जय हो माँ पूर्णागिरि माता की माँ पूर्णागिरि का मन्दिर दिल्ली से 350 किमी और मुरादाबाद से 220 किमी की दूरी पर है, जो उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले में पहाड़ की ऊँची चोटी पर स्थित है। दिल्ली से टनकपुर के लिए एक दर्जन से अधिक बसे प्रतिदिन आनन्द विहार बस टर्मिनल से चलती हैं। टनकपुर से 17 किमी दूर 7 किमी पहाड़ की चढ़ाई के बाद माता जी का मन्दिर है। आजकल तो टैक्सियाँ और कारें भैरो मन्दिर तक भी जाने लगीं हैं और पैदल दूरी दो किमी से भी कम है। होली के समाप्त होते ही माँ पूर्णागिरि का मेला प्रारम्भ हो जाता है और भक्तों की जय-जयकार सुनाई देने लगती है! मेरा घर हाई-वे के किनारे ही है। अतः साईकिलों पर सवार दर्शनार्थी और बसों से आने वाले श्रद्धालू अक्सर यहीं पर विश्राम कर लेते हैं। यदि आपका कभी माँ पूर्णागिरि के दर्शन करने का मन हो तो सबसे पहले आप खटीमा से 7 किमी दूर पूर्णागिरि मार्ग पर चकरपुर में बनखण्डी महादेव के प्राचीन शिव मन्दिर के दर्शन अवश्य करें। मान्यता है कि शिवरात्रि पर रात में भोले बाबा के साधारण से दिखने वाले पत्थर का रंग सात बार बदलता है। पुल के चौंतीस पिलर्स (गेट) हैं उनको पार करने के उपरान्त आपको भारत की आब्रजन और सीमा चौकी पर भी बताना होगा कि हम नेपाल घूमने के लिए जा रहे हैं। और अगर समय हो तो नेपाल के शहर महेन्द्रनगर की विदेश यात्रा भी कर लें। रास्ते में आपको दिव्य आद्या शक्तिपीठ का भव्य मन्दिर भी दिखाई देगा। आप यहाँ पर भी अपनी वन्दना प्रार्थना करना न भूलें। यहाँ से 4 किमी दूर जाकर पहाड़ी रास्ते की यात्रा आपको पैदल ही करनी होगी मगर आजकल जीप भी चलने लगीं है इस मार्ग पर। जो आपको भैरव मन्दिर पर छोड़ देंगी। भैरव मन्दिर के बाद तो कोई सवारी मिलने का सवाल ही नहीं उठता हैा। अपना भार स्वयं उठाते हुए यहाँ से आप माता के दरबार तक 2 किमी तक पैदल चलेंगे। यहाँ पर आप अपने बाल-गोपाल का मुण्डन संस्कार भी करा सकते हैं। यह है माता के मन्दिर का पिछला भाग। यदि भीड़ कम हुई तो शीघ्र ही माता के दर्शनों का लाभ भी मिल जाएगा। यही वो छोटा सा मन्दिर है जिसके दर्शनों के लिए आप इतना कष्ट उठा कर यहाँ तक आयेंगे। मगर इसकी मान्यताएँ बहुत बड़ी हैं। नीचे है माता के दरबार से लिया गया पर्वतों का मनोहारी चित्र। जिसमें नीचे शारदा नदी दिखाई दे रही है। आप जिस रास्ते से माता के दर्शन करने के लिए आये थे अब उस रास्ते से वापिस नहीं जा पाएँगे क्योंकि मन्दिर से नीचे उतरने के लिए अलग से सीढ़िया बनाई गईं हैं। यहाँ आपको यह भोला-भाला नन्दी और कुष्ट रोगियों के परिवार खाना पकाते खाते हुए भी नजर आयेंगे। आपकी श्रद्धा हो तो आप दान-पुण्य भी कर सकते हैं। माता पूर्णागिरि आपकी मनोकामनाएँ पूर्ण करें। |
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शुक्रवार, 31 मार्च 2023
फोटो फीचर "माँ पूर्णागिरि का दरबार सजा हुआ है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 30 मार्च 2023
