धरा-गगन में हो रही, उसकी जय-जयकार।।
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बादल नभ में छा रहे, बरस रहा है नीर।
हुआ देवकी-नन्द का, मन तब बहुत अधीर।।
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बन्दीघर में कंस की, पहरे थे संगीन।
खिसक रही वसुदेव के, पैरो तले जमीन।।
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बालकृष्ण ने जब रची, लीला स्वयं विराट।
प्रहरी सारे सो गये, सब खुल गये कपाट।।
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जब-जब अत्याचार से, लोग हुए लाचार।
तब-तब लेते धरा पर, महापुरुष अवतार।।
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जग-तप, पूजा-पाठ सब, हुए अकारथ आज।
सीधी-सच्ची राह से, भटका हुआ समाज।।
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बढ़ते पापाचार से, हुए सभी बेहाल।
कलयुग तुम्हें पुकारता, आ जाओ गोपाल।।
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जग के माया जाल में, जकड़े सारे लोग।
भोगवाद के दैत्य को, कौन सिखाये योग।।
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शनिवार, 1 सितंबर 2018
दोहे "महापुरुष अवतार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं आपको।
बढ़ते पापाचार से, हुए सभी बेहाल।
जवाब देंहटाएंकलयुग तुम्हें पुकारता, आ जाओ गोपाल।।
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जग के माया जाल में, जकड़े सारे लोग।
भोगवाद के दैत्य को, कौन सिखाये योग।
बहुत अच्छी प्रेरक सामयिक प्रस्तुति
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं