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गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009
गुरू सहाय भटनागर ‘बदनाम की एक खूब सूरत गजल-प्रस्तुतिः डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
चला कर चले गये।
एक याद मेरे दिल में,
बसा कर चले गये।।
बुझती नहीं है आग,
लगायी जो सनम ने,
यादों की पालकी में,
बैठा कर चले गये।।
वो इश्क के वादों में,
कसम प्यार की खाकर,
दामन को अपने हमसे,
छुड़ा कर चले गये।।
खुशियां थी बेसुमार,
जब वो पास मेरे थे
वो शम्मा आरजू की,
बुझा कर चले गये।।
अपनी तो जफा याद है,
उनकी न वफा न याद,
घर को मेरे ‘बदनाम’,
बनाकर चले गये।
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बहुत ही सुंदर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब गजल शाश्त्रीजी, बहुत आभार इसे पढवाने के लिये.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बेहतरीन..वाह!!
जवाब देंहटाएंVERY GOOD AMAZING POEM
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा गज़ल है।बधाई।
जवाब देंहटाएंशानदार गजल। बधाई
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