लालची कुत्तों से दामन को बचाना चाहिए। अज़नबी घोड़ों पे बाज़ी ना लगाना चाहिए।। चापलूसी आज फिर, खुदगर्ज़ करने आ गये, ऐसे लोगों को कभी, ना आजमाना चाहिए। बेच देंगे वतन को, ओछी सियासत के फकीर, मुल्क की जी-जान से, अस्मत बचाना चाहिए। कब तलक करते रहेंगे, हम पड़ोसी पर यकीन, जंग करके सबक कुछ, इनको सिखाना चाहिए। क़ातिलों को जेल में, कब तक खिलाओगे कबाब, ऐसे गद्दारों को, फाँसी पे चढ़ाना चाहिए। माफ करने की अदा, अच्छी नहीं मेरे हुजूर, अब लचर कानून में, बदलाव लाना चाहिए। "रूप" दिखलाकर नहीं दौलत कमाना चाहिए, अपनी मेहनत से, मुकद्दर को बनाना चाहिए। |
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मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021
ग़ज़ल "मुल्क की जी-जान से, अस्मत बचाना चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कब तलक करते रहेंगे, हम पड़ोसी पर यकीन,
जवाब देंहटाएंजंग करके सबक कुछ, इनको सिखाना चाहिए।
क़ातिलों को जेल में, कब तक खिलाओगे कबाब,
ऐसे गद्दारों को, फाँसी पे चढ़ाना चाहिए।
.. समय की बड़ी आवश्यकता को दर्शाती सुंदर सार्थक रचना ।नवरात्रि के पवन पर्व पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आदरणीय शास्त्री जी।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर... कई बार कड़े कदम उठाने चाहिए...
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