-- ये भी सही और वो भी सही है हारे का हथियार तो बस यही है। -- लबों ने सहारा लिया है कहन में कहावत के जरिये सभी कुछ कही है -- चलें शेर-शायर अलग राह अपनी बनारस में गंगा तो उलटी बही है -- वही बन गया आदमी दोजहाँ में हिदायत बुजुर्गों की जिसने सही है -- जो लिक्खा नहीं मायने क्या है उसके बताता जमा-खर्च खाता-बही है -- हकीकत से मत अपना दामन बचाना न जमती फटे दूध से तो दही है -- कमजोर बुनियाद पर जो बनी है झटकों से वो ही इमारत ढही है -- नहीं ‘रूप’ से जंग लड़ना है मुमकिन अदाओं की अपनी रवायत रही है -- |
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शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023
ग़ज़ल "बनारस में गंगा तो उलटी बही है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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