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रविवार, 31 मार्च 2019
शनिवार, 30 मार्च 2019
आलेख "निष्पक्ष चुनाव के लिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शुक्रवार, 29 मार्च 2019
गीत "चंचल सुमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मोम कभी हो जाता है, तो पत्थर भी बन जाता है।
दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।।
कभी किसी की नहीं मानता,
प्रतिबन्धों को नहीं जानता।
भरता है बिन पंख उड़ानें,
जगह-जगह की ख़ाक छानता।
वही काम करता है यह, जो इसके मन को भाता है।
दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।।
अच्छे लगते अभिनव नाते,
करता प्रेम-प्रीत की बातें।
झोली होती कभी न खाली
सबके लिए भरी सौगातें।
तन को रखता सदा सुवासित, चंचल सुमन कहाता है।
दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।।
पौध सींचता सम्बन्धों की,
रीत निभाता अनुबन्धों की।
मीठे पानी के सागर को,
नहीं जरूरत तटबन्धों की।
बाँध तोड़ देता है सारे, जब रसधार बहाता है।
दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।।
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गुरुवार, 28 मार्च 2019
दोहे "बुड्ढों की औकात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कभी बड़े होते दिवस, कभी बड़ी हैं रात।
राजनीति में है नहीं, बुड्ढों की औकात।।
जिसने बनकर सारथी, छेड़ा था अभियान।
उसके पुण्य-प्रताप से, बढ़ा कमल का मान।।
अडवानी-जोशी हुए, आज बहुत मजबूर।
अब तो सत्ता से हुए, खंडूरी भी दूर।।
मनमानी करने लगे, सत्ताधारी लोग।
छल-प्रपंच से राजसी, ठाठ रहे हैं भोग।।
आज नियोजितरूप से, पनप रहा षडयन्त्र।
सम्मोहन वक्तव्य का, झेल रहा जनतन्त्र।।
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बुधवार, 27 मार्च 2019
दोहे "अभिनय करते लोग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रंग-मंच है जिन्दगी, अभिनय करते लोग।
नाटक के इस खेल में, है संयोग-वियोग।।
विद्यालय में पढ़ रहे, सभी तरह के छात्र।
विद्या के होते नहीं, अधिकारी सब पात्र।।
आपाधापी हर जगह, सभी जगह सरपञ्च।।
रंग-मंच के क्षेत्र में, भी है खूब प्रपञ्च।।
रंग-मंच भी बन गया, जीवन का जंजाल।
भोली चिड़ियों के लिए, जहाँ बिछे हैं जाल।।
रंग-मंच का आजकल, मिटने लगा रिवाज।
मोबाइल से जाल पर, उलझा हुआ समाज।।
कहीं नहीं अब तो रहे, सुथरे-सज्जित मञ्च।
सभी जगह बैठे हुए, गिद्ध बने सरपञ्च।।
नहीं रहे अब गीत वो, नहीं रहा संगीत।
रंग-मंच के दिवस की, मना रहे हम रीत।।
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मंगलवार, 26 मार्च 2019
ग़ज़ल "ख़्वाब में वो सदा याद आते रहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दर्द की छाँव में मुस्कराते रहे
फूल बनकर सदा खिलखिलाते रहे
हमको राहे-वफा में ज़फाएँ मिली
ज़िन्दग़ी भर उन्हें आज़माते रहे
दिल्लगी थी हक़ीक़त में दिल की लगी
बर्क़ पर नाम उनका सजाते रहे
जब भी बोझिल हुई चश्म थी नींद से
ख़्वाब में वो सदा याद आते रहे
पास आते नहीं, दूर जाते नहीं
अपनी औकात हमको बताते रहे
हम तो ज़ालिम मुहब्बत के दस्तूर को
नेक-नीयत से पल-पल निभाते रहे
जब भी देखा सितारों को आकाश में
वो हसीं 'रूप' अपना दिखाते रहे
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सोमवार, 25 मार्च 2019
आलेख "माँ पूर्णागिरि का मेला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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रविवार, 24 मार्च 2019
दोहे "कुछ भी नहीं सफेद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
राज-काज में प्रजा को, रक्खा जाता दूर।
पाँच साल जनतन्त्र में, जन रहता मजबूर।।
विजय-पराजय का कब मिले, नहीं जानते लोग।
आ आता अच्छा समय, जब अच्छा हो योग।।
समीकरण जब बिगड़ते, होता जोड़-घटाव।
धन के बल पर जीतते, अब तो लोग चुनाव।।
योगदान की है नहीं, अब दल में औकात।
जब पैसा हो जेब में, तभी बना लो बात।।
काजल की है कोठरी, कुछ भी नहीं सफेद।
उगता है मतभेद में, सबके मन में भेद।।
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शनिवार, 23 मार्च 2019
दोहे "लोग खोजते मंच" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भाँति-भाँति के रच रहे, ढोंगी यहाँ
प्रपंच।।
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खान-पान दूषित हुआ, दूषित हुए विचार।
कूड़े-कचरे से हुई, दूषित जल की धार।।
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संस्कार दम तोड़ता, मन में भरे विकार।
कदम-कदम पर देश में, फैला भ्रष्टाचार।।
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नहीं रही है आजकल, प्रीत और मनुहार।
राजनीति में दम्भ से, खिसक रहा आधार।।
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चाहे कोई भी रहे, दल-बल का सरदार।
राजनीति में हो रही, चमचों की भरमार।।
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मनचाही मिलती रकम, हाट हुए गुलजार।
जनसेवक सब जगह हैं, बिकने को तैयार।।
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नामदार सब हो गये, अब तो चौकीदार।
राजनीति में आ गये, अब शातिर मक्कार।।
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शुक्रवार, 22 मार्च 2019
दोहे विश्व जल दिवस "पानी को लाचार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
किया किसी ने भी अगर, पानी को बेकार।
हो जाओगे एक दिन, पानी को लाचार।।
ओस चाटने से बुझे, नहीं किसी की प्यास।
जीव-जन्तुओं के लिए, जल जीवन की आस।।
गन्धहीन-बिन रंग का, पानी का है अंग।
जिसके साथ मिलाइए, देता उसका रंग।।
जल अमोल है सम्पदा, मानव अब तो चेत।
निर्मल जल के पान से, सोना उगलें खेत।।
वृक्ष बचाते धरा को, देते सुखद समीर।
लहराते जब पेड़ हैं, घन बरसाते नीर।।
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गुरुवार, 21 मार्च 2019
दोहे "होलक का शुभदान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पावन होली खेलकर, चले गये हैं ढंग।
रंगों के त्यौहार के, अजब-ग़ज़ब थे रंग।२।
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जली होलिका आग में, बचा भक्त प्रहलाद।
जीवन में सबके रहे, प्यार भरा उन्माद।३।
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दहीबड़े-पापड़ सजे, खाया था मिष्ठान।
रंग-गुलाल लगा लिया, गाया होली गान।४।
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मिला हुआ था भाँग में, अदरख-तुलसीपत्र।
बौराये से लोग थे, यत्र-तत्र-सर्वत्र।५।
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देख खेत में धान्य को, हर्षित हुआ किसान।
होली में अर्पित किया, होलक का शुभदान।६।
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