!! शुभ-दीपावली !! -- रोशनी का पर्व है, दीपक जलायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- बातियाँ नन्हें दियों की कह रहीं, इसलिए हम वेदना को सह रहीं, तम मिटाकर, हम उजाले को दिखायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- डूबते को एक तृण का है सहारा, जीवनों को अन्न के कण ने उबारा, धरा में धन-धान्य को जम कर उगायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- जेब में ज़र है नही तो क्या दिवाली, मालखाना माल बिन होता है खाली, किस तरह दावा उदर की वो बुझायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- आज सब मिल-बाँटकर खाना मिठाई, दीप घर-घर में जलाना आज भाई, रोज सब घर रोशनी में झिलमिलायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। -- |
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सोमवार, 20 अक्टूबर 2025
गीत "नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 19 अक्टूबर 2025
"धनतेरस, नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भइयादूज की शुभकामनाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
![]() ![]() ![]() ![]() | ![]() आलोकित हो वतन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। कंचन जैसा तन चमका हो, उल्लासों से मन दमका हो, खुशियों से महके चौबारा। हो सारे जग में उजियारा।। आओ अल्पना आज सजाएँ, माता से धन का वर पाएँ, आओ दूर करें अँधियारा। हो सारे जग में उजियारा।। घर-घर बँधी हुई हो गैया, तब आयेगी सोन चिरैया, सुख का सरसेगा फव्वारा। होगा तब जग में उजियारा।। आलोकित हो वतन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। ♥♥♥ पर्वों की शृंखला में आप सभी को धनतेरस, नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ! ♥ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”♥ |
दोहे "धन्वन्तरि जयन्ती-नरक चतुर्दशी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
देती नरकचतुर्दशी, सबको यह सन्देश। साफ-सफाई को करो, सुधरेगा परिवेश।। -- दीपक यम के नाम का, जला दीजिए आज। पूरी दुनिया से अलग, हो अपने अंदाज।। -- जन्मे थे धनवन्तरी, करने को कल्याण। रहें निरोगी सब मनुज, जब तक तन में प्राण।। -- भेषज लाये धरा से, खोज-खोज भगवान। धन्वन्तरि संसार को, देते जीवनदान।। -- रोग किसी के भी नहीं, आये कभी समीप। सबके जीवन में जलें, हँसी-खुशी के दीप।। -- त्यौहारों की शृंखला, पावन है संयोग। इसीलिए दीपावली, मना रहे सब लोग।। -- कुटिया-महलों में जलें, जगमग-जगमग दीप। सरिताओं के रेत में, मोती उगले सीप।। |
सोमवार, 13 अक्टूबर 2025
दोहे "पर्व अहोई खास" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- कुलदीपक के है लिए, पर्व अहोई खास। होती है सन्तान पर, माताओं को आस।1। -- माताएँ इस दिवस पर, करती हैं अरदास। उनके सुत का हो नहीं, मुखड़ा कभी उदास।2। -- सन्तानों के लिए है, यह अद्भुत त्यौहार। बेटा-बेटी में करो, समता का ब्यौहार।3। -- शिशुओं की किलकारियाँ, गूँजें सबके द्वार। मिलता बड़े नसीब से, मात-पिता का प्यार।4। -- घर के बड़े-बुजुर्ग है, जीवन में अनमोल। मात-पिता के प्यार को, दौलत से मत तोल।5। -- चाहे कोई वार हो, कोई हो तारीख। संस्कार देते हमें, कदम-कदम पर सीख।6। -- जीवन में उल्लास को, भर देते हैं पर्व। त्यौहारों की रीत पर, हमको होता गर्व।7। -- माता जी सिखला रही, बहुओं को सब ढंग। होते हर त्यौहार के, अपने-अपने रंग।8। -- |
रविवार, 12 अक्टूबर 2025
दोहे "किसान दिवस" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
धन के बल पर जुट रहा, भारी
आज हुजूम। कृषक-दिवस के नाम पर,
आडम्बर की धूम।। माटी में करता कृषक, खुद
को मटिया-मेट। फिर भी भरता जा रहा, वो
दुनिया का पेट।। दीन-हीन क्यों हो गया, धरती
का भगवान। देख कृषक की दुर्दशा, भारत
माँ हैरान।। चाहे भारत में रही, कोई
भी सरकार। नहीं किसानों को दिया,
जीवन का आधार।। झूठे भाषण सब करें, झूठी
करते प्रीत। है पोषण के नाम पर, शोषण
की सब रीत।। जागो श्रमिक-किसान अब, धरती
करे पुकार। दूर सियासत से करो, झूठे
नम्बरदार।। कहते भारत देश से, खेत
और खलिहान। शासक बनना चाहिए, धरती
का भगवान।। |
शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025
