छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।।
उष्ण मौसम का गिरा कुछ आज पारा,
हो गयी सामान्य अब नदियों की धारा,
नीर से, आओ करें हम आचमन।
रात लम्बी हो गयी अब हो गये छोटे दिवस,
सूर्य की गर्मी घटी, मिटने लगी तन की उमस,
सुख हमें बाँटती, मन्द-शीतल पवन।
अर्चना-पूजा की चहके दीप लेकर थालियाँ,
धान के बिरुओं ने पहनी हैं सुहानी बालियाँ,
अन्न की खुशबू से, महका है चमन।
तितलियाँ उड़ने लगीं बदले हुए परिवेश में,
भर गयीं फिर से उमंगे आज अपने देश में,
शीत का होने लगा अब आगमन।
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बुधवार, 19 सितंबर 2018
गीत "हुआ निर्मल गगन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुन्दर सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंवाह! सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआती शर्दी का खुबसुरत चित्रण.
जवाब देंहटाएंआत्मसात
सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएं