आषाढ़ से आकाश अब तक
रो रहा है।
बादलों को इस बरस
क्या हो रहा है?
आज पानी बन गया जंजाल
है,
भूख से पंछी हुए
बेहाल हैं,
रश्मियों को सूर्य
अपनी खो रहा है।
बादलों को इस बरस
क्या हो रहा है?
कब तलक नौका चलाएँ
मेह में,
भर गया पानी गली और
गेह में,
इन्द्र जल-कल खोल
बेसुध सो रहा है।
बादलों को इस बरस
क्या हो रहा है?
बिन चुगे दाना गगन
में उड़ चले,
घोंसलों की ओर पंछी
मुड़ चले,
दिन-दुपहरी दिवस तम
को ढो रहा है।
बादलों को इस बरस
क्या हो रहा है?
धान खेतों में लरजकर पक गया है,
घन गरजकर और बरसकर थक
गया है,
किन्तु क्यों नगराज
छागल ढो रहा है?
बादलों को इस बरस
क्या हो रहा है?
पुण्य सलिला में नजर
आने लगे हैवान हैं
देखकर अतिवृष्टि को
सब लोग अब हैरान हैं
उग रही वैसी फसल जैसी
धरा में बो रहा है।
बादलों को इस बरस
क्या हो रहा है?
|
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रविवार, 16 सितंबर 2018
गीत "धान खेतों में लरजकर पक गया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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