करवा चौथ गीत "सलामत रहो साजना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कर रही हूँ प्रभू से यही प्रार्थना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। -- चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो, उन्नति की सदा सीढ़ियाँ तुम चढ़ो, आपकी सहचरी की यही कामना। -- ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। आभा-शोभा तुम्हारी दमकती रहे, मेरे माथे पे बिन्दिया चमकती रहे, मुझपे रखना पिया प्यार की भावना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। -- तीर्थ और व्रत सभी हैं तुम्हारे लिए, चाँद-करवा का पूजन तुम्हारे लिए, मेरे प्रियतम तुम्ही मेरी आराधना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। -- |
सोमवार, 6 अक्टूबर 2025
दोहे "शरद पूर्णिमा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
शशि की किरणों में भरी, सबसे अधिक उजास। शरदपूर्णिमा धरा पर, लाती है उल्लास।१। -- लक्ष्मीमाता धरा पर , आने को तैयार। शरदपूर्णिमा पर्व पर, लेती हैं अवतार।२। -- त्यौहारों का आगमन, करे कार्तिक मास। सरदी का होने लगा, अब कुछ-कुछ आभास।३। -- दीपमालिका आ रही, लेकर अब उपहार। देता शुभसन्देश है, पावस का त्यौहार।४। -- दमक उठे हैं रात में, कोठी-महल-कुटीर। नदियों में बहने लगा, निर्मल पावन नीर।५। -- अमृत वर्षा कर रही, शरदपूर्णिमा रात। आज अनोखी दे रहा, शरदचन्द्र सौगात।६। -- खिला हुआ है गगन में, उज्जवल-धवल मयंक। नवल-युगल मिलते गले, होकर आज निशंक।७। -- निर्मल हो बहने लगा, सरिताओं में नीर। मन्द-मन्द चलने लगा, शीतल-सुखद समीर।८। -- शरदपूर्णिमा दे रही, सबको यह सन्देश। तन-मन, आँगन-गेह का, करो स्वच्छ परिवेश।९। -- फसल धान की आ गयी, खुशियाँ लेकर साथ। भरा रहेगा धान्य से, मजदूरों का हाथ।१०। -- |
गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025
दोहे "विजयादशमी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अच्छाई के सामने, गयी बुराई हार।। -- विजयादशमी विजय का, पावन है त्यौहार। आज झूठ है जीतता, सत्य रहा है हार।। -- रावण के जब बढ़ गये, भू पर अत्याचार। लंका में जाकर उसे, दिया राम ने मार।। -- तब से पुतले दहन का, बढ़ता गया रिवाज। मन का रावण आज तक, जला न सका समाज।। -- आज भोग में लिप्त हैं, योगी और महन्त। भोली जनता को यहाँ, भरमाते हैं सन्त।। -- दावे करते हैं सभी, बदलेंगे तकदीर। अपनी रोटी सेंकते, राजा और वजीर।। -- मनसा-वाचा-कर्मणा, नहीं सत्य भरपूर। आम आदमी मजे से, आज बहुत है दूर।। -- |
बुधवार, 1 अक्टूबर 2025
बातें व्याकरण की "अनुस्वार का प्रयोग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बातें व्याकरण की "अनुस्वार का प्रयोग" हिन्दी
वालों! बड़े दुःख की बात है कि हम हिन्दी वालों ने
ही हिन्दी की सबसे बड़ी दुर्दशा की है। सच कहा जाय तो हम आज भी हिन्दी में
बिन्दी अर्थात् अनुस्वार का प्रयोग करना नहीं जानते हैं। मैं यह बात कम
पढ़े-लिखे नहीं बल्कि हिन्दी पढ़ानेवाले आचार्यों की कर रहा हूँ। जो पञ्चमाक्षर का
प्रयोग अपने लेखन में नहीं कर रहे हैं। बेड़ा गर्क हो एन.सी.ई.आर.टी. का जिसने
हिन्दी के सरलीकरण के नाम पर हिन्दी को व्याकरण से दूर कर दिया है। क ख ग घ ड. ("क" परिवार अर्थात् कवर्ग) च छ ज झ ञ
("ख" परिवार अर्थात् चवर्ग) ट ठ ड ढ ण ("ट" परिवार अर्थात् टवर्ग) त थ द ध न
("त" परिवार अर्थात् तवर्ग) प फ ब भ म ("प" परिवार अर्थात् पवर्ग) उपरोक्त पच्चीस व्यञ्जन स्पर्श व्यञजनों की श्रेणी में आते हैं। अतः
अनुस्वार अर्थात् बिन्दी भी इन्हीं के अनुसार इनके पञ्माक्षर का प्रयोग करके
लगायी जानी चाहिए। क्योंकि इन पाँचों परिवारों (वर्गों) के जो अक्षर हैं वे अपने
परिवार के वर्णों को ही स्वीकार करेंगे। यहाँ
मैं कुछ शब्द लिख रहा हूँ। गंगा चंचल ठंडा बंदर रंभा अनुस्वार
के उपरोक्त प्रयोग हिन्दी व्याकरण के अनुसार सही नहीं हैं। हिन्दी भाषा वैज्ञानिक भाषा कहलाती है
इसलिए व्याकरण के अनुसार अनुस्वार का प्रयोग भी पञ्चमाक्षर के अनुसार ही करना
चाहिए। गंगा
को "गड्.गा" लिखना सही होगा। चंचल
के "चञ्चल" लिखना सही होगा। ठंडा
को "ठण्डा" लिखना सही होगा। बंदर
को "बन्दर" लिखना सही होगा। रंभा
को "रम्भा" लिखना सही होगा। |
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