गीत "'रूप' बदलता जाता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- मोम कभी हो जाता है, तो पत्थर भी बन जाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।। -- कभी किसी की नहीं मानता, प्रतिबन्धों को नहीं जानता। भरता है बिन पंख उड़ानें, जगह-जगह की ख़ाक छानता। वही काम करता है यह, जो इसके मन को भाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।। -- अच्छे लगते अभिनव नाते, करता प्रेम-प्रीत की बातें। झोली होती कभी न खाली सबके लिए भरी सौगातें। तन को रखता सदा सुवासित, चंचल सुमन कहाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।। -- पौध सींचता सम्बन्धों की, रीत निभाता अनुबन्धों की। मीठे पानी के सागर को, नहीं जरूरत तटबन्धों की। बाँध तोड़ देता है सारे, जब रसधार बहाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।। -- |
बुधवार, 29 मार्च 2023
दोहे "माता का वरदान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- व्रत-तप-पूजन के लिए, आते हैं नवरात। माँ को मत बिसराइए, बदलेंगे हालात।। नारी नर की खान है, सब देते सन्देश। सिर्फ सुनाने के लिए, उनके हैं उपदेश।। जागो अब तो नारियों, तुम हो दुर्गा रूप। तुम्हें बदलना चाहिए, मौसम के अनुरूप।। शक्ति स्वरूपा हो तुम्हीं, माता का अवतार। तुमको ही तो जगत का, करना है उद्धार।। माँ के चेहरे पर रहे, सहज-सरल मुसकान। माता से बढ़कर नहीं, कोई देव महान।। -- पूजन-अर्चन से मिले, माता का वरदान। प्रतिदिन करना चाहिए, माता का गुणगान।। -- जय दुर्गा नवरात में, बोल रहे थे लोग। बाकी पूरे सालभर, मुर्गा का उपभोग।। -- जीभ चटाखे ले रही, होठों पर हरिनाम। ऐसे लोगों से हुए, धर्म-कर्म नाकाम।। -- नहीं क्षमा के योग्य हैं, लोगों के ऐमाल। लोग कर रहे नित्य ही, झटका और हलाल।। -- कुछ को सूकर से घृणा, कुछ को गौ से प्यार। सामिष भोजन से बढ़े, आपस में तकरार।। -- सुधर जाय यदि देश के, लोगों का आहार। तब ही होगा वतन में, सब तबकों में प्यार।। -- |
मंगलवार, 28 मार्च 2023
गीत "आचरण-व्यवहार अब कैसे फलेगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- रौशनी का सिलसिला कैसे चलेगा? आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा? -- भावनाओं का सबल आलाप ये कहने लगा, नेह का बिरुआ यहाँ कैसे पलेगा? आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा? -- लोच है जिनके बदन में, वो सभी रह जायेंगे, जो तने-अकड़े हुए हैं, वो सभी ढह जायेंगे, आचरण-व्यवहार अब कैसे फलेगा? आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा? -- आँधियों का दौर है, क्यों खेलते हो आग से, मन-बदन शीतल बनाना, फाल्गुन की फाग से, रंग के बिन दिवस अब कैसे ढलेगा? आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा? -- |
सोमवार, 27 मार्च 2023
"मत परिवार बढ़ाना तुम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- कहाँ चले ओ बन्दर मामा, मामी जी को साथ लिए। इतने सुन्दर वस्त्र आपको, किसने हैं उपहार किये।। -- हमको ये आभास हो रहा, शादी आज बनाओगे। मामी जी के साथ, कहीं उपवन में मौज मनाओगे।। -- दो बच्चे होते हैं अच्छे, रीत यही अपनाना तुम। महँगाई की मार बहुत है, मत परिवार बढ़ाना तुम। -- चना-चबेना खाकर, अपनी गुजर-बसर कर लेना तुम। अपने दिल में प्यारे मामा, धीरजता धर लेना तुम।। -- छीन-झपट, चोरी-जारी से, सदा बचाना अपने को। माल पराया पा करके, मत रामनाम को जपना तुम।। -- कभी इलैक्शन मत लड़ना, संसद में मारा-मारी है। वहाँ तुम्हारे कितने भाई, बैठे भारी-भारी हैं।। -- बजरंगबली के वंशज हो तुम, ध्यान तुम्हारा हम धरते। सुखी रहो मामा-मामी तुम, यही कामना हम करते।। -- |
