समीक्षा "चंचल अठसई" --
अपने पिछत्तर साल के जीवन में मैंने यह देखा है कि गद्य-पद्य में
रचनाधर्मी बहुत लम्बे समय से सृजन कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो दोहों की
रचना में आज भी संलग्न हैं। "चंचल अठसई" मेरे विचार से कोई नया प्रयोग
तो नहीं है। किन्तु इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को दोहों की विशेषताओं का
संग-साथ लेकर कवि ओम् शरण आर्य ने अपने दोहा-संकलन में पिरोया है। जिसकी जितनी
प्रशंसा की जाये वो कम ही होगी।
यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक रचनाकार छिपा होता है, जो अपनी रुचियों
के अनुसार गद्य-पद्य की रचना करता है। किन्तु आज के छन्दहीन रचनाओं के परिवेश
में छन्दबद्ध काव्य की रचना करना स्वयं में सराहनीय कार्य है। काव्य रचना करनेवाले लोग कवियों और विधा
विशेष में छन्दबद्ध लिखने वालों की गिनती विशिष्ट कवियों की श्रेणी में आती है।
ऐसे लोग अक्सर समाज सुधारक ही होते हैं। जो अपने गृहस्थ जीवन का निर्वहन करते
हुए यह विलक्षण कार्य करते हैं। कई दिनों से मैंने इस कृति पर कुछ
लिखने का मन बनाया। परन्तु अपने निजी कार्यों और दैनिक उलझनों के कारण समय नहीं
निकाल पाया। भूमिका और समीक्षा के लिए मेरी बुकसैल्फ में कई पुस्तकें कतार में
थीं। अतः अपनी आदत के अनुसार "चंचल अठसई" दोहा-संग्रह के बारे में कुछ
शब्द लिखने के लिए मेरी अंगुलियाँ कम्प्यूटर के की बोर्ड पर चलनें लगी। कवि ओम् शरण आर्य चंचल अध्यापन
से अवकाशप्राप्त ग्राम-परोड़ा (हथपऊ) जिला- मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) के मूल
निवासी हैं और वर्तमान में नैनीताल जिले के पीरूमदारा (रामनगर) में आकर बस गये
हैं। आप अनेकों सम्मान से सम्मानित हैं और विभिन्न सामाजिक और राजकीय
प्रतिष्ठानों में काव्य पाठ कर चुके हैं। अब तक आपकी मुक्तिका (मुक्तक संग्रह),
दीप जलाओ (बाल काव्य), बाल दोहा शतक (दोहा संग्रह) नई रोशनी (महाकाव्य), सुनो
कहानी (कथा संग्रह), ऊँची भरो उड़ान (चंचल चतुष्पदी संग्रह), अच्छे बच्चे (बाल
कविता संग्रह) आदि आठ कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी लेखनी जीवनोपयोगी साहित्य लिखने में आज भी
गतिमान है। जिसका स्वतः प्रमाण उनकी सद्यः प्रकाशित कृति "चंचल अठसई" दोहा-संग्रह है। जो अपने
नाम के अनुरूप ही सकारात्मक और अर्थपूर्ण दोहों का एक कोश है। उदाहरण के लिए
यहाँ मैं कवि ओम् शरण आर्य चंचल जी के कुछ
दोहों को उद्धृत कर रहा हूँ-
इस संकलन की पहली रचना में माँ वीणा पाणि की वन्दना भावपूर्ण दोहों में
की गयी है - "दयामयी माँ शारदे! इतना कर उपकार। हिय में रहे न छल-कपट, बरसे पावन
प्यार।। माँ तेरे उपकार का, चुका न पाऊँ मोल। वीणा वादिनी ज्ञान के, चक्षु दिये हैं खोल।।" कवि ने माँ-बाप शीर्षक से बहुत ही
मार्मिक दोहे रचे हैं। देखिए- " दुख में दुखियाती सदा, सुख में
हर्षित होय। माँ जैसा संसार में, दिखा न मुझको कोय।।"
दोहरा चरित्र शीर्षक से कवि कवि
ने अपनी वेदना प्रकट करते हुए लिखा है- "बाहर अनुपम सादगी, भीतर भरा
गुमान। जाने कितने रंग अब, बदल रहा इंसान।।" नश्वरता पर भी आपके दोहे सुन्दर बन
पड़े हैं। देखिए- "अपने सुघड़ शरीर पर, करना नहीं
गुरूर। पलक झपकते स्वर्ण तन, हो जाता है धूर।।"
मेरे अपने अनुसार संकलन के
अधिकांश दोहे नीति के श्लोकों से कम नहीं हैं। देखिए- "पल-पल की लेते खबर, जो हैं
मालामाल। चंचल लोग गरीब का, नहीं पूथछते हाल।।"
सत्य के दर्शन को दर्शाता एक और दोहा भी देखिए- "कटुता से कटुता मिले, मिले प्यार
से प्यार। सच्चाई का फल मधुर, कर देखो व्यवहार।।"
वैसे तो इस संकलन के सभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं किन्तु यह दोहा भी बहुत
उपयोगी है- "आये हैं लेकर सभी, अपना-अपना भाग। कष्ट उन्हें जिनमें नहीं, प्रेम तपस्या-त्याग।।"
इस संकलन की एक और सशक्त दोहा बहुत प्रभावित करता है- "आहट के घुँघरू बजे, खड़े हो गये कान। नाची चिन्ता रात भर, तन-मन भरी थकान।।" कुल मिलाकर कवि ओम् शरण आर्य चंचल ने अपनी
दोहा कृति “चंचल अठसई” में मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ सामाजिक और प्राकृतिक उपादानों को भी अपने दोहों का विषय बनाया है।
मुझे पूरा विश्वास है कि कवि के अनमोल मोतियों से सुसज्जित दोहों की कृति
“चंचल अठसई” को पढ़कर सभी वर्गों के पाठक
लाभान्वित होंगे तथा समीक्षकों की दृष्टि से भी यह कृति उपादेय सिद्ध होगी। इस
अनमोल संग्रह के लिए मैं कवि ओम् शरण आर्य चंचल को बधाई देता हूँ
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। दिनांक- 24 मार्च, 2023 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कवि एवं साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308 E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com Website.
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शनिवार, 25 मार्च 2023
पुस्तक समीक्षा "चंचल अठसई" दोहा संग्रह (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर समीक्षा
जवाब देंहटाएंबढ़िया समीक्षा...लेखक को शुभकामनाएं और बधाई।
जवाब देंहटाएंकवि ओम् शरण आर्य चंचल को उनकी कृति 'चंचल अठसई' के लिए व आपको सार्थक समीक्षा के लिए बधाई!
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