-- सबका अपना-अपना होता, जीने का अन्दाज़ निराला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- भाषा-भूषा, प्रान्त-देश का, सम्प्रदाय का झगड़ा छोड़ो, जो सीधे-सच्चे मानव हैं, उनसे अपना नाता जोड़ो, नभ में जब सूरज उगता है, लाता अपने साथ उजाला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- पल में तोला, पल में माशा, कभी हताशा कभी निराशा, ऐसा-वैसा, कैसा-कैसा, मन है प्यासा पंछी जैसा, उसकी बुझती नहीं पिपासा, कभी न भरता मन का प्याला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- पहन हंस की धवल केंचुली, बगुला लगता सीधा-सादा, छल-फरेब की इस मूरत का, समझ न पाये लोग इरादा, विषधर तो विषधर ही होता, चाहे काला या पनियाला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- “रूप” देखकर पागल भँवरा, गुंजन करता उपवन-उपवन, सुमनों की सुगन्ध पाने को, डोल रहा है कानन-कानन, नटखट-निडर, रसिक सन्यासी, झूम रहा बनकर मतवाला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- |
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बुधवार, 15 मई 2024
गीत "झूम रहा बनकर मतवाला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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