रविवार, 26 मार्च 2023
गीत "देवालय में बूढ़ा बरगद जिन्दा है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- अभी गाँव के देवालय में बूढ़ा बरगद जिन्दा है। करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।। -- बाबू-अफसर-नेता करते, खुलेआम रिश्वतखोरी, जिनका खाते माल, उन्हीं से करते हैं सीनाजोरी, मक्कारी के जालों में, उलझा मासूम परिन्दा है। करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।। -- माँ-बहनों की लज्जा लुटती, गलियों में-बाजारों में, गुण्डागर्दी करने वाले, शामिल हैं सरकारों में, लालन-पालन करने वाला, परेशान कारिन्दा है। करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।। -- लोकतन्त्र में शासन करने के, सब ही अधिकारी हैं, कुटुम-कबीलों की इसमे, क्यों होती भागीदारी हैं, कब छोड़ोगे सिंहासन को कहता हर बाशिन्दा है। करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।। -- ओछी गगरी घनी छलकती, भरी हुई चुपचाप रहे, जिसकी दाढ़ी में तिनका है, वही ज्ञान की बात कहे, घोटाले करने वाला ही, करता चुगली-निन्दा है। करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।। -- |
शनिवार, 25 मार्च 2023
पुस्तक समीक्षा "चंचल अठसई" दोहा संग्रह (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
समीक्षा "चंचल अठसई" --
अपने पिछत्तर साल के जीवन में मैंने यह देखा है कि गद्य-पद्य में
रचनाधर्मी बहुत लम्बे समय से सृजन कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो दोहों की
रचना में आज भी संलग्न हैं। "चंचल अठसई" मेरे विचार से कोई नया प्रयोग
तो नहीं है। किन्तु इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को दोहों की विशेषताओं का
संग-साथ लेकर कवि ओम् शरण आर्य ने अपने दोहा-संकलन में पिरोया है। जिसकी जितनी
प्रशंसा की जाये वो कम ही होगी।
यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक रचनाकार छिपा होता है, जो अपनी रुचियों
के अनुसार गद्य-पद्य की रचना करता है। किन्तु आज के छन्दहीन रचनाओं के परिवेश
में छन्दबद्ध काव्य की रचना करना स्वयं में सराहनीय कार्य है। काव्य रचना करनेवाले लोग कवियों और विधा
विशेष में छन्दबद्ध लिखने वालों की गिनती विशिष्ट कवियों की श्रेणी में आती है।
ऐसे लोग अक्सर समाज सुधारक ही होते हैं। जो अपने गृहस्थ जीवन का निर्वहन करते
हुए यह विलक्षण कार्य करते हैं। कई दिनों से मैंने इस कृति पर कुछ
लिखने का मन बनाया। परन्तु अपने निजी कार्यों और दैनिक उलझनों के कारण समय नहीं
निकाल पाया। भूमिका और समीक्षा के लिए मेरी बुकसैल्फ में कई पुस्तकें कतार में
थीं। अतः अपनी आदत के अनुसार "चंचल अठसई" दोहा-संग्रह के बारे में कुछ
शब्द लिखने के लिए मेरी अंगुलियाँ कम्प्यूटर के की बोर्ड पर चलनें लगी। कवि ओम् शरण आर्य चंचल अध्यापन
से अवकाशप्राप्त ग्राम-परोड़ा (हथपऊ) जिला- मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) के मूल
निवासी हैं और वर्तमान में नैनीताल जिले के पीरूमदारा (रामनगर) में आकर बस गये
