जिन्दगी का गीत रोटी मे छिपा है।
साज और संगीत, रोटी में छिपा है।।
रोटियों के लिए ही, मजबूर हैं सब,
रोटियों के लिए ही, मजदूर हैं सब।
कीमती सोना व चाँदी, तब तलक,
रोटियाँ संसार में हैं, जब तलक।
खेत और खलिहान सुन्दर, तब तलक,
रोटियाँ उनमें छिपी हों, जब तलक।
झूठ, मक्कारी, फरेबी, रोटियों के रास्ते हैं,
एकता और भाईचारे, रोटियों के वास्ते हैं।
हम सभी यह जानते है, रोटियाँ इस देश में हैं,
रोटियाँ हर वेश में है, रोटियाँ परिवेश में है।
रोटियों को छीनने को , उग्रवेशी छा गये हैं,
रोटियों को बीनने को ही, विदेशी आ गये हैं।
याद मन्दिर की सताती, रोटियाँ जब पेट में हों,
याद मस्जिद बहुत आती, रोटियाँ जग पेट में हों।
राम ही रोटी बना और रोटिया ही राम हैं,
पेट की ये रोटियाँ ही, बोलती श्री-राम हैं।
रोटियों से, थाल सजते, आरती के,
रोटियों से, भाल-उज्जवल भारती के।
रोटियों से बस्तियाँ, आबाद हैं,
रोटियाँ खाकर, सभी आजाद हैं।
प्यार और मनमीत, रोटी में छिपा है।
जिन्दगी का गीत, रोटी मे छिपा है।।