देवताओं के चित्र के, रखना इन्हें समीप।। -- दीपों की दीपावली, देती है सन्देश। घर-आँगन के साथ में, रौशन हो परिवेश।। -- पाकर बाती-नेह को, लुटा रहा है नूर। नन्हा दीपक कर रहा, अन्धकार को दूर।। -- लछमी और गणेश के, रहें शारदा साथ। चरणों में इनके सदा, रोज झुकाओ माथ।। -- कभी विदेशी माल का, करना मत उपयोग। सदा स्वदेशी का करो, जीवन में उपभोग।। -- मेरे भारतवासियों, ऐसा करो चरित्र। दौलत अपने देश की, रखो देश में मित्र।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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रविवार, 31 अक्टूबर 2021
दोहे "दीपों की दीपावली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शनिवार, 30 अक्टूबर 2021
गीत "गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दीप खुशियों के जलाओ, आ रही दीपावली। रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।। क्या करेगा तम वहाँ, होंगे अगर नन्हें दिये, चाँद-तारों को करीने से, अगर रौशन किये, हार जायेगी अमावस, छा रही दीपावली। नित्य घर में नेह के, दीपक जलाना चाहिए, उत्सवों को हर्ष से, हमको मनाना चाहिए, पथ हमें प्रकाश का, दिखला रही दीपावली। शायरों को शम्मा से, कवियों को दीपक से लगाव, महकते मिष्ठान से, होता सभी को है लगाव, गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली। गजानन के साथ, लक्ष्मी-शारदा की वन्दना, देवताओं के लिए अब, द्वार करना बन्द ना, मन्त्र को उत्कर्ष के, सिखला रही दीपावली। |
शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021
दोहे "पंच पर्व नजदीक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- पंच
पर्व नजदीक है, सजे हुए बाजार। महँगाई
के सामने, जनता है लाचार।। -- लाभ
कमाती तेल में, भारत की सरकार। झेल
रही जनता बहुत, महँगाई की मार।। -- सत्ताधारी
शान से, सुना रहे फरमान। महँगाई
से त्रस्त हैं, निर्धन-श्रमिक-किसान।। -- दुर्लभ
होते जा रहे, सभी तरह के तेल। मार
रसोईगैस की, लोग रहे हैं झेल।। -- जीवन-यापन
के हुए, बद से बदतर हाल। शिकवा
किससे हम करें, पूरी काली दाल।। -- महँगाई
की जंग में, हार गया है आम। जनसेवक
ही खा रहा, अब काजू-बादाम।। -- मैं
भगवा का समर्थक, मन से बहुत उदार। आँख
मूँद कैसे करूँ, नियम-नीति स्वीकार।। -- मोदी
जी सुन लीजिए, जनता की आवाज। तभी
भाजपा देश में, कर पायेगी राज।। -- |
गुरुवार, 28 अक्टूबर 2021
दोहे "माता के बिन लग रहे, फीके सब त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
आज अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास। जब तक माँ जीवित रही, रखती थी उपवास।। वो घर स्वर्ग समान है, जिसमें माँ का वास। अब मेरा माँ के बिना, मन है बहुत उदास।। बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज। सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।। तारतम्य टूटा हुआ, उलझ गये हैं तार। कहाँ मिलेगा अब मुझे, माता जैसा प्यार।। सूना घर का द्वार है, सूना सब संसार। माता के बिन लग रहे, फीके सब त्यौहार।। |
बुधवार, 27 अक्टूबर 2021
दोहे "पर्वों का परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- सारे जग से भिन्न है, अपना भारत देश। रहता बारह मास ही, पर्वों का परिवेश।। पर्व अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास। जिसमें बेटों के लिए, होते हैं उपवास।। दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद। बेटा-बेटी में जहाँ, दुनिया करती भेद।। पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष। अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।। बेटा-बेटी के लिए, हों समता के भाव। मिल-जुलकर मझधार से, पार लगाओ नाव।। एक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व। व्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।। बेटा-बेटी समझ लो, कुल के दीपक आज। बदलो पुरुष प्रधान का, अब तो यहाँ रिवाज।। |
मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021
गीत "रौशनी के वास्ते, जल रहा च़िराग है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सवाल पर सवाल हैं, कुछ नहीं जवाब है। राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।। गीत भी डरे हुए, ताल-लय उदास हैं. पात भी झरे हुए, शेष चन्द श्वास हैं, दो नयन में पल रहा, नग़मग़ी सा ख्वाब है। राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।। ज़िन्दगी है इक सफर, पथ नहीं सरल यहाँ, मंजिलों को खोजता, पथिक यहाँ-कभी वहाँ, रंग भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु नहीं फाग है। राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।। बाट जोहती रहीं, डोलियाँ सजी हुई, हाथ की हथेलियों में, मेंहदी रची हुई, हैं सिंगार साथ में, पर नहीं सुहाग है। राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।। इस अँधेरी रात में, जुगनुओं की भीड़ है, अजनबी तलाशता, सिर्फ एक नीड़ है, रौशनी के वास्ते, जल रहा च़िराग है। राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।। |
सोमवार, 25 अक्टूबर 2021
गीत "टूटी-फूटी रोमन-हिन्दी, हमें चिढ़ाया सा करती है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मुझसे बतियाने को कोई, चेली बन जाया करती है! उसकी बातें सुनकर मुझको, हँसी बहुत आया करती है! जान और पहचान नही है, देश-वेश का ज्ञान नही है, टूटी-फूटी रोमन-हिन्दी, हमें चिढ़ाया सा करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! कोई बिटिया बन जाती है, कोई भगिनी बन जाती है, कोई-कोई तो बुड्ढे की, साली कहलाया करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! आँख लगी तो सपना आया, आँख खुली तो मैंने पाया, बिन सिर पैरों की लिखने से, सैंडिल पड़ जाया करती हैं! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! जाल-जगत की महिमा न्यारी, वाह-वाही लगती है प्यारी, जालजगत पर सबको अपनी, श्लाघा मन-भाया करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! |
रविवार, 24 अक्टूबर 2021
गीत "मुझपे रखना पिया प्यार की भावना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
करवाचौथ विशेष कर रही हूँ प्रभू से यही प्रार्थना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। उन्नति की सदा सीढ़ियाँ तुम चढ़ो, आपकी सहचरी की यही कामना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। आभा-शोभा तुम्हारी दमकती रहे, मेरे माथे पे बिन्दिया चमकती रहे, मुझपे रखना पिया प्यार की भावना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। तीर्थ और व्रत सभी हैं तुम्हारे लिए, चाँद-करवा का पूजन तुम्हारे लिए, मेरे प्रियतम तुम्ही मेरी आराधना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। |
शनिवार, 23 अक्टूबर 2021
दोहे "करवाचौथ दिवस बहुत है खास" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपने पतियों पर करें, सभी नारियाँ गर्व। करवाचौथ सुहाग का, होता पावन पर्व।। सजनी करवाचौथ पर, रखती है उपवास। साजन-सजनी के लिए, दिवस बहुत ये खास।। जन्म-जिन्दगीभर रहे, सबका अटल सुहाग। साजन-सजनी में सदा, बना रहे अनुराग।। जरा-जरा सी बात पर, कभी न हो तकरार। पति-पत्नी के बीच में, आये नहीं दरार।। प्रीति सदा बढ़ती रहे, आपस में हो प्यार। पावन करवाचौथ है, निष्ठा का त्यौहार।। वंश-बेल चलती रहे, हँसी-खुशी के साथ। पति-पत्नी का उम्रभर, रहे सलामत साथ।। परम्परा बदली बहुत, बदल न पाया ढंग। अब भी पर्वों का चलन, नहीं हुआ है भंग।। माता करती कामना, सुखी रहे परिवार। छिने न करवाचौथ का, बहुओं से अधिकार।। |
शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2021
दोहे "आँखें नश्वर देह का, बेशकीमती अंग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कुदरत ने हमको दिया, आँखों का उपहार।। -- आँखें नश्वर देह का, बेशकीमती अंग। बिना रौशनी के लगे, सारा जग बेरंग।। -- मिल जाती है आँख जब, तब आ जाता चैन। गैरों को अपना करें, चंचल चितवन नैन।। -- दुनिया में होती अलग, दो आँखों की रीत। होती आँखें चार तो, बढ़ जाती है प्रीत।। -- पोथी में जिनका नहीं, कोई भी उल्लेख। आँखें पढ़ना जानती, वो सारे अभिलेख।। -- माता-पत्नी-बहन से, कैसा हो व्यवहार। आँखें ही पहचानतीं, रिश्तों का आकार।। -- सम्बन्धों में हो रहा, कहाँ-कहाँ व्यापार। आँखों से होता प्रकट, घृणा और सत्कार।। |
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021
गीत "जादू-टोने, जोकर-बौने, याद बहुत आते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं जब हम गर्मी में की छुट्टी में, रोज नुमाइश जाते थे इस मेले को दूर-दूर से, लोग देखने आते थे सर्कस की वो हँसी-ठिठोली, भूल नहीं पाये अब तक जादू-टोने, जोकर-बौने, याद बहुत आते हैं बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं शादी हो या छठी-जसूठन, मिलकर सभी मनाते थे आस-पास के लोग प्रेम से, दावत खाने आते थे अब कितना बदलाव हो गया, अपने रस्म-रिवाजो में दावत के वो पत्तल-दोने याद बहुत आते हैं बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं कभी-कभी हम जंगल से भी, सूखी लकड़ी लाते थे उछल-कूद कर वन के प्राणी, निज करतब दिखलाते थे वानर-हिरन-मोर की बोली, गूँज रही अब तक मन में जंगल के निश्छल मृग-छौने याद बहुत आते हैं बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं लुका-छिपी और आँख-मिचौली, मन को बहुत लुभाते थे कुश्ती और कबड्डी में, सब दाँव-पेंच दिखलाते थे होले भून-भून कर खाते, खेत और खलिहानों में घर-आँगन के कोने-कोने याद बहुत आते हैं बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं |
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