हैं। आप अनेकों सम्मान से सम्मानित हैं और विभिन्न सामाजिक और राजकीय
प्रतिष्ठानों में काव्य पाठ कर चुके हैं। अब तक आपकी मुक्तिका (मुक्तक संग्रह),
दीप जलाओ (बाल काव्य), बाल दोहा शतक (दोहा संग्रह) नई रोशनी (महाकाव्य), सुनो
कहानी (कथा संग्रह), ऊँची भरो उड़ान (चंचल चतुष्पदी संग्रह), अच्छे बच्चे (बाल
कविता संग्रह) आदि आठ कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी लेखनी जीवनोपयोगी साहित्य लिखने में आज भी
गतिमान है। जिसका स्वतः प्रमाण उनकी सद्यः प्रकाशित कृति "चंचल अठसई" दोहा-संग्रह है। जो अपने
नाम के अनुरूप ही सकारात्मक और अर्थपूर्ण दोहों का एक कोश है। उदाहरण के लिए
यहाँ मैं कवि ओम् शरण आर्य चंचल जी के कुछ
दोहों को उद्धृत कर रहा हूँ-
इस संकलन की पहली रचना में माँ वीणा पाणि की वन्दना भावपूर्ण दोहों में
की गयी है - "दयामयी माँ शारदे! इतना कर उपकार। हिय में रहे न छल-कपट, बरसे पावन
प्यार।। माँ तेरे उपकार का, चुका न पाऊँ मोल। वीणा वादिनी ज्ञान के, चक्षु दिये हैं खोल।।" कवि ने माँ-बाप शीर्षक से बहुत ही
मार्मिक दोहे रचे हैं। देखिए- " दुख में दुखियाती सदा, सुख में
हर्षित होय। माँ जैसा संसार में, दिखा न मुझको कोय।।"
दोहरा चरित्र शीर्षक से कवि कवि
ने अपनी वेदना प्रकट करते हुए लिखा है- "बाहर अनुपम सादगी, भीतर भरा
गुमान। जाने कितने रंग अब, बदल रहा इंसान।।" नश्वरता पर भी आपके दोहे सुन्दर बन
पड़े हैं। देखिए- "अपने सुघड़ शरीर पर, करना नहीं
गुरूर। पलक झपकते स्वर्ण तन, हो जाता है धूर।।"
मेरे अपने अनुसार संकलन के
अधिकांश दोहे नीति के श्लोकों से कम नहीं हैं। देखिए- "पल-पल की लेते खबर, जो हैं
मालामाल। चंचल लोग गरीब का, नहीं पूथछते हाल।।"
सत्य के दर्शन को दर्शाता एक और दोहा भी देखिए- "कटुता से कटुता मिले, मिले प्यार
से प्यार। सच्चाई का फल मधुर, कर देखो व्यवहार।।"
वैसे तो इस संकलन के सभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं किन्तु यह दोहा भी बहुत
उपयोगी है- "आये हैं लेकर सभी, अपना-अपना भाग। कष्ट उन्हें जिनमें नहीं, प्रेम तपस्या-त्याग।।"
इस संकलन की एक और सशक्त दोहा बहुत प्रभावित करता है- "आहट के घुँघरू बजे, खड़े हो गये कान। नाची चिन्ता रात भर, तन-मन भरी थकान।।" कुल मिलाकर कवि ओम् शरण आर्य चंचल ने अपनी
दोहा कृति “चंचल अठसई” में मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ सामाजिक और प्राकृतिक उपादानों को भी अपने दोहों का विषय बनाया है।
मुझे पूरा विश्वास है कि कवि के अनमोल मोतियों से सुसज्जित दोहों की कृति
“चंचल अठसई” को पढ़कर सभी वर्गों के पाठक
लाभान्वित होंगे तथा समीक्षकों की दृष्टि से भी यह कृति उपादेय सिद्ध होगी। इस
अनमोल संग्रह के लिए मैं कवि ओम् शरण आर्य चंचल को बधाई देता हूँ
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। दिनांक- 24 मार्च, 2023 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कवि एवं साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308 E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com Website.
http://uchcharan.blogspot.com/ मोबाइल-7906360576, 7906295141 |
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