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शनिवार, 7 फ़रवरी 2009
एक व्यंग (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
एक पादप साल का,
जिसका अस्तित्व नही मिटा पाई,
कभी भी,समय की आंधी ।
ऐसा था,
हमारा राष्ट्र-पिता,महात्मा गान्धी ।।
कितना है कमजोर,
सेमल के पेड़ सा-
आज का नेता ।
जो किसी को,कुछ नही देता ।।
दिया सलाई का-
मजबूत बक्सा,
सेंमल द्वारा निर्मित,एक भवन ।
माचिस दिखाओ,और कर लो हवन ।
आग ही तो लगानी है,
चाहे-तन, मन, धन हो या वतन।।
यह बहुत मोटा, ताजा है,
परन्तु,
सूखे साल रूपी,गांधी की तरह बलिष्ट नही,
इसे तो गांधी की सन्तान कहते हुए भी-
.........................।।
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अच्छी रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंatisundar rachna hai.....
जवाब देंहटाएंbadhai hai is sunder rachna ke liye
प्रिय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंआपका व्यंग अच्छा लगा । व्यंग के प्रथम प्रयास के लिए बधाई ।
पहली बार में ही आपने आज के सभी छद्म नेताओं को धराशायी कर दिया। बहुत दम है आपकी कलम में।
जवाब देंहटाएंजो मन में आया लिख मारा,
जवाब देंहटाएंलेखनी की मत करो प्रशंसा।
सरस, सरस-पायस के रवि-
की करता हूँ मैं अनुशंसा।।
प्रिय रावेंद्र कुमार ‘‘रवि’’ जी
आपकी टिप्पणी का धन्यवाद!