-- खींचातानी फिकरेबाजी,
दुनियाभर में आम हो गई। दानवता के चौराहों पर, मानवता
गुमनाम हो गई।। -- मची हुई अफरा-तफरी है, प्रजा हुई गूँगी-बहरी है, सरिताओं की मौज थम गई,
कीचड़-काई ही ठहरी है, खिला नहीं अब तक भी
गुलशन, इन्तजार में शाम हो गई। दानवता के चौराहों पर,
मानवता गुमनाम हो गई।। -- बिगड़ रहे हैं बोल प्यार
के, प्रीत-रीत मनुहार नहीं है, दावे सबके बड़े-बड़े
हैं, लेकिन कुछ आधार नहीं है, आज सियासत की धरती पर, राजनीति
बदनाम हो गई। दानवता के चौराहों पर,
मानवता गुमनाम हो गई।। -- भूख-गरीबी लाचारी है,
मची हुई मारा-मारी है, नीलगगन आँसू टपकाता, उल्कापात
हुआ भारी है, भाईचारे की वादी में, हर
कोशिश नाकाम हो गई। दानवता के चौराहों पर,
मानवता गुमनाम हो गई।। -- नहीं चाकरी-नहीं नौकरी,
आस न हो पाई हैं पूरी लोकतन्त्र के गलियारों
से, बनी हुई है अब भी दूरी, बेकारी से लड़ते-लड़ते,
कुटिया तक नीलाम हो गई। दानवता के चौराहों पर,
मानवता गुमनाम हो गई।। -- गेहूँ पहले भी पिसता था,
अब भी वो है पिसता जाता, वही विवशता-वही अवशता, तुलसी
चन्दन घिसता जाता, गौ-गंगा के हाल न सुधरे,
भले अयोध्या धाम हो गयी। दानवता के चौराहों पर,
मानवता गुमनाम हो गई।। -- |
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सोमवार, 6 मई 2024
गीत "मानवता गुमनाम हो गई" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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