-- स्वप्न पलते रहे, रूप छलते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। -- अश्रु
सूखे हुए, मीत रूठे हुए, वायदे
प्यार के, रोज झूठे
हुए, आज झनकार के तार टूटे हुए, राख
में अधजले दिल सुलगते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। -- नभ
में निखरी हुई चाँदनी खल गयी, हारकर
वर्तिका, नेह बिन जल गयी, कारवाँ
लुट गया, रात भी ढल गयी, काल
के चक्र जीवन निगलते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। -- उर
के कोटर में अब प्रीत पलती नहीं, सुख
की धारा, धरा से निकलती नहीं, सीप अब मोतियों को उगलती नहीं, स्वप्न सारे सवालों में ढलते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। -- क्या
करूँ ये सितारों से पूरित गगन, क्या करूँ ये सुहाना-सुहाना पवन, क्या
करूँ चाँदनी
का अनूठा बदन, “रूप” अरमान के हाथ मलते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। |
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सोमवार, 31 अक्टूबर 2022
गीत "दीप जलते रहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 30 अक्टूबर 2022
दोहे "छठ-माँ का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उगते-ढलते
सूर्य की, उपासना का पर्व।। भारतवासी
कर रहे, छठ-पूजा पर गर्व।१। मौसम
के बदलाव से, शीतल हुआ समीर। छठ-पूजा
पर आ गये, लोग सरोवर तीर।२। ढलते
सूरज का जहाँ, होता है गुणगान। सर्वधर्म
समभाव का, भारत देश महान।३। समरसता
के मन्त्र का, बाँट रहा उपहार। उत्सव
मानव मात्र के, जीवन के आधार।४। परम्परा-त्यौहार
हैं, जन गण मन के प्राण। नहीं
चाहिए विश्व से, हमको पत्र-प्रमाण।५। छठपूजा
पर कीजिए, निष्ठा से उपवास। लोग
घाट पर कर रहे, माता की अरदास।६। लाया
है उल्लास को, छठ-माँ का त्यौहार। व्रत-पूजन
करके करो, अपने शुद्ध विचार।७। होता
है सन्तान से, माता का सम्बन्ध। रिश्ते-नातों
में नहीं, होता है अनुबन्ध।८। |
शनिवार, 29 अक्टूबर 2022
दोहे "छठ माँ का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भारत
में अब हो गया, छठ माँ का उद्घोष। लोगों का त्यौहार में, रहे न खाली कोष।। उगते
ढलते सूर्य का, छठपूजा त्यौहार। जन
गण-मन में मात हैं, श्रद्धा का आधार।। अपने-अपने
नीड़ से, निकल पड़े नर-नार। सरिताओं
के घाट पर, उमड़ा है संसार।। अस्तांचल
की ओर जब, रवि करता प्रस्थान। छठ
पूजा पर्व पर, देता अर्घ्य जहान।। परम्पराओं
पर टिका, अपना भारतवर्ष। नदी-सरोवर
तीर पर, लोग मनाते हर्ष।। षष्टी
मइया कीजिए, सबका बेड़ा पार। मात
की अरदास को, उमड़ा है संसार।। कठिन
तपस्या के लिए, छठ का है त्यौहार। व्रत
पूरा करके करो, ग्रहण शुद्ध आहार।। छठपूजा
पर तीन दिन, होता है उपवास। श्रद्धा
से करते सभी, माता की अरदास।। उदित-अस्त
रवि को सदा, अर्घ्य चढ़ाना नित्य। नवजीवन जड़-जगत को, देता है आदित्य।। |
शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2022
गीत "दीप मन्दिर में जलाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
निलय से अज्ञान के तम को भगाओ। ज्ञान का इक दीप मन्दिर में जलाओ।। मन स्वदेशी है, स्वदेशी खाद-पानी चाहिए, नीर में सरिताओं के अविरल रवानी चाहिए, नौजवानों में समन्दर सी जवानी चाहिए, बंजर धरा को उर्वरा फिर से बनाओ। ज्ञान का इक दीप मन्दिर में जलाओ।। शेर के मानिन्द बनकर अब दहाड़ो, दुश्मनों को युद्ध-भूमि में पछाड़ो, देश से आतंक को जड़ से उखाड़ो, सुप्त मन में आस का अंकुर उगाओ। ज्ञान का इक दीप मन्दिर में जलाओ।। सहन मत करना कभी अपमान को, भूलते हो क्यों पुरानी शान को, छोड़ दो कर्कश विदेशी गान को, प्यार के मृदुगान को अब गुनगुनाओ। ज्ञान का इक दीप मन्दिर में जलाओ।। भाईचारा-अमन हो अपने वतन में, आस के अंकुर उगाना है चमन में, कामना कल्याण की करना हवन में, नेकियों का नित्य गुलदस्ता सजाओ। ज्ञान का इक दीप मन्दिर में जलाओ।। बन सको तो, नारियल जैसे बनो, हो सके तो सुमन से परमल बनो, कुटिलता को छोड़कर कोमल बनो, सभ्यता का “रूप” दुनिया को दिखाओ। ज्ञान का इक दीप मन्दिर में जलाओ।। |
गुरुवार, 27 अक्टूबर 2022
बालगीत "मन से बैर-भाव को त्यागें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
माटी के कुछ दीप जलाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। पंच पर्व नजदीक आ रहे, झालर-लड़ियाँ लोग ला रहे, जगमग करते दीप भा रहे, लीप-पोतकर घर-आँगन को, साफ-सफाई हम अपनाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। मन से बैर-भाव को त्यागें, अमृत बेला में हम जागें, कर्मक्षेत्र से कभी न भागें, जाति-धर्म से देश बड़ा है, मानवता की रीत निभाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। अब विकास का चक्र चल रहा, जगमग-जगमग दीप जल रहा, आँखों में सुख-स्वप्न पल रहा, सुमन सीख देते उपवन में, कोमलता को हम अपनाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। सिया-राम उद्घोष उचारें, माता की आरती उतारें, इष्टदेव को नित्य पुकारें, भक्ति-भाव के वाहक बनकर, कभी न माता को बिसराएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। |
बुधवार, 26 अक्टूबर 2022
दोहे "भइया-दूज का तिलक-पावन प्यार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भइया का यमदेवता, करना तुम कल्याण।। -- भाई बहन के प्यार का, भइया-दोयज पर्व। अपने-अपने भाई पर, हर बहना को गर्व।। -- तिलक दूज का कर रहीं, सारी बहनें आज। सभी भाइयों के बने, सारे बिगड़े काज।। -- रोली-अक्षत-पुष्प का, पूजा का ले थाल। बहन आरती कर रही, मंगल दीपक बाल।। -- एक बरस में एक दिन, आता ये त्यौहार। अपनी रक्षा का बहन, माँग रही उपहार।। -- जब तक सूरज-चन्द्रमा, तब तक जीवित प्यार। दौलत से मत तोलना, पावन प्यार-दुलार।। -- |
गीत "भइया दूज की शुभकामनाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- मेरे भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर, कर रही हूँ प्रभू से यही कामना। लग जाये किसी की न तुमको नजर, दूज के इस तिलक में यही भावना।। -- चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो, उन्नति के शिखर पर हमेशा चढ़ो, कष्ट और क्लेश से हो नही सामना। दूज के इस तिलक में यही भावना।। -- थालियाँ रोली चन्दन की सजती रहें, सुख की शहनाइयाँ रोज बजती रहें, पूर्ण हों भाइयों की सभी साधना। दूज के इस तिलक में यही भावना।। -- रोशनी से भरे दीप जलते रहें, नेह के सिन्धु नयनों में पलते रहें, आज बहनों की हैं ये ही आराधना। दूज के इस तिलक में यही भावना।। -- |
मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022
दोहे "अन्नकूट त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- आया गोवर्धन दिवस, अन्नकूट त्यौहार। गौ पालन कर कीजिए, अपने पर उपकार।। -- गोवर्धन
का पर्व ये, देता है सन्देश। गोबर
के उपयोग से, पावन हो परिवेश।। गौमाता
से ही मिले, दूध-दही,
नवनीत। सबको
होनी चाहिए, गौमाता से प्रीत।। गइया
के घी-दूध से, बढ़ जाता है ज्ञान। दुग्धपान
करके बने, नौनिहाल बलवान।। कैमीकल
का उर्वरक, कर देगा बरबाद। फसलों
में डालो सदा, गोबर की ही खाद।। श्रीकृष्ण
ने कर दिया, माँ का ऊँचा भाल। सेवा
करके गाय की, कहलाये गोपाल।। गौमाता रहती जहाँ, वहाँ रोग हों दूर। दुग्धपान से मन-बदन, विकसित हो भरपूर।। |
सोमवार, 24 अक्टूबर 2022
गीत "होली, ईद-दिवाली में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों! 16 अक्तूबर, 2016 को निम्न गीत लिखा था, परन्तु इस गीत की कुछ पंक्तियों में थोड़ा बदलाव करके बहुत से लोगों ने इस गीत को अपने नाम से यू-ट्यूब पर लगा दिया है। देश के धन को देश में रखना, बहा न देना नाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। बने जो अपनी माटी से वो दीप बिकें बाजारों में, भरी हुई है वैज्ञानिकता. अपने सब त्यौहारों में, राष्ट्र हितों का गला घोंटकर छेद न करना थाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। त्यौहारों पर अब गरीब की, जेब कभी ना खाली हो। झिलमिल नन्हें दीप जलें जब, काली नहीं दिवाली हो। देश की सीमा रहे सुरक्षित चूक न हो रखवाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। रहे देश की दौलत अपने ही लोगों की झोली में। मिलता है आनन्द हमेशा, अपनी ही रंगोली में। योगदान है सबका होता जनता की खुशहाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। वस्तु स्वदेशी अपनाने का आओ हम सब प्रण कर लें, अपने उत्पादन से अपना, दामन खुशियों से भर लें। गले मिलें सब लोग देश के, होली, ईद-दिवाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। |
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