-- एक-दूसरे की सभी, खोल रहे हैं पोल। मर्यादा को लाँघकर, मुखरित होते बोल।1। -- जनसेवक बेखौफ हो, लगा रहे आरोप। बस का तो कुछ भी नहीं, फूट रहा है कोप।2। -- जब से आम चुनाव की, बहने लगी बयार। साफ नजर आने लगी, किसकी होगी हार।3। -- गरम हवा चलने लगी, सूख रहे हैं खेत। जनता ने खामोश हो, दिये मौन संकेत।4। -- कुमुद-कमल तालाब में, करते अपना खेल। हाथ नहीं आता नजर, रहे रोटियाँ बेल।5। -- नवयुग में थम सी गयी, छली-बली की चाल। अपने भी उनका नहीं, रखते हैं अब ख्याल।6। -- मीन सयानी हो गयी, मछुआरे कंगाल। अवश-विवश हो फेंकते, जल में अपने जाल।7। -- |
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शनिवार, 4 मई 2024
दोहे "मछुआरे कंगाल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सटीक
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंजब से आम चुनाव की, बहने लगी बयार।
जवाब देंहटाएंसाफ नजर आने लगी, किसकी होगी हार।