ज़िन्दगी को आज खाती है सुरा।
मौत का पैगाम लाती है
सुरा।।
--
पेट में जब पड़ गई दो
घूँट हाला,
प्रेयसी लगनी लगी हर
एक बाला,
जानवर जैसा बनाती है
सुरा।
मौत का पैगाम लाती है
सुरा।।
--
ध्यान जनता का हटाने के
लिए,
नस्ल को पागल बनाने के
लिए,
आज शासन को चलाती है
सुरा,
मौत का पैगाम लाती है
सुरा।।
--
आज मयखाने सजे हर
गाँव में,
खोलती सरकार है हर
ठाँव में,
सभ्यता पर ज़ुल्म
ढाती है सुरा।
मौत का पैगाम लाती है
सुरा।।
--
इस भयानक खेल में वो
मस्त हैं,
इसलिए भोले नशेमन त्रस्त
हैं,
हर कदम पर अब सताती है
सुरा।
मौत के पैगाम को लाती
सुरा।।
--
सोमरस के दो कसैले
घूँट पी,
तोड़ कर अपनी नकेले
ऊँट भी,
नाच नंगा अब नचाती है
सुरा।
मौत के पैगाम को लाती
सुरा।।
--
डस रहे हैं देश काले नाग
अब,
कोकिला का “रूप" भऱकर काग अब,
गान गाता आज नाती
बेसुरा।
मौत का गाना सुनाती है
सुरा।।
|
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सोमवार, 31 अगस्त 2020
गीत "शासन को चलाती है सुरा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01 -9 -2020 ) को "शासन को चलाती है सुरा" (चर्चा अंक 3810) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सूरा की आदर खराब ही है ... पर आज इसका चलन पहले से कई गुना बढ़ गया है ...
जवाब देंहटाएंदुःख की बात है ...
इसकी जितनी मलामत की जाये कम है
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंसोमरस के दो कसैले घूँट पी,
तोड़ कर अपनी नकेले ऊँट भी,
नाच नंगा अब नचाती है सुरा।
मौत के पैगाम को लाती सुरा।।... बहुत खूब कहा परंतु सरकार से अधिक तो हमें अपने घरों में इस पर विस्तृत विमर्श करना चाहिए ... आजकल हम लोगों की आदत हो गई है कि हम स्वयं की ओर देखने की बजाय सरकार और समाज को दोष बड़ी आसानी से दे लेते हैं
मंदिर मस्जिद बैर करती मेल कराती मधुशाला
जवाब देंहटाएंदुखद
bahut badhiya ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना। अति हर चीज की बुरी होती है। शराब पीने वाले भी अक्सर ये भूल जाते हैं।
जवाब देंहटाएंडस रहे हैं देश काले नाग अब,
जवाब देंहटाएंकोकिला का “रूप" भऱकर काग अब,
गान गाता आज नाती बेसुरा।
मौत का गाना सुनाती है सुरा।। बेहतरीन रचना आदरणीय।