अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से "खरगोश" -- रूई जैसा कोमल-कोमल, लगता कितना प्यारा है। बड़े-बड़े कानों वाला, सुन्दर खरगोश हमारा है।। -- बहुत प्यार से मैं इसको, गोदी में बैठाता हूँ। बागीचे की हरी घास, मैं इसको रोज खिलाता हूँ।। -- मस्ती में भरकर यह लम्बी-लम्बी दौड़ लगाता है। उछल-कूद करता-करता, जब थोड़ा सा थक जाता है।। -- तब यह उपवन की झाड़ी में, छिप कर कुछ सुस्ताता है। ताज़ादम हो करके ही, मेरे आँगन में आता है।। -- नित्य-नियम से सुबह-सवेरे, यह घूमने जाता है। जल्दी उठने की यह प्राणी, सीख हमें दे जाता है।। -- |
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रविवार, 18 जून 2023
"सुन्दर खरगोश हमारा है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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