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गाँव-गली, नुक्कड़-चौराहे,
सब के सब बदनाम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
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रामराज का सपना टूटा,
बिखर गया हर पत्ता-बूटा।
जिसको मौका मिला उसी ने,
खेत-बाग-वन जमकर लूटा।
हत्या और बलात् कर्म अब,
जन-जीवन में आम हो गये।।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
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असरदार सरदार मिले हैं,
लुटे-पिटे घर-बार मिले हैं।
भोली-भाली जनता को बस,
भाषण लच्छेदार मिले हैं।
लोकतन्त्र के मन्दिर में अब,
राजतन्त्र के काम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
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जनसेवक मनमानी करते,
केवल अपनी झोली भरते।
कूटनीति दम तोड़ रही है,
सीमाओं पर सैनिक मरते।
सोनचिरैया के सब गहने,
पलपभर में नीलाम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
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गंगा रोती, गइया रोती,
पण्डित जी की पूजा रोती,
देख सपूतों की करतूतें,
घर में बैठी मइया रोती।
“रूप” देखकर चरवाहों का,
कंस आज घनश्याम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019
गीत "कंस आज घनश्याम हो गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-१२-२०१९ ) को " पूस की ठिठुरती रात "(चर्चा अंक-३५४९) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
वास्तविकता का सटीक सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत।