- आने-जाने के नहीं, नियत दिवस-तारीख। देता काल-कराल है, दुनिया भर को सीख।। -- लुप्त हो गया सदन में, स्वस्थ हास-परिहास। संसद में अब काव्य का, मेला हुआ उदास।। -- देशवासियों के लिए, क्रिसमस का उपहार। अटल बिहारी के बिना, सूना लगता द्वार।। -- |
प्रकाशन "ग़ज़ल-पहाड़ों के ढलानों पर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- बनाये नीड़ हैं हमने, पहाड़ों के मचानों पर उगाते फसल अपनी हम, पहाड़ों के ढलानों पर -- मशीनों से नहीं हम हाथ से रोज़ी कमाते हैं नहीं हम बेचते गल्ला, लुटेरों को दुकानों पर -- बशर करते हैं अपनी ज़िन्दग़ी, दिन-रात श्रम करके वतन के वास्ते हम जूझते, दुर्गम ठिकानों पर -- हमारे दिल के टुकड़े, होटलों में माँजते बर्तन बने दरबान कुछ लड़के, सियासत के मुकामों पर -- पहाड़ी "रूप" की अपने, यही असली कहानी है हमारी तो नहीं गिनती, चमन के पायदानों पर -- |
शनिवार, 24 दिसंबर 2022
गीत "यीशू धरती पर आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
25 दिसम्बर बड़ा दिन हार्दिक शुभकामनाएँ दुखियों की सेवा करने को, यीशू धरती पर आया। निर्धनता में पलकर जग को जीवन दर्शन समझाया।। -- जन-जन को सन्देश दिया, सच्ची बातें स्वीकार करो! छोड़ बुराई के पथ को, अच्छाई अंगीकार करो!! कुदरत के ज़र्रे-ज़र्रे में, रहती है प्रभु की माया। निर्धनता में पलकर जग को जीवन दर्शन समझाया।। -- मज़हब की कच्ची माटी में, कुश्ती और अखाड़ा क्यों? फल देने वाले पेड़ों पर, आरी और कुल्हाड़ा क्यों? क्षमा-सरलता और दया का, पन्थ अनोखा बतलाया। निर्धनता में पलकर जग को जीवन दर्शन समझाया।। -- हत्या-लूटपाट करना, अपराध घिनौना होता है। महिलाओं का कोमल तन-मन, नहीं खिलौना होता है। कभी जुल्म मत ढाना इनपर, ये हम सबकी हैं जाया। निर्धनता में पलकर जग को जीवन दर्शन समझाया।। -